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Oct 1, 2023

जीव- जंतुः जी लेने दो

 -  दीपाली ठाकुर

हवा में मँडराती रंग -बिरंगी तितलियाँ किसे नहीं लुभाती, जमीन पर मखमल की गोली से लुढ़कते सुर्ख लाल रानी कीड़े ढूँढने के लिए भटकते फिरना, बरसाती अँधेरी रातों में टिमटिमाते जुगनुओं को इकट्ठा करने की कोशिशें, ड्रेगनफ्लाई की लड़ाई करवाना आपने भी बचपन मे इस तरह की हरकतें की ही होंगी। मुझे लगता है अधिकतर व्यक्तियों को जीवन में एक न एक बार चींटियों, मकोड़ों, ततैया, मधुमक्खी के काटने का अनुभव भी मिला ही होगा। गोबरीला (लेडिबग), तितलियाँ और भी न जाने कितने ही हरे, नीले, काले चमकीले या सुनहरे आकर्षक छोटे- छोटे से जीवों के शरीर कई बार प्रकृति की कारीगरी के चलते फिरते उदाहरण से लगते हैं तो वहीं कुछ कीड़े बड़े ही घिनौने भी। मेरा बचपन इन्ही नन्हें प्राणियों के किस्सों से भरा है और मुझे लगता है आप सभी के जीवन के भी कुछ किस्से तो याद आ ही जाएँगे इनसे जुड़े । 

तो आज हम बात करेंगे इन्ही कीड़ों की। व्यावहारिक तौर पर कोई भी व्यक्ति इन पर बात क्यों करना चाहेगा ? पर जो इन छुटके जीवों का पर्यावरण और हमारे जीवन में महत्त्व जानता समझता होगा उसे कतई इन बातों से गुरेज नही होगा। केवल सुंदर दीखने वाले कीड़े ही नहीं घिनौने कीड़ों की भी पर्यावरण में अपनी एक महती भूमिका है। दुनिया में कुल मिलाकर कीड़ों की 1.5 मिलियन अधिक ऐसी प्रजातियाँ है, जिनके नाम रखे गए हैं। साथ ही अनगिनत ऐसे कीड़े भी हैं, जिन्हें खोजा जाना और नाम देना अभी भी शेष है। कीड़े धरती पर मौजूद सभी जानवरों की कुल संख्या के तीन गुना अधिक हैं, यह धरती के हर कोने में मिल जाएँगे। इनके आकार, रंग, रूप, इतिहास और व्यवहार में अनगिनत विविधताएँ देखने को मिलती हैं।

 देखा जाए तो कई कीट विज्ञान के चमत्कार की तरह हैं। जैसे चींटियों के कान नहीं होते, लेकिन उनके पैर ही उनके कान होते हैं। वे अपने पैरों से ही जमीन के कंपन को समझती हैं। वहीं, मधुमक्खियों के छत्ते षट्कोणाकार के आकार में बने होते हैं। ये अनूठी इंजीनियरिंग के सटीक उदाहरण हैं। उनके पँख एक मिनट में 15,000 बार फड़फड़ाते हैं, जबकि जुगनू में बायोलुमिनेसिस, जिसकी वजह से ये चमकते हैं। क्या आपको पता है- जुगनू के अंडे भी चमकते हैं। वास्तव में ये कीड़े इकोसिस्टम में अहम भूमिका निभाते हैं। पौधों के लिए भी ये बेहद जरूरी हैं। हम जो खाना खाते हैं, फल खाते हैं, उनमें इनकी भूमिका सबसे अहम होती है। लगभग 90% फूल वाले पौधे और 75% फसलें परागण के लिए इन्हीं कीटों पर निर्भर करती हैं। खास बात यह है कि हमारे भोजन का हर तीन में से एक हिस्सा ऐसे परागकण से ही आता है। आपने दीमक के घर या साँप की बाँबी देखी ही होंगी । जब ये अपने घर बनाते हैं, तो ये मिट्टी की गुणवत्ता को भी बेहतर करते हैं। ये पानी और पोषक तत्त्वों को मिट्टी में मिलाते हैं। इतना ही नहीं, ये कीट हानिकारक कृषि कीटों पर भी अंकुश लगाते हैं। शहद, मोम, रेशम और अन्य उपयोगी उत्पादों की कल्पना भी, इनके बिना नहीं की जा सकती। मनुष्य न जाने कितनी सेवाओं के लिए इन छुटपुट से जीवों पर निर्भर है, कीड़े खाद्य शृंखला की बेहद अहम कड़ी होते हैं। इनमे से अनेक सर्वाहारी होते हैं, जो हमारी प्रकृति में मौजूद पौधों, कवक, मृत जानवरों, सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों समेत कई तरह के खाद्य पदार्थों को खा सकते हैं, इन्हे अपघटित करके यह पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

कुछ जानवर, जैसे छोटे पक्षी, मेंढक और अन्य सरीसृप और उभयचर, लगभग पूरी तरह से इन्ही कीटों के आहार पर जीवित रहते हैं। यदि इन जानवरों के खाने के लिए पर्याप्त कीड़े नहीं होंगे, तो इन पर निर्भर सभी जानवर भी मर जाएँगे, जिससे एक पूरी खाद्य शृंखला ही समाप्त हो जाएगी। यह खाद्य शृंखला अंततः मनुष्यों को भी प्रभावित करेगी। कीड़े अथवा कीट मृत जानवरों, जानवरों के कचरे और अन्य पौधों को भी अपघटित करते हैं, जो उस मिट्टी को निषेचित करने में मदद करते हैं, जिसमें हमारी फसलें उगती हैं। इंसानों तथा अन्य जीव जंतुओं के जीवन में बेहद अहम हिस्सेदारी के बावजूद, इनकी संख्या में ज़बरदस्त गिरावट देखी जा रही है। जानकारों और कई अध्ययनों ने इनके परिप्रेक्ष्य में खुलासे किए हैं, जहाँ उन्होंने बताया कि धरती पर मौजूद कीटों की सभी प्रजातियाँ, लगभग आधी से अधिक तेज़ी से घट रही हैं, और यदि परिस्थितियों में कोई बदलाव न आया, तो निकट भविष्य (अगले कुछ दशकों) में कीड़े-मकोड़ों की लगभग 40% प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ पूरी तरह विलुप्त हो सकती हैं। इनमें कीटों की वे प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जिनपर हमारे खाद्य संसाधन निर्भर हैं। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि कीड़ों की संख्या में गिरावट प्रवासी कीटभक्षी (ऐसे पक्षी, जो भोजन लिए पूरी तरह कीटों पर निर्भर हैं) को समान रूप से प्रभावित कर सकती है, उनके सामने अपने भोजन समेत, अपनी संतानों के पालन-पोषण की भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इस पक्षियों की शृंखला में चमगादड़ भी शामिल है। कीटों की संख्या में आई लगभग 76% प्रतिशत गिरावट के लिए सिंथेटिक कीटनाशकों और उर्वरकों से प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियों और रोगजनकों के साथ ही जलवायु परिवर्तन भी ज़िम्मेदार हैं। ये कीट विशेष तौर पर जैव विविधता हेतु पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है, कीटों की न केवल दुर्लभ बल्कि कुछ बेहद आम प्रजातियाँ भी विलुप्ति की कगार पर हैं। रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग का उल्लेख बहुत पुराने समय मे भी मिलता है । बीसवीं सदी की शुरुआत से ही सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग बहुतायत में होने लगा, जिसके दुष्परिणाम सदी के अंत तक सामने आने लगे । कीटनाशकों के असीमित अमानक उपयोग के कारण ही जमीन बंजर, हवा जहरीली होती गई , कैंसर जैसे भयावह रोगों के कारकों में कीटनाशकों का उपयोग भी अति महत्त्वपूर्ण है। बहुत स्वार्थ सिद्धि कर ली अब समस्त मानवजाति को पर्यावरण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाने का समय आ चुका है।

कीट या कीड़ों के बारे में हम सभी को उनसे होने वाले नुकसान ज्यादा याद आते हैं जबकि सच्चाई यह है कि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में उनकी भूमिका बहुत ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। नए अध्ययन इस बात पर जोर दिया गया है कि लोगों, सरकारों और वैज्ञानिकों को भी प्रकृति को कीड़ों से होने वाले में फायदों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

पारिस्थिति तंत्र  में हर तरह के जीव की अपनी भूमिका होती है। जिसमें कीट पतंगे  बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं यह बात दोहराई जा रही है।  शोधकर्ताओं ने  इस बात पर भी जोर दिया कि प्रजातियों के संरक्षण के साथ सरकारों को भी इस मामले में जारूकता फैलाने की जरूरत है। लेन्कास्टर यूनिवर्सिटी की अगुआई में हुए नए अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में व्यापक और गहराई से जुड़े नकारात्मक सांस्कृतिक पूर्वाग्रह एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से उनकी पारिस्थितिकी तंत्र  में अच्छी भूमिका की भावना लोगों में पनप नहीं सकी है। आज भी ज्यादातर लोग कीड़ों से घृणा या नफरत करते है, दुर्भाग्य से पूरी दुनिया में यह धारणा सरकारों की जैवविविधता के प्रति नीति में निष्क्रियता को भी आंशिक रूप से दर्शाती है। तीन दशकों के अंतरशासकीय रिपोर्ट्स जैवविविधता  के लक्ष्यों को सामने रखने के बाद भी, कीटों में वैश्विक जैवभार, प्रचुरता और विविधता लगातार कम होती जा रही है। लैन्केस्टर में इवनर्टिबरेट बायोलॉजी एंड कंजरवेशन पॉलिसी के विशेषज्ञ और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक फिलिप डोंकरस्ले ने बताया कि कीड़ों सहित जैवविविधता में गिरावट प्रायः मानवीय गतिविधियों का नतीजा है और संभावना इस बात की है ऐसा चलता भी रहेगा, जब तक हम ऐसे बिंदु पर न पहुँच जाएँ,जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र हमारी अपनी प्रजाति के लिए निर्णायक न हो जाए। डोकरस्ले का कहना है कि अंतरशासकीय कदम अभी तक प्रतिक्रिया देने में धीमें रहे हैं और वे तभी सक्रिय होते हैं, जब बदलाव को नजरअंदाज करना असंभव हो जाता है। राजनैतिक दृष्टिकोणों और बदलाव के कदमों पर ध्यान देना है तो पहले हमें कीड़ों के प्रति समाज के नजरिए को बदलने की जरूरत होगी।

एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कई अन्य तरह के फायदे भी गिनाए, जिनमें उनके पार्क या बगीचों में खूबसूरत तितलियों को देखने पर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव, उनके कॉस्मेटिक्स और दवा उद्योगों में विभिन्न किस्म के लाभ आदि शामिल हैं। इसके अलावा वैज्ञानिको ने कीड़ों  के संरक्षण में मदद करने के लिए कार्य- योजना के लिए कई रणनीतियों को प्राथमिक बताया है। इसमें सरकारों को सार्वजनिक तौर पर आगे आकर प्रयास कर अपनी निष्क्रियता दूर करना, कीड़ों की वजह से तकनीकी विकास को सामने लाना, पौधों, स्तनपायी जानवरों, पक्षियों के संक्षरण समूह का बहुत सी प्रजातियों पर अंतरनिर्भरता, कीड़ों के संरक्षण का दूसरी प्रजातियों को होने वाले फायदों की तरफ ध्यान आकर्षित करना अब हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। जिस तरह से वर्तमान में वर्मीकम्पोस्ट के माध्यम से समाज के दृष्टिकोण में वर्म्स या केंचुओं के प्रति नजरिया बदला है और उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी  है, उसी  तरह  अन्य कीट भी महत्त्व रखते हैं । कीट चाहे कृषि से संबंधित हों या घरेलू मच्छर, मक्खी , चींटी हमें जैविक तरीकों से ही उनसे निबटना होगा। आज जरूरत है कीट -विहीन नहीं कीटों के प्रबंधन के साथ जीवन को सुचारू रूप से चलने देने के लिए प्रयास करने की,  जो  पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखे, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहे । आवश्यकता है कि रसायनिक या सिंथेटिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशक और रणनीतियों से इनके प्रबंधन को महत्त्व दिया जाए ।  हमारी आने वाली पीढियाँ भी इन आकर्षक और महत्त्वपूर्ण जीवों के साथ स्वस्थ संतुलित पर्यावरण  का प्रबंधन आखिर हमसे ही तो सीखेगी। क्या आप नही चाहते कि जब कीटों के जिक्र हो, तो आगामी पीढ़ी भी उनके अनुभव  साझा करें। इन नन्हें जीवों का संरक्षण हमारे खुद के लिए एक जरूरी कदम है और इसी सोच को लेकर हमे इस अति आवश्यक कार्य में अभी से लग जाना चाहिए।

सम्पर्कः रोहिणीपुरम, रायपुर, छत्तीसगढ़

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