- गिरीश पंकज
प्रेस की स्वतन्त्रता पर
अक्सर बातें होती रहती हैं। मजे की बात यह है कि इस पर वे लोग भी बढ़- चढ़
कर अपने विचार रखते हैं, जो लोग प्रेस की स्वतन्त्रता पर अन्कुश लगाने के
लिये जाने जाते हैं। राजनीति से जुड़े लोग पहले नंबर पर रखे जा सकते हैं।
लेकिन अभिव्यक्ति के लिए संघर्षरत पत्रकारों ने कभी भी इस बंधन की परवाह
नहीं की और जो कुछ लिखा, हिम्मत के साथ लिखा। 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'
प्रेस का अपना अधिकार है लेकिन इस अधिकार का पूरी दुनिया में दमन होता रहा
है। जिन देशों में स्वतंत्रता का दम भरा जाता रहा है, वहाँ भी अभिव्यक्ति
का गला घोटने का काम होता रहा है। 'विकिलीक्स' जैसे वैश्विक सूचना माध्यम
हमारे सामने हैं। और उसका दमन और संघर्ष भी हमने देखा। भारत सहित दुनिया के
अनेक देशों में पत्रकारों की हत्याएँ होती रही हैं। मतलब यह है कि दुनिया
भर में अभिव्यक्तियों का दमनात्मक कुकर्म होता रहा है, फिर भी जो लोग
सच्चाई के पैरोकार रहे हैं, वे निर्भीक हो कर अपना काम करते रहे। यह और बात
है कि उन्हें मौतें मिलीं। वे शहीद हुए, लेकिन अपनी स्वतंत्रता से
उन्होंने समझौता नहीं किया।
प्रेस स्वतंत्रता अधिकार दिवस को जब हम याद करते हैं तो संतोष होता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल को महत्व दिया गया। हमारे बीच वे जुझारू पत्रकार भी रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और सच को सामने लाकर एक पत्रकार का फर्ज निभाया। ऐसे बहादुर पत्रकार हर कहीं मिलते हैं। छोटे कसबे हों, या महानगर, कलमवीरों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर अनेक ऐसी खबरें सामने लाने की कोशिशें कीं जो जनहित में जरूरी थी। दुनिया भर में बड़े- बड़े घोटालों को उजागर करने में मीडिया के लोगों का ही हाथ रहा है। अमरीका के 'वाटरगेट कांड' से लेकर भारत के 'टू-जी' जैसे मामलों को सामने लाने वाले पत्रकार ही रहे हैं।
आज पत्रकारिता बाजारवाद की चपेट में है। अधिकतर मीडिया मानसिक सौदागर किस्म के लोग हैं। वे अखबार नहीं, बड़ी दुकान संचालित करने की मानसिकता से ग्रस्त हैं। इस कारण अब मीडिया की प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। अब 'स्कूप' पर कम ही ध्यान दिया जाता है। सत्ता से जुड़ी खबरें पहली प्राथमिकता बन चुकी है। उसके बाद सनसनी फैलाने वाली खबरें हैं। और अब तो 'स्टिंग' आपरेशन होने लगे हैं। नेताओं, धर्मगुरुओं, कलाकारों के स्टिंग आपरेशन। इसका मतलब पत्रकारिता नहीं, स्वार्थ है। अपने टीवी चैनलों की 'टीआरपी' बढ़ाने या अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे काम किए जाते हैं। हालांकि इसका लाभ समाज को ही मिलता है, मगर इसके पीछे उद्देश्य पवित्र नहीं होता।
पत्रकारिता पावन उद्देश्यों का नाम है। लोक मंगल का भाव प्रमुख होना चाहिए। जब भारत मेंं पत्रकारिता की शुरुआत हुई तो जेम्स आगस्टस हिकी ने यही किया था। वह अपने ही लोगों की कमजोरियों को, बुराइयों को सामने लाने का काम करता था। उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी। उसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा । उसे देश छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन जब तक 'हिकी गजट' निकलता रहा, उसके माध्यम से अंग्रेज सरकार की आलोचनाएँ भी होती रहीं। तो, यह है हमारी परम्परा। पत्रकारिता की परम्परा, प्रेस की परम्परा, जहाँ सच के लिए संघर्ष का संकल्प है, प्रतिबद्धता है।
मुक्तिबोध की मशहूर कविता है 'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे। तोडऩे ही होंगे मठ और गढ़ सारे'। इन पंक्तियों के लेखक ने भी कभी पत्रकारिता की अस्मिता को रेखांकित करने वाली पंक्तियाँ लिखी थीं कि 'हर हाल में हम सच का बयान करेंगे, बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे। खुद को अल्लाह जो मानने लगे, ऐसे हर शख्स को इंसान करेंगे'। प्रेस का काम यही है, लेकिन इसमें खतरा बहुत है। क्योंकि जो कहता है कि प्रेस की स्वतंत्रता होनी चाहिए, वही वक्त आने पर सबसे पहले प्रेस का दमन करना चाहता है। अनुभव यही बताता है कि जब- जब किसी प्रेस या पत्रकार ने हिम्मत के साथ सच लिखा, किसी की पोल खोली, तो लोग उसकी जान के दुश्मन बन गए। समाज का कोई भी ताकतवर वर्ग हो, उसकी आँखों की किरकिरी बनने वालों में प्रेस पहले नंबर पर है। यह समकालीन चरित्र है कि हम गलत भी करेंगे, और उसका पर्दाफाश भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अश्लील या भ्रष्ट हरकतें भी करेंगे और अगर उसकी सीडी सामने आ गई तो, उसको स्वीकार न करके, यह बतलाने की कोशिश करेंगे कि यह उनकी छवि खराब करने के लिए कृत्रिम तरीके से बनाई गई है।
भ्रष्टाचार या घोटलों की जो खबरें सामने आती हैं, उनके साथ भी यही होता है। खबर सामने लाने वाले पत्रकारों पर पीत पत्रकारिता का आरोप मढ़ दिया जाता है। अपनी बदसूरती को स्वीकार नहीं करते और दर्पण को तोडऩे में लग जाते हैं। इसलिए यह निर्विवाद सत्य है कि पत्रकारिता जोखिम का ही दूसरा नाम है। खासकर ऐसी पत्रकारिता जो मिशन है, कमीशन नहीं। जिसमें परिवर्तन की ललक है। जो अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करना चाहती है। ऐसी पत्रकारिता और ऐसे पत्रकारों के सामने जीवन भर चुनौती बनी रहती है। कभी वे जान से हाथ धोते हैं, कभी हाशिये पर कर दिए जाते हैं। कुछ अखबारों को छोड़ दें, तो अब अधिकांश अखबारों में स्कूप लापता हैं। वहाँ राजनीति का स्तुति गान अधिक है। अपसंस्कृति को बढ़ावा है और लाभ कमाने के लिए अश्लीलता परोसने वाले विज्ञापन भी हैं।
ऐसे संक्रमण काल में हम प्रेस स्वतंत्रता अधिकार दिवस को याद करते हैं, तो आत्म- मंथन का अवसर भी मिलता है जिसके लिए कभी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि 'हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिल कर ये समस्याएँ सभी'।
अगर प्रेस के पास स्वतंत्रता का अधिकार है तो हमें ऐसा समाज या ऐसी सरकार भी बनानी होगी, जो सच का दर्पण दिखाने वाले लोगों को संरक्षण दे। समाज तभी खुशहाल होगा, जब भ्रष्टों का पर्दाफाश होगा। और वे परिदृश्य से बाहर कर दिए जाएँगे। राजनीतिक व्यवस्था में श्रेष्ठ लोगों की संख्या बढऩी चाहिए। इस काम में मीडिया का रोल बेहद महत्वपूर्ण है। मीडिया को मिले इस अधिकार का रचनात्मक और ईमानदार इस्तेमाल होता रहे, इसके लिए जरूरी यह भी है कि सच- सच लिखने वाले पत्रकारों को, या अखबारों को समाज का संरक्षण मिले। सत्ता का नहीं। सत्ता तो अक्सर भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करती है। वह पत्रकारों को खरीदने पर तुली रहती है। फिर भी संतोष की बात है कि अभी भी ऐसे पत्रकार हैं, जो बिकते नहीं। और अपनी अंतिम सांस तक सच्चाई को लिखने की प्रतिबद्धता दिखाते हैं। जब तक ऐसी सोच वाले पत्रकार मौजूद रहेंगे, अन्याय का प्रतिकार होता रहेगा और साहसिक, ईमानदार, प्रतिबद्ध यानी की मिशनजीवी पत्रकारिता अपने होने को सार्थक करती रहेगी।
संपर्क: जी- 31, नया पंचशील नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़- 492001 मो. 094252 12720 Email- girishpankaj1@gmail.com
आज पत्रकारिता बाजारवाद की चपेट में है। अधिकतर मीडिया मासिक सौदागर किस्म के लोग हैं। वे अखबार नहीं, बड़ी दुकान संचालित करने की मानसिकता से ग्रस्त हैं। इस कारण अब मीडिया की प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। अब 'स्कूप' पर कम ही ध्यान दिया जाता है। सत्ता से जुड़ी खबरें पहली प्राथमिकता बन चुकी है। उसके बाद सनसनी फैलाने वाली खबरें हैं।
प्रेस स्वतंत्रता अधिकार दिवस को जब हम याद करते हैं तो संतोष होता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल को महत्व दिया गया। हमारे बीच वे जुझारू पत्रकार भी रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की और सच को सामने लाकर एक पत्रकार का फर्ज निभाया। ऐसे बहादुर पत्रकार हर कहीं मिलते हैं। छोटे कसबे हों, या महानगर, कलमवीरों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर अनेक ऐसी खबरें सामने लाने की कोशिशें कीं जो जनहित में जरूरी थी। दुनिया भर में बड़े- बड़े घोटालों को उजागर करने में मीडिया के लोगों का ही हाथ रहा है। अमरीका के 'वाटरगेट कांड' से लेकर भारत के 'टू-जी' जैसे मामलों को सामने लाने वाले पत्रकार ही रहे हैं।
आज पत्रकारिता बाजारवाद की चपेट में है। अधिकतर मीडिया मानसिक सौदागर किस्म के लोग हैं। वे अखबार नहीं, बड़ी दुकान संचालित करने की मानसिकता से ग्रस्त हैं। इस कारण अब मीडिया की प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। अब 'स्कूप' पर कम ही ध्यान दिया जाता है। सत्ता से जुड़ी खबरें पहली प्राथमिकता बन चुकी है। उसके बाद सनसनी फैलाने वाली खबरें हैं। और अब तो 'स्टिंग' आपरेशन होने लगे हैं। नेताओं, धर्मगुरुओं, कलाकारों के स्टिंग आपरेशन। इसका मतलब पत्रकारिता नहीं, स्वार्थ है। अपने टीवी चैनलों की 'टीआरपी' बढ़ाने या अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे काम किए जाते हैं। हालांकि इसका लाभ समाज को ही मिलता है, मगर इसके पीछे उद्देश्य पवित्र नहीं होता।
पत्रकारिता पावन उद्देश्यों का नाम है। लोक मंगल का भाव प्रमुख होना चाहिए। जब भारत मेंं पत्रकारिता की शुरुआत हुई तो जेम्स आगस्टस हिकी ने यही किया था। वह अपने ही लोगों की कमजोरियों को, बुराइयों को सामने लाने का काम करता था। उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी। उसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा । उसे देश छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन जब तक 'हिकी गजट' निकलता रहा, उसके माध्यम से अंग्रेज सरकार की आलोचनाएँ भी होती रहीं। तो, यह है हमारी परम्परा। पत्रकारिता की परम्परा, प्रेस की परम्परा, जहाँ सच के लिए संघर्ष का संकल्प है, प्रतिबद्धता है।
मुक्तिबोध की मशहूर कविता है 'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे। तोडऩे ही होंगे मठ और गढ़ सारे'। इन पंक्तियों के लेखक ने भी कभी पत्रकारिता की अस्मिता को रेखांकित करने वाली पंक्तियाँ लिखी थीं कि 'हर हाल में हम सच का बयान करेंगे, बहरे तक सुन लें वो गान करेंगे। खुद को अल्लाह जो मानने लगे, ऐसे हर शख्स को इंसान करेंगे'। प्रेस का काम यही है, लेकिन इसमें खतरा बहुत है। क्योंकि जो कहता है कि प्रेस की स्वतंत्रता होनी चाहिए, वही वक्त आने पर सबसे पहले प्रेस का दमन करना चाहता है। अनुभव यही बताता है कि जब- जब किसी प्रेस या पत्रकार ने हिम्मत के साथ सच लिखा, किसी की पोल खोली, तो लोग उसकी जान के दुश्मन बन गए। समाज का कोई भी ताकतवर वर्ग हो, उसकी आँखों की किरकिरी बनने वालों में प्रेस पहले नंबर पर है। यह समकालीन चरित्र है कि हम गलत भी करेंगे, और उसका पर्दाफाश भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अश्लील या भ्रष्ट हरकतें भी करेंगे और अगर उसकी सीडी सामने आ गई तो, उसको स्वीकार न करके, यह बतलाने की कोशिश करेंगे कि यह उनकी छवि खराब करने के लिए कृत्रिम तरीके से बनाई गई है।
भ्रष्टाचार या घोटलों की जो खबरें सामने आती हैं, उनके साथ भी यही होता है। खबर सामने लाने वाले पत्रकारों पर पीत पत्रकारिता का आरोप मढ़ दिया जाता है। अपनी बदसूरती को स्वीकार नहीं करते और दर्पण को तोडऩे में लग जाते हैं। इसलिए यह निर्विवाद सत्य है कि पत्रकारिता जोखिम का ही दूसरा नाम है। खासकर ऐसी पत्रकारिता जो मिशन है, कमीशन नहीं। जिसमें परिवर्तन की ललक है। जो अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करना चाहती है। ऐसी पत्रकारिता और ऐसे पत्रकारों के सामने जीवन भर चुनौती बनी रहती है। कभी वे जान से हाथ धोते हैं, कभी हाशिये पर कर दिए जाते हैं। कुछ अखबारों को छोड़ दें, तो अब अधिकांश अखबारों में स्कूप लापता हैं। वहाँ राजनीति का स्तुति गान अधिक है। अपसंस्कृति को बढ़ावा है और लाभ कमाने के लिए अश्लीलता परोसने वाले विज्ञापन भी हैं।
ऐसे संक्रमण काल में हम प्रेस स्वतंत्रता अधिकार दिवस को याद करते हैं, तो आत्म- मंथन का अवसर भी मिलता है जिसके लिए कभी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि 'हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिल कर ये समस्याएँ सभी'।
अगर प्रेस के पास स्वतंत्रता का अधिकार है तो हमें ऐसा समाज या ऐसी सरकार भी बनानी होगी, जो सच का दर्पण दिखाने वाले लोगों को संरक्षण दे। समाज तभी खुशहाल होगा, जब भ्रष्टों का पर्दाफाश होगा। और वे परिदृश्य से बाहर कर दिए जाएँगे। राजनीतिक व्यवस्था में श्रेष्ठ लोगों की संख्या बढऩी चाहिए। इस काम में मीडिया का रोल बेहद महत्वपूर्ण है। मीडिया को मिले इस अधिकार का रचनात्मक और ईमानदार इस्तेमाल होता रहे, इसके लिए जरूरी यह भी है कि सच- सच लिखने वाले पत्रकारों को, या अखबारों को समाज का संरक्षण मिले। सत्ता का नहीं। सत्ता तो अक्सर भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करती है। वह पत्रकारों को खरीदने पर तुली रहती है। फिर भी संतोष की बात है कि अभी भी ऐसे पत्रकार हैं, जो बिकते नहीं। और अपनी अंतिम सांस तक सच्चाई को लिखने की प्रतिबद्धता दिखाते हैं। जब तक ऐसी सोच वाले पत्रकार मौजूद रहेंगे, अन्याय का प्रतिकार होता रहेगा और साहसिक, ईमानदार, प्रतिबद्ध यानी की मिशनजीवी पत्रकारिता अपने होने को सार्थक करती रहेगी।
संपर्क: जी- 31, नया पंचशील नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़- 492001 मो. 094252 12720 Email- girishpankaj1@gmail.com
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