खजुराहो के कंदारिया महादेव से भी
विशाल
- लोकेन्द्र सिंह राजपूत
मंदिर,
मठ या अन्य पूजा स्थल महज धार्मिक महत्त्व के स्थल नहीं होते हैं।
ये अपने समय के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था के
गवाह होते हैं। अपने में एक इतिहास समेटकर खड़े रहते हैं। उनको समझने वाले लोगों
से वे संवाद भी करते हैं। ग्वालियर से करीब 70 किलोमीटर दूर
मुरैना जिले के सिहोनिया गाँव में स्थित ककनमठ मंदिर इतिहास और वर्तमान के बीच ऐसी
ही एक कड़ी है। मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कछवाह
(कच्छपघात) राजा कीर्तिराज ने कराया था। उनकी रानी का नाम था ककनावती। रानी
ककनावती शिवभक्त थीं। उन्होंने राजा के समक्ष एक विशाल शिव मंदिर बनवाने की इच्छा
जाहिर की। विशाल परिसर में शिव मंदिर का निर्माण किया गया। चूंकि शिव मंदिर को मठ
भी कहा जाता है और रानी ककनावती के कहने पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया था,
इसलिए मंदिर का नाम ककनमठ रखा गया। वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद्
श्री जयंत तोमर बताते हैं कि सिहोनिया कभी सिंह-पानी नगर था। बाद में अपभ्रंश होकर
यह सिहोनिया हो गया। यह ग्वालियर अँचल का प्राचीन और समृद्ध नगर था। यह नगर कछवाह
वंश के राजाओं की राजधानी था। इसकी उन्नति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है
कि ग्वालियर अंचल के संग्रहालयों में संरक्षित अवशेष सबसे अधिक सिहोनिया से
प्राप्त किए गए हैं। श्री तोमर बताते हैं कि तोमर वंश के राजा महिपाल ने ग्वालियर
किले पर सहस्रबाहु मंदिर का निर्माण कराया था। सहस्रबाहु मंदिर के परिसर में लगाए
गए शिलालेख में अंकित है कि सिंह-पानी नगर (अब सिहोनिया) अद्भुत है।
ककनमठ मंदिर की स्थापत्य और
वास्तुकला के सम्बन्ध में जीवाजी यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास,
संस्कृति और पुरातत्व विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामअवतार
शर्मा बताते हैं कि यह मंदिर उत्तर भारतीय शैली में बना है। उत्तर भारतीय शैली को
नागर शैली के नाम से भी जाना जाता है। 8वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान मंदिरों का निर्माण नागर शैली में ही किया जाता रहा।
ककनमठ मंदिर इस शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के परिसर में चारों और कई अवशेष रखे
हैं। ज्यादातर अवशेष मुख्य मंदिर के ही हैं। इतने लम्बे समय के दौरान कई प्राकृतिक
झंझावातों का सामना मंदिर ने किया। इनसे उसे काफी क्षति पहुँची।
मंदिर का शिखर काफी विशाल था लेकिन
समय के साथ वह टूटता रहा। परिसर में अन्य छोटे-छोटे मंदिर समूह भी थे। ये भी समय
के साथ नष्ट हो गए। पुरातत्वविद् श्री रामअवतार शर्मा बताते हैं कि खजुराहो में
सबसे बड़ा मंदिर अनश्वर कंदारिया महादेव का है। ककनमठ मंदिर समूह इससे भी विशालतम
मंदिर था। वर्तमान में परिसर की जो बाउंड्रीवॉल है, यह मंदिर का वास्तविक परिसर नहीं है। मंदिर का परिसर इससे भी काफी विशाल
था। बाउंड्रीवॉल के बाहर भी मंदिर समूह के अवशेष मिले हैं। श्री शर्मा बताते हैं
कि भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान शिखर की ओर से गिरने वाली विशाल चट्टानों
के कारण मंदिर पर उकेरी गईं प्रतिमाओं को काफी नुकसान पहुँचा है।
ककनमठ मंदिर की दीवारों पर
शिव-पार्वती, विष्णु और शिव के गणों की
प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। प्रतिमाएँ इतने करीने से पत्थर पर उकेरी गईं हैं कि सजीव
प्रतीत होती हैं। हालांकि ज्यादातर प्रतिमाएँ खण्डित हैं। लेकिन, अपने कला वैभव को बखूबी बयाँ करती दिखाई देती हैं।
19 अक्टूबर 2013 को ग्वालियर से अपने दोस्तों के साथ इस ऐतिहासिक महत्त्व के मंदिर का
अवलोकन करने का अवसर मिला। नईदुनिया के वरिष्ठ पत्रकार हरेकृष्ण दुबोलिया, गिरीश पाल और महेश यादव के साथ हम यहाँ पहुँचे थे। साथ में गिरीश पाल के
पिताजी भी थे। पथ प्रदर्शक के रूप में उनका बड़ा अच्छा साथ हमें मिला। इसके अलावा
रास्ते में वे ककनमठ मंदिर से जुड़ी किंवदंतियाँ हमें सुनाते रहे। मुरैना से
उत्तर-पूर्व दिशा में करीब 30 किलोमीटर दूर सिहोनिया गाँव
में ककनमठ मंदिर स्थित है। 11वीं शताब्दी में चूना-सीमेंट का
इस्तेमाल किए बिना पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर बनाया गया यह विशाल मंदिर आज भी
मजबूती के साथ खड़ा है। यह देखकर प्राचीन भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला कला पर
गर्व महसूस हुआ। मंदिर के शिखर की तरह अपना सिर भी आसमान की तरफ जरा-सा तन गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंदिर को संरक्षित करने का प्रयास किया है।
फिर भी लम्बे समय तक अनदेखी के कारण मंदिर को काफी नुकसान पहुँच चुका है। मुख्य
मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना है। मण्डप पत्थर के बड़े पिलरों पर खड़ा है। मंदिर
में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुँचाए, इसके
लिए एएसआई की ओर से दो कर्मचारियों की नियुक्ति यहाँ की गई है। केयर टेकर सुरेश
शर्मा बताते हैं कि मंदिर की भव्यता और इसके स्थापत्य को निहारने के लिए कई विदेशी
पर्यटक भी यहाँ आते रहते हैं। हालांकि यह संख्या अभी बहुत ज्यादा नहीं है।
ग्वालियर और मुरैना से यहाँ तक
पहुँच मार्ग करीब-करीब ठीक है। बीच में कुछ जगह सड़क खराब है। ककनमठ मंदिर को
पर्यटन के नक्शे पर जो स्थान मिलना चाहिए, अभी
वैसा नहीं है। मध्यप्रदेश सरकार इस दिशा में कुछ पहल कर सकती है। आगरा से ग्वालियर
किला घूमने आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को ककनमठ मंदिर आने के लिए भी आकर्षित
किया जा सकता है। पास में ही मितावली, पड़ावली, नूराबाद, बटेश्वर और शनिचरा जैसे महत्वपूर्ण स्थल
हैं। ऐतिहासिक रूप से समृद्ध होने के कारण अंचल में पर्यटकों को बुलाना बहुत
मुश्किल काम नहीं है। बस इस दिशा में एक ठोस प्रयास की जरूरत है। निश्चित ही घुमक्कड़
स्वभाव के और पुराने सौंदर्य को देखकर आनंदित होने वाले लोग यहाँ आकर निराश नहीं
होंगे। इसके साथ ही सिहोनिया में प्राचीन जैन मूर्तियाँ भी दर्शनीय हैं। सिहोनिया
जैन सम्प्रदाय के लिए ऐतिहासिक और पवित्र स्थलों में से एक है। यहाँ 11वीं शताब्दी के कई जैन मंदिरों और मूर्तियों के अवशेष देखे जा सकते हैं।
इन मंदिरों में शांतिनाथ, आदिनाथ और पाश्र्वनाथ सहित अन्य
तीर्थंकरों की विशाल और प्राचीन प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं।
सम्पर्क: गली नम्बर-1,किरार कॉलोनी,एसएएफ रोड,
कम्पू,लश्कर,ग्वालियर(मप्र)474001, मो.09893072930
Email-lokendra777@gmail.com
सम्पर्क: गली नम्बर-1,किरार कॉलोनी,एसएएफ रोड,
कम्पू,लश्कर,ग्वालियर(मप्र)474001, मो.09893072930
Email-lokendra777@gmail.com
No comments:
Post a Comment