हरसिंगार
1
स्वर्ण कलश
शीश पर ले खड़ी
उषा कुमारी।
2
उषा रानी का
सुहाग का सिंधौरा
ललका गोला।
3
श्लोक पे श्लोक
पढ़ रहे पखेरू
भिनसार से।
4
आसमान पर
इतनी कविताएँ
छापी किसने!
5
धन्य चन्दन
जिधर से रगड़ो
देता सुगन्ध।
6
किस सीढ़ी से
अँगना में उतरी
किरण परी?
7
बूढ़े नीम के
शीश पे ललछौंही
फागुनी टोपी।
8
वन-बाग में
खड़े नागा संन्यासी
आया वसन्त।
9
हवा चूमती
तो बोलने लगते
मौन पत्ते भी।
10
बाँध लेती है
भीगे आँचल में माँ
दु:ख का घर।
11
पहन टोपी
लाल, खुशबू बाँटे
हरसिंगार।
12
हीरक -जड़े
झुमके लाल-लाल
बाँटो पलाश।
13
दल के दल
बादल, बजा रहे
जोर माँदल।
14
मीठी मुस्कान
किसी चेहरे का है
इन्द्रधनुष।
15
वर्षा की बूँदें
टीन छत पे गातीं
मेघ मल्हार।
16
लड़ें बादल
चमकी तलवारें
बिजलियों की।
17
पहाड़ों पर
देखो बना रहे
मेघ झोंपड़ी।
18
भूखे जनों को
नेता देते बधाई
खा के मलाई।
19
हरसिंगार
पहन टोपी लाल
चले बारात।
20
सरस्वती है
छिपी लुप्त नदी-सी
ढूँढ़ो अन्दर।
21
झाऊ वन में
लेटी है चाँदनी
चितकबरी
22
लाल है फ़्रॉक
दुपट्टा भी है लाल
उषा के गात।
23
सठिया गए
बच्चे,
भूले जब से
परी-कथाएँ।
लेखक के बारे में- जन्म -1-7-1925,
स्थान-बन्दनहार, सन्ताल परगना, झारखण्ड विविध विधाओं की 17 पुस्तकें प्रकाशित, ‘कविता श्री’ मासिक का 46 वर्ष तक सम्पादन।
सम्पर्क: कविताश्री प्रकाशन,
उत्तर बाज़ार, अण्डाल ( पश्चिमी बंगाल)-713
321 फोन- 9474699126
Labels: नलिनीकान्त, हाइकु
1 Comments:
बहुत सारगर्भित ,भावपूर्ण अभिव्यक्ति।\ .... लेखनी को शत-शत नमन ....
डॉ. रमा द्विवेदी
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