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May 30, 2012

हाइकुः प्रेम

- रचना श्रीवास्तव
1
हाथ पे गिरी
प्रेम- बूँद, जीवन
महक गया
2
तुम सूरज
मैं किरण तुम्हारी
साथ जलती
3
संध्या को भूल
ऊषा से प्यार करो
कैसे सहूँ मैं
4
मैं नर्म लता
तुम तरु विशाल
लिपटी फिरूँ
5
तुम प्रभात
मैं रजनी, मिलन
अब हो कैसे ?
6
तुम जो आये
उगा हथेली चाँद
नैन शर्माए।
7
माँग भरें, ये
कोमल भावनाएँ
छुओं जो तुम
8
चाँदनी ओढ़े
बादल का घूँघट
चन्दा जो आए
9
तुम हो वैसे
दिल में धड़कन
होती है जैसे
10
प्रेम की बाती
बिना तेल के जले
अजब बात

संपर्क- द्वारा श्री रमाकान्त पाण्डेय ए-36, सर्वोदय नगर लखनऊ,
मो. 093365 99000, rach_anvi@yahoo.com
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