- सादगी की नई मिसाल
गुजरात में नर्मदा जिले के आईएएस अफसर ने सामूहिक विवाह सम्मेलन में शादी रचाकर सादगी की नई मिसाल पेश की है। अक्षय तृतीया पर साबरकांथा जिले के भिलोड़ा तहसील में एक विवाह सम्मेलन में डिप्टी कलेक्टर विजय खराडी ने सात फेरे लिए। सन् 2009 में आईएएस परीक्षा पास करने वाले विजय ने स्कूल टीचर सीमा गरासिया से विवाह किया। विजय और सीमा दोनों आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। तड़क- भड़क से दूर आयोजित इस समारोह में विजय के चंद रिश्तेदार ही मौजूद थे। उनके भाई शिरीष ने बताया कि विजय चाहते तो बड़ा समारोह आयोजित कर सकते थे। लेकिन उन्होंने बेकार के खर्चो से बचने के लिए ऐसा किया। डूंगरी गरासिया समुदाय द्वारा आयोजित इस विवाह समारोह में कुल 35 जोड़ों ने शादी रचाई।
राष्ट्रीय खेल, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु के बाद राष्ट्रीय गौरव में एक नाम और शामिल होने जा रहा है वह है चाय। भारत सरकार ने घोषणा की है कि 17 अप्रैल 2013 से चाय राष्ट्रीय पेय बन जाएगी। असम में चाय का पहला पौधा उगाने वाले मणिराम दीवान की याद में यह एलान किया गया है। 2013 में मणिराम दीवान की 212वीं जन्मशती होगी। मणिराम दीवान जिन्हें इस इलाके में चाय की व्यावसायिक खेती शुरू करने के लिए जाना जाता है। असम से ब्रिटिश लोगों को बाहर निकालने के लिए 1857 के विद्रोह में उनके शामिल होने पर उन्हें फांसी की सजा दे दी गई थी।
आज भारत में चाय का जो सामाजिक और व्यवसायिक रूप है वो भारत में अंग्रेजों के हाथों शुरू हुई बड़े पैमाने पर इसकी खेती की देन है। अंग्रेजों ने इस देश में चाय की संस्कृति को शुरू किया और पाल पोस कर समृद्ध बनाया।
16 वीं सदी में जब पुर्तगाली व्यापारियों से यूरोप चाय मंगवाता था, तब इसे चा कहा जाता था। 1750 में चाय के जानकार चीन से एजोरस द्वीप गए और वहां चाय को जैसमीन और मैलो के साथ उगाया ताकि चाय को अलग खुशबू मिले। भारत के आदिवासी असम चाय का पौधा उगाते थे। बहरहाल अंग्रेजों की चाय की दीवानगी इसे भारत ले कर आई। उत्तर पूर्वी भारत की वादियों में इसकी खेती को व्यावसायिक रूप मिला, ब्रिटिश राज ने इससे काफी फायदा उठाया। चीन में जहां ग्रीन टी ज्यादा पी जाती है वहीं भारत में काली चाय ज्यादा पसंद की जाती है। समय के साथ इसे दूध में उबाले जाने की परंपरा शुरू हो गई।
आज भारत में चाय का जो सामाजिक और व्यवसायिक रूप है वो भारत में अंग्रेजों के हाथों शुरू हुई बड़े पैमाने पर इसकी खेती की देन है। अंग्रेजों ने इस देश में चाय की संस्कृति को शुरू किया और पाल पोस कर समृद्ध बनाया।
16 वीं सदी में जब पुर्तगाली व्यापारियों से यूरोप चाय मंगवाता था, तब इसे चा कहा जाता था। 1750 में चाय के जानकार चीन से एजोरस द्वीप गए और वहां चाय को जैसमीन और मैलो के साथ उगाया ताकि चाय को अलग खुशबू मिले। भारत के आदिवासी असम चाय का पौधा उगाते थे। बहरहाल अंग्रेजों की चाय की दीवानगी इसे भारत ले कर आई। उत्तर पूर्वी भारत की वादियों में इसकी खेती को व्यावसायिक रूप मिला, ब्रिटिश राज ने इससे काफी फायदा उठाया। चीन में जहां ग्रीन टी ज्यादा पी जाती है वहीं भारत में काली चाय ज्यादा पसंद की जाती है। समय के साथ इसे दूध में उबाले जाने की परंपरा शुरू हो गई।
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