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Oct 1, 2023

दो लघु व्यंग्यः 1. दवा, 2. यस सर

 - हरिशंकर परसाई 

1. दवा

कवि ‘अनंग’ जी का अन्तिम क्षण आ पहुँचा था।

डाक्टरों ने कह दिया कि यह अधिक से अधिक घंटे भर के मेहमान हैं। अनंग जी पत्नी ने कहा कि कुछ ऐसी दवा दे दें, जिससे पाँच छह घण्टे जीवित रह सकें, ताकि शाम की गाड़ी से आने वाले बेटे से मिल लें। डाक्टरों ने कहा कि कोई भी दवा इन्हे घण्टे भर से अधिक जीवित नहीं रख सकती।

इसी समय अनंग जी के मित्र आए। वे बोले ‘‘मैं इन्हे मजे से कई घण्टे जीवित रख सकता हूँ।’’

डाक्टरों ने हँसकर कहा ‘‘यह असंभव है।’’

मित्र ने कहा ‘‘खैर मुझे कोशिश तो कर लेने दीजिए । आप सब लोग बाहर हो जाइए।’’

सब बाहर चले गए। मित्र अनंग जी के पास बैठे और बोले ‘‘अनंग जी, अब तो आप सदा के लिए चले। यह सुललित कण्ठ अब कहाँ सुनने को मिलेगा। जाते-जाते कुछ सुना जाइए।’’

यह सुनते ही अनंग जी उठकर बैठ गए और बोले, ‘‘मन तो नहीं है, पर आपकी प्रार्थना टाली भी नहीं जा सकती। अच्छा, अलमारी में से कॉपी निकालिए न’’।

मित्र ने कॉपी उठाकर हाथ में दे दी और अनंग जी कविता पाठ करने लगे। घण्टे पर घण्टे बीतते गए। शाम को गाड़ी आ गई और लड़का भी आ गया। उसने कमरे में घुसते ही देखा कि पिता जी कविता पढ़ रहे हैं और उनके मित्र मरे पड़े हैं।


2. यस सर
एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह में उनकी मुख्यमंत्री से भेंट हो गई। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था। मुख्यमंत्री ने उनसे कहा - आप मजे में तो हैं। कोई कष्ट तो नहीं है? लेखक ने कह दिया - कष्ट बहुत मामूली है। मकान का कष्ट। अच्छा- सा मकान मिल जाए, तो कुछ ढंग से लिखना-पढ़ना हो। मुख्यमंत्री ने कहा - मैं चीफ सेक्रेटरी से कह देता हूँ। मकान आपका 'एलाट' हो जाएगा।
मुख्यमंत्री ने चीफ सेक्रेटरी से कह दिया कि अमुक लेखक को मकान 'एलाट' करा दो।
चीफ सेक्रेटरी ने कहा - यस सर।
चीफ सेक्रेटरी ने कमिश्नर से कह दिया। कमिश्नर ने कहा - यस सर।
कमिश्नर ने कलेक्टर से कहा - अमुक लेखक को मकान 'एलाट' कर दो। कलेक्टर ने कहा - यस सर।
कलेक्टर ने रेंट कंट्रोलर से कह दिया। उसने कहा - यस सर।
रेंट कंट्रोलर ने रेंट इंस्पेक्टर से कह दिया। उसने भी कहा - यस सर।
सब बाजाब्ता हुआ। पूरा प्रशासन मकान देने के काम में लग गया। साल डेढ़ साल बाद फिर मुख्यमंत्री से लेखक की भेंट हो गई। मुख्यमंत्री को याद आया कि इनका कोई काम होना था। मकान 'एलाट' होना था।
उन्होंने पूछा - कहिए, अब तो अच्छा मकान मिल गया होगा?
लेखक ने कहा - नहीं मिला।
मुख्यमंत्री ने कहा - अरे, मैंने तो दूसरे ही दिन कह दिया था।
लेखक ने कहा - जी हाँ, ऊपर से नीचे तक 'यस सर' हो गया।

2 comments:

Veena Vij said...

बहुत बढ़िया व्यंग कथाएं हैं दोनों। आखिर हमारे जबलपुरिया पड़ोसी परसाईं जी के हैं।

Anonymous said...

बहुत ख़ूब। बढ़िया व्यंग्य लघुकथाएँ। सुदर्शन रत्नाकर