देश में पिछले कुछ महीने में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण आयोजन और कार्य हुए, जो भारत के इतिहास में मील का पत्थर सबित हुए हैं। देश को गर्वित और प्रत्येक देशवासी के मस्तक को ऊँचा कर देने वाला अभियान था- चंद्रयान-3, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा 23 अगस्त 2023 को भेजा गया तीसरा भारतीय चंद्र मिशन है। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला मिशन बनकर चंद्रयान-3 ने इतिहास रच दिया है। दक्षिणी ध्रुव एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी पहले कभी खोज नहीं की गई थी। भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ चंद्रमा पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है। वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम और धैर्य का परिणाम है यह चंद्रयान-3 मिशन। जिसमें महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी को नकारा नहीं जा सकता।
भारत के लिए दूसरा सफल आयोजन रहा - भारत की अध्यक्षता में 18वाँ G20 शिखर सम्मेलन। 9 और 10 सितंबर, 2023 को आयोजित यह पहला शिखर सम्मेलन था, जब भारत ने G20 देशों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की। इस शिखर सम्मेलन का विषय ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ था, जिसका अर्थ है-‘विश्व एक परिवार है’। यह आयोजन देश की ताकत को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने और अपना लोहा मनवाने में पूर्णतः सफल रहा है।
और देश के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण अवसर रहा - गणेश चतुर्थी के शुभ दिन 27 साल से लंबित ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ नाम से महिला आरक्षण विधेयक का पास होना । इस विधेयक के पारित होने के बाद संसद के दोनों सदनों से लेकर विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 33 प्रतिशत हो जाएगी। नारी शक्ति का यह वंदन भारत के राजनीतिक परिदृश्य में स्त्री- पुरुष समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। यद्यपि यह बदलाव कई दशक पहले ही आ जाना था; परंतु राजनीति में नारी शक्ति की इस बढ़ती भागीदारी से देश के परिदृश्य में सुखद बदलाव आएगा।
भले ही इसका फायदा परिसीमन के बाद ही मिलेगा; परंतु राजनेता भी अब जान गए हैं कि आधी आबादी को हाशिए पर रखकर ज्यादा समय तक सत्ता पर काबिज नहीं रहा जा सकता। महिलाओं की काबिलियत अब हर क्षेत्र में दिखाई देने लगी है, तो राजनीति में उनकी भागीदारी इतनी कम क्यों। दरअसल पुरुष प्रभुत्व वाली मानसिकता के चलते किसी महिला को अपने से उच्च पायदान पर देखना लोग पचा नहीं पाते। कम से कम राजनीति में तो यही नजर आता है। अन्य क्षेत्रों में तो महिलाएँ अपनी काबिलीयत और अपनी बुद्धि के बल पर अपना लोहा मनवा लेती हैं और उच्च पायदानों पर पहुँच जाती हैं; परंतु राजनीति एक ऐसी जगह है, जहाँ तक पहुँचने के लिए किसी विशेष योग्यता की, किसी विशेष डिग्री की आवश्यकता नहीं होती , वहाँ पर अपना लोहा मनवाना जरा टेढ़ी खीर है। ऐसे में इस आरक्षण से वे कम से कम वहाँ तक पहुँच तो सकेंगी और जब कुर्सी पर बैठेंगी, तो अपनी काबिलीयत भी साबित कर ही लेंगी। अब तक तो उन्हें वहाँ तक पहुँचने ही नहीं दिया गया था । सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए उनका इस्तेमाल होता आया था। हम सब जानते हैं, अब तक अपने बूते पर जितनी भी नारी शक्ति ने राजनीति के पटल पर अपनी आवाज को बुलंदी के साथ रखा है, वह अपनी शक्ति और काबिलीयत के बल पर रखा है। इसी शक्ति को उन्हें आगे भी कायम रखना होगा।
यह बात अलग है कि चुनाव लड़ने के लिए 33 प्रतिशत योग्य उम्मीदवारों को ढूँढना उसी तरह मुश्किल होगा, जिस तरह पंचायत स्तर पर 33 प्रतिशत आरक्षण लागू होने के बाद हुआ था। तब चुनाव एक महिला के नाम पर लड़ा जाता था; पर कामकाज उसके पति करते थे और तभी से एक पदनाम प्रचलित हो गया था ‘सरपंच पति’ आज भी अनेक स्थानों पर सरपंच पतियों का ही बोलबाला होता है, यही कारण है कि ग्रामीण स्तर पर इस आरक्षण से जो बदलाव आने चाहिए, वे नजर नहीं आते। समय के साथ आज परिस्थिति बदल गई हैं। ग्रामीण स्तर पर काम करके आज अनेक महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
पिछले दिनों कौन बनेगा करोड़पति के माध्यम से सबकी नजरों में आई, छवि राजावत और नीरू यादव जैसी दो महिला सरपंच । छवि जयपुर के पास सोडा गाँव की सरपंच हैं। अपनी काबिलीयत के बल पर छवि ने अपने गाँव की तस्वीर ही बदल दी है। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएट और एमबीए छवि ने अपने गाँव की तरक्की के लिए कॉर्पोरेट फर्म की नौकरी छोड़कर एक अलग ही राह का चुनाव किया। छवि की उम्र 46 साल है। वे पिछले 10 सालों से सरपंच हैं। सबसे कम उम्र की ग्राम प्रधान बनी छवि की खासियत है कि वे किसी भी राजनीातिक पार्टी से नहीं जुड़ी हैं। वहीं नीरू यादव झुंझुनू जिले के लांबी अहीर गाँव की सरपंच हैं। ‘हॉकी वाली सरपंच’ के नाम से लोकप्रिय नीरू ने गाँव की लड़कियों के लिए हॉकी टीम बनाने अपनी दो साल की सैलरी दे दी। झुंझुनू गाँव के लोगों का जीवनस्तर सुधारने के लिए नीरू की खूब तारीफ की जाती है। उन्होंने गाँव को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए एक बर्तन बैंक शुरू किया। जहाँ से शादी और अन्य अवसरों पर बहुत कम कीमत पर किराए पर स्टील के बर्तन मुहैया कराए जाते हैं।कहने का तात्पर्य यही है कि राजनीति में महिलाओं को डमी के रुप में इस्तेमाल होने से बचना होगा और अपनी काबिलियत का लोहा मनवाना होगा।
यह तो तय है कि जब रास्ते बनते हैं तो उस पर चलते- चलते राही मंजिल तक पहुँच ही जाता है। चूँकि अब 33 प्रतिशत के लिए रास्ता बन गया है, तो वह रास्ता उन्हें मंजिल तक तो पहुँचाएगा ही। थोड़ा समय अवश्य लगेगा, पर अब यह बदलाव का दौर है- महिला पुरुष के बीच के भेदभाव मिट रहे हैं, महिलाएँ शिक्षित और जागरूक हो रही हैं। ऐसे में 33 प्रतिशत की आवाज जब गूँजेगी< तो वह सबपर भारी पड़ेगी।
15 comments:
आदरणीया,
बिल्कुल सही कहा आपने। समय बदल रहा है देश तथा नारी शक्ति दोनों के लिये। कहा गया है ना कि सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं।
- बदलते समय और बढ़ते कदम के साथ देश में समझ उपज चुकी है कि आधी आबादी को परे रख इस चुनौतीपूर्ण दौर में संसार पर अपनी प्रगति का परचम नहीं लहराया जा सकता। देर आयद दुरुस्त आयद।
- हमेशा की तरह सामयिक विषय पर साहसपूर्ण लेखन हेतु हार्दिक बधाई एवं साधुवाद। सादर 🙏🏽
नारी शक्ति स्वरूपा है अब दुनिया मान रही।
सुंदर समसामयिक लेख के लिए बधाई ।
प्रिया रत्ना जी,
सारे ही मसलों को आपने अपने संपादकीय में समेट लिया है। देश की महिलाओं को उच्च शिखर पर बिठाते हुए आपने वसुदेव कुटुंबकम का भी गुणगान कर दिया और भविष्य के लिए भी नारियों को सचेत कर दिया है कि उन्हें अधिकार मिला है तो उन्हें कुछ करके भी दिखाना होगा। साधुवाद!!!
हार्दिक आभार जोशी जी
बहुत बहुत धन्यवाद वीना जी
शुक्रिया दीपाली
बेहद सुन्दर सामयिक लेख।बधाई रत्ना जी।
मैगज़ीन का संपादकीय लिखने के लिए जितना धैर्य और साहस चाहिए उससे कहीं ज़्यादा इसके धैर्य को पढ़ने के लिए ज़रूरी है। यह एक साधना है।
मैगज़ीन से ज़्यादा उसकी विषय वस्तु महत्वपूर्ण है क्योंकि मैगज़ीन एक दृष्टिकोण है ज़ो विषयवस्तु के मूल से प्रेरित है प्रभावित है !
मैगज़ीन के माध्यम से आप एक लहज़ा सीख़ जाते हैं लेकिन जब वही दृष्टिकोण आपके मूल दृष्टिकोण पर अपना आधिपत्य स्थापित करने लगता है तब मतभेदों का सैलाब उमड़ने लगता है और आपको लगता है कि आप एक अजीबोग़रीब उलझन में उलझ से गए हैं।
मगर आपने संपादकीय में भारत के गौरव को चन्द्रयान, जी २० और महिला वंदन बिल में ऐसा बुना की पढ़ कर तबियत खुश हो गई !
किसी भी विषय पर आपकी हमारी सहमति अथव असहमति ज़रूरी नहीं क्योंकि ऐसा करने से निर्णय तो मिल जाता है लेकिन एक वांछित व्यक्तित्व का निर्माण रुक सा जाता है।
आपके इस मंतव्य को ऐसे भी समझ सकते हैं कि प्रवाहित जल धारा का कोई मत नहीं न सहमत होने का और न असहमत होने का….वो तो बस बहती ही जा रही हैं क्योंकि अविरल प्रवाह उसका मूल व्यक्तित्व है।
सादर !
डॉ दीपेन्द्र कमथान
बरेली !
शुक्रिया कमथान जी l🙏 आपने नए नजरिए से पत्रिका को देखा पढ़ा यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात हैl
अपका बहुत बहुत आभार...
सामयिक सम्पादकीय आपने हाल ही में घटित घटनाओं का वर्णन तो किया है साथ महिलाओं को सचेत भी किया है अपने अधिकारों का उपयोग कर उन्हें कुछ नया कुछ अलग करना है। सुंदर विचार। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुंदर लेख .. .....🙏
नारी तू है शक्ति रूपा,
तेरा हर रूप निराला है ।...
बधाई हो .... रत्ना जी 🙏
हार्दिक आभार और शुक्रिया सुदर्शन जी
शुक्रिया मीनाक्षी जी
हार्दिक धन्यवाद सुरंगमा जी
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