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May 30, 2012

श्रद्धांजलिः कुछ नजर हंसी कुछ नजर झुकी

- शिशिर कृष्ण शर्मा
कवि, कथाकार, उपन्यासकार और गीतकार होने के साथ- साथ जीवन को जीने की जद्दोजहद में कभी रेडियो में तो कभी संपादन में तो कभी अभिनय करके जीवन को सिद्दत सो जीने वाले मधुप शर्मा का लम्बी बीमारी के बाद गत माह 13 अप्रैल 2012 को निधन हो गया। यह आलेख पिछले माह ही उदंती छपने के लिए तैयार था। पर अफसोस इस बीच वे हमारे बीच से चले गए। उन्हें उदंती परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि।
मधुप शर्मा
फिल्म दारा 1953 में एक मनमोहक गीत हेमंत कुमार, लता मंगेशकर और साथियों के अत्यंत कोमल स्वरों में है- कुछ नजर हंसी, कुछ नजर झुकी... दो बोल तेरे मीठे- मीठे, दिल जान के मालिक बन बैठे... बालकृष्ण जी के लिखे इस पुराने सुरीले गीत को संगीतकार मोहम्मद शफी ने बहुत ही मनमोहक धुन में बांधा था। कुछ प्रयास के बाद पता चला कि ऑल इंडिया रेडियो की विविध भारती सेवा की स्थापना से लेकर बरसों तक जुड़े रहे मधुप शर्मा ही इसके लेखक हैं।
 14 दिसम्बर 1921 को भरतपुर (राजस्थान) में जन्में श्री बाल कृष्ण शर्मा 'मधुप' जो लगभग 92 वर्ष के हो चुके हैं  तथा गत वर्ष वे दूसरी बार सूचक अस्पताल के कमरा नं. 40 में अपनी छोटी बेटी आभा और डॉक्टर दामाद (डॉ. अनिल सूचक) की चिकित्सीय देख- रेख में भर्ती थे तब मैंने उनसे मुलाकात की और उनसे उनके अन्य फिल्मों में लिखे गीतों की जानकारी लेनी चाही तो वृद्धावस्था के कारण वे कुछ खास याद नहीं कर सके और बार- बार यही कहते रहे कि बहुत लिखे, बहुत लिखे। छोटी बेटी आभा के अनुसार उन्होंने सातवें- आठवें दशक की कई हिन्दी फिल्मों सत्यकाम, जॉनी मेरा नाम, अमर प्रेम, राजा जानी, गीत गाता चल, बॉबी, अनामिका, हीरा पन्ना, दोस्त, रोटी कपड़ा और मकान, जख्मी,  आंधी, सन्यासी, दस नम्बरी, आपकी खातिर, आशिक हूं बहारों का, अनुरोध, ड्रीमगर्ल, कालाबाजार, आजाद, दिल से मिले दिल, खून की पुकार, पतिता, राम बलराम, जेल यात्रा, आस- पास, दर्द, लव इन गोवा, प्यासे नैन में अभिनय भी किया था।
उन्होंने सन् 1942 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। सन् 1946 में उनका पहला गीत- संग्रह यह पथ अनन्त, उसके बाद सन् 1948 में टुकड़े प्रकाशित हुआ और इसके साथ- साथ वे साहित्यिक पत्रिका परख का संपादन भी करते रहे। सन् 1952-53 में फिल्मों में गीत लिखने का कार्य किया और उसके बाद सन् 1954 से 1967 तक आकाशवाणी, मुम्बई से जुड़े रहे। विविध भारती के सुप्रसिद्ध हवा महल कार्यक्रम हेतु नाटकों के निर्देशन के अलावा, गीतों भरी कहानियां और अन्य कार्यक्रमों हेतु लेखन कार्य करते रहे, फिल्म कलाकारों से भेंट- वार्ताएं कीं। विविध भारती छोडऩे के बाद कुछ प्रायोजित कार्यक्रमों में भाग लेने के अलावा आठवें दशक में टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित सुप्रसिद्ध सिने पाक्षिक माधुरी से जुड़े रहे। बाद में वर्षों तक उन्होंने केवल साहित्यिक लेखन किया। कहानी, कविता, उपन्यास विधाओं में उनकी लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
फिल्म श्री नगद नारायण 1955 के एक लम्बे हास्य गीत- यह मुंह मसूर की दाल.. के 78rpm रिकार्ड पर गीतकार के रूप में डी.एन.मधोक का नाम दिया है जबकि वास्तव में यह गीत उनकी ही कलम से निकला था और फिल्म की प्रचार पुस्तिका में स्पष्ट रूप से उनका नाम 'मधुप' अंकित है। हिन्दी फिल्म गीत कोश, खंड-3 (1951-60) में ढूंढने पर फिल्मों हेतु उनके लिखे अन्य गीतों कोई जानकारी नहीं मिल सकी है। उनकी बड़ी बेटी पूनम, सेना से सेवानिवृत्त अपने पति अमरेश प्रसाद के साथ एवरशाइन नगर, मलाड (पश्चिम) में रहती हैं, उनकी पत्नी का निधन सन् 2002 में हो गया था उसके बाद से मधुप जी पुष्पा पार्क, मलाड (पूर्व) में अकेले ही रहते थे लेकिन पिछले 1 वर्ष से उनकी देख- रेख सूचक अस्पताल में हो रही थी। 
सन् 1959-60 में मीनाकुमारी से होने वाली उनकी मुलाकात बाद के वर्षों में घनिष्ठता में बदल गई। मीनाकुमारी के दु:ख- दर्द के सहभागी प्रत्यक्षदर्शी बने मधुप शर्मा ने उनके उन लम्हों का सजीव चित्रण अपने लिखे उपन्यास (जीवनी) 'आखिरी अढाई दिन' में किया है। इस उपन्यास को किताबघर प्रकाशन दरिया गंज, नई दिल्ली द्वारा पेपरबैक में इसे प्रकाशित किया गया है। (लिस्नर्स बुलेटिन से)

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