यात्री, यात्रा, घूमना व घुम
क्कड़ी ये सब ऐसे ख्यालों या स्फूर्ति का एहसास है, जो हमें रोज़मर्रा से दूर प्रकृति और सौंदर्य के नज़दीक लेकर आता है। घूमना या फिर एक जगह से दूसरी जगह जाना, हमारे स्वभाव, स्वास्थ्य और अंतर्मन की चेतना को जैसे जीवंत कर देता है।
कहीं भी नई जगह जाना या यों कहें कि एक खोज, सौंदर्य और मनमस्त खुशी से साक्षात्कार करना जीवन की आवश्यकता है । नए अनुभव, नई वाणी और नए रीति-रिवाज का मेल है।
जब भी कबीर, नानक और राहुल सांकृत्यायन जी के साहित्य से मुखातिब होते हैं या मोहन राकेश (आखिरी चट्टान तक), महादेवी वर्मा जी के संस्मरण या सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति रास या फिर कुछ मनचलों और ज़िंदादिलों का लद्दाख की वादियों में दो पहिए पर सवार होकर बर्फ़ को छू लेने का जज़्बा ….ये सभी कुछ एक स्वस्थ और सदाबहार दुनिया की खुशहाल मिठाई का स्वाद ही तो है। सच में प्रकृति या यों कहें कि अपने देश के स्वरूप से मिलना बहुत ज़रूरी है।
देश का स्वरूप क्या है ? यह वास्तव में जान लें , तो सारा पर्यावरण हमारा हो जाएगा। मैं तो इस बात में अटूट विश्वास रखती हूँ कि अपने देश का भूगोल जाने बिना ‘पढ़ा-लिखा होना’ है ही नहीं । बालपन से ही सागर, नदियों, पहाड़ों, पेड़ों, फूलों को देखते हुए उनके नज़दीक चले जाएँ, तो देश-प्रेम होते देर नहीं लगेगी। हम बचपन को क, ख, ग से लेकर अंग्रेज़ियत तक, सब कुछ ओढ़ा सकते हैं; लेकिन विडंबना यह कि गंगा या पहाड़ों की हवा में श्वासोछ्वास होने की आदत से महफूज़ रखते हैं।चलिए, आज याद करते हैं रेलगाड़ी का वो सुहावना सफ़र,वो खिड़की के पास बैठना, बार-बार चंपक, चंदामामा और विक्रम- बैताल की पत्रिकाओं के लिए भाई -बहनों के संग नोक- झोंक हो जाना। सभी कुछ जैसे आँखों की नाव में सवार हो जाता है। चलती गाड़ी में पेड़ों का संग संग दौड़ना,गाय, बैलगाड़ी, बकरियों के झुंड,बहती नदियाँ सभी कुछ घूमने-फिरने का एहसास ही तो था। जब भी कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम तय होता है, तो स्वयं में एक स्फ़ूर्ति तो आती ही है; पर साथ ही साथ ले जाने वाले सामान को सहेजना, आवश्यक चीजें याद रखना, समय, तिथि और व्यवस्था पर विचार करना सभी कुछ आपाधापी से दूर नयापन और खुशहाली से जोड़ता है। घर से दूर जब भी हम पहाड़ी या समुद्री यात्रा पर निकले, तो बहुत खूबी से हर लम्हे की जिया है हमने। तभी तो कहते हैं-
Journey is more beautiful than the destination.
पर एक सवाल मन को अकसर टटोलता है कि क्या यात्रा के भी अलग-अलग अंदाज़, प्रकार या फिर सलीका होता है ? जी हाँ होता तो है?
मस्त, बेफिक्र और सदाबहार यात्रा या फिर ऐश्वर्य, विलास या केवल आरामपरस्त यात्रा।
यात्रा सुख-समृद्धि से दूर प्रकृति मिलन की अनूठी चाह भी हो सकती है । घंटों पहाड़ी रास्तों पर चलते हुए, पक्षियों की चहचहाहट फिर और आगे बढ़ते झरनों की ठंडक भरी बौछारें। इतना ही नहीं, पहाड़ों से गिरते पत्थरों में जानवरों की आवाज़ का गूँजना। बर्फीली हवाएँ या आधी बर्फ़ और आधे पानी वाली लहरों पर पैर रखने का अद्भुत संगम, कमाल की वादियों में दिल झूम -झूम गाने लगता है कि आज मैं आज़ाद हूँ , दुनिया के चमन में। ऐसी प्रकृति की गोद में न भूख, न प्यास और न ही कोई दुनियावी गंध । एक और यात्रा का भी बुलावा हमें रोज़मर्रा से दूर रूहानियत के आह्वान से सराबोर करता है। आप और मैं ऐसी तीर्थ यात्रा को सदा अपने अंतर्मन में सँजोए हुए हैं। यह यात्रा जब भी किसी अदृश्य की खोज का संकेत देती है या फिर साक्षात्कार की अद्वितीय छवि से मिलान कराती है, तो साधक और साधना की पवित्रता और आलोक से चित्तरंजन हो जाता है। यह यात्रा फिर इस लोक से उस लोक का मेल ही तो है।यात्रा घुमक्कड़ी का भी नाम है। घूमते हुए न केवल नई जगह को देखना होता है, वहाँ की ज़िंदगी, खान-पान,बोली और पहनावा भी एक सुखद अनुभव होता है।
यात्रा के एक अनूठे रंग में आज हमारे युवा भी खूब रंगीन हो जाते हैं। नौकरी की खोज या नौकरी मिलने पर घर से बाहर बार- बार आना और जाना। यह यात्रा खुशहाली और आज़ादी तो देती है, पर घर, अपनापन और स्वाद सभी कुछ फिर- फिर याद आता है। विदेश यात्रा पर आना और जाना भी स्वदेश प्रेम को स्पर्श किए बिना रह नहीं पाता। रोमाँ चक यात्राएँ, समुद्री जहाजों की कहानियाँ हमें एक अलग लोक की सैर तो कराती ही हैं। यात्राएँ कभी मजबूरी तो कभी ज़रूरत के लिए भी की जाती हैं। अपनों से मिलने वाली यात्राएँ किसी उत्सव से कम नहीं होती हैं। तभी तो कहते हैं, यात्रा में साथी गंतव्य से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पर हाँ, यात्रा को दिखावे और महँगे रिज़ॉर्ट से दूर रखें, तो घूमने-फिरने की गरिमा सलामत रहेगी।
यात्रा सरस, स्वस्थ और स्फ़ूर्ति से भरपूर ज़िंदगानी का मधुर गीत है। बुद्ध की यात्राएँ करुणा और अहिंसा के गीत गाती हैं। यात्रा अंत से बेअंत तक जाने का भी मधुर संगीत है। निरंतर यात्री बने रहना जीवन की निरंतरता को दर्शाता है। कभी- कभी यह चंचल मन भी बिना किसी खर्च के यात्रा की लंबी दौड़ लगवाता रहता है।
स्वस्थ चित्त, खुशहाल स्वभाव और सबके साथ खुशी बाँटने वाले अकसर लंबी यात्राओं पर निकल जाते हैं। सुस्ती, नीरसता और कंजूसी हमें यात्रा से दूर, प्रकृति से दूर और रुहानियत से अलग कर दिया करती है।
अतः मन के संग जिस्मानी यात्राओं का भी बहुत महत्व है इस छोटी सी ज़िंदगानी में।
दोस्तो! जब भी जहाँ भी मौका मिले घूमने-फिरने के सुहावने अवसर मत खोना।
3 comments:
यात्रा का सटीक विश्लेषण करता आलेख। सुदर्शन रत्नाकर
सच में नानक, बुद्ध में घूमते हुए सारे संदेश मनुष्य जाति को दिए हैं
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
इस लेख में भी यही संदेश है अतः जब भी मौका मिले चूकना नहीं चाहिए।
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