एक मामूली आदमी का मामूली दफ्तर में मामूली काम था। वह उत्साहित-सा दफ्तर गया। उत्साहित इसलिए कि आदमी ने सुन रखा था कि अब देश आजाद है। देश में लोकतंत्र है। अमीर-गरीब सब बराबर हैं यहाँ। अब किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। देश समाजवाद की ओर बढ़ रहा है। वह मामूली आदमी समाजवाद के झाँसे में आकर यह मान बैठा कि देश में अब हर आदमी बराबर है। यहाँ सब काम नियमानुसार होने लगे हैं। वह खुशी-खुशी अपना साधारण-सा काम करवाने ऑफिस में पहुँच गया।
ऑफिस साफ-सुथरा था। सामने ही देशभक्ति, जनसेवा और ईमानदारी की घोषणा करते हुए पोस्टर को देखकर आदमी का मन प्रसन्न हो गया। उसने सामने की टेबल पर बैठे हुए बाबू से अपने काम के विषय में बताया। बाबू उसी तरह मुस्कुराया, जैसे दुकानदार ग्राहक को देखकर मुस्कुराता है। आदमी ने अपने काम के विषय में बाबू को समझाया।
बाबू ने अपने अंदाज में कहा: “चाय पिएँगे?” आदमी कुछ कह पाता उसके पहले ही बाबू ने चपरासी को बुलाकर आदेश दिया: “देखते नहीं, कितनी देर से बैठे हैं ये! चाय पीना चाहते हैं।”
चपरासी ने आदमी से पूछा: “सिर्फ चाय पिएँगे या समोसे भी लाऊँ?”
आदमी कुछ निर्णय ले पाता, उसके पहले ही बाबू ने कहा: “अभी चाय ही ठीक रहेगी। आज ये पहली बार इस ऑफिस में आए हैं। सौ रुपये ले लो इनसे और दफ्तर में सबके लिए चाय ले आओ।” आदमी को मालूम नहीं था कि यह हर ऑफिस की कार्यशैली है। उसने औपचारिकता समझते हुए सौ का नोट चपरासी के हाथ में थमा दिया।
चाय पीने के पश्चात बाबू ने आदमी के केस में तनिक दिलचस्पी दिखाई। आदमी ने पुनः विस्तार से अपनी परेशानी बाबू को सुनाई। बाबू ने संक्षिप्त-सा जवाब देते हुए कहा - “इस काम के लिए नई फाइल खोलनी होगी। समय लगेगा। फिलहाल तो आप एक आवेदन पत्र छोड़ जाइए। फाइल तो खुले। आगे आप इसी प्रकार आते रहिए। समय-समय पर और जो कागज लगेंगे, हम आपको बता देंगे।”
इतना कहकर बाबू दूसरी फाइलों में व्यस्त हो गया। आदमी ने वहीं आवेदन बनाकर बाबू को पकड़ा दिया।
“ठीक है। आपका आवेदन लगाकर हम आपकी फाइल खोल देते हैं। एक सप्ताह पश्चात् आइएगा। हम आपके केस को समझ लें, पश्चा त् आपको बताएँगे कि इस फाइल में और क्या-क्या कागज लगेंगे।” कहकर बाबू ने आदमी से लम्बी नमस्ते की।
आदमी घर आ गया। सोचने लगा, चलो हफ्तेभर में अपना काम हो जाएगा। आदमी भोला था। अनुभवहीन था। वह तो ऑफिस में देशभक्ति, जनसेवा और ईमानदारी का स्लोगन पढ़कर ही खुश हो गया था। हफ्ता गुजरते देर नहीं लगती। अगले हफ्ते आदमी पूरे विश्वास के साथ कि आज उसका काम अवश्य हो जाएगा, दफ्तर पहुँच गया। बाबू ने उसे आदरपूर्वक बिठाया और उसके बैठते ही चपरासी को चाय पिलाने का आदेश दे दिया। बाबू ने आदमी से चाय के लिए सौ रुपये माँगने में कोई देर नहीं की।
चाय पीकर बाबू ने आदमी को बतायाः “केस बहुत कमजोर है। मैंने आपके केस की स्टडी कर ली है। फाइल में कुछ कागज और लगेंगे। कुछ सर्टिफिकेट्स, केस हिस्ट्री, सुबूत इत्यादि। मैंने लिस्ट बना दी है। अगली बार आएँ इतने कागज और ले आएँ, आपकी फाइल में लगाना जरूरी है।“
हाथ में बाबू द्वारा थमाई गई लिस्ट लेकर आदमी पढ़ ही रहा था कि बाबू ने कहा- “अगले हफ्ते मैं छुट्टी पर जा रहा हूँ। वैसे भी आपको ये कागज जुटाने में वक्त लगेगा। अब आप पन्द्रह दिनों बाद आइएगा।”
आदमी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। उसका उत्साह जाता रहा। वह चुपचाप घर आ गया। सचमुच, जो कागज बाबू ने उससे माँगे थे, उन्हें जुटाने में उसे पसीना आ गया और पूरे दो सप्ताह लग गए। फिर भी वह सारे कागज लेकर पन्द्रह दिनों के पश्चात दफ्तर पहुँचा। अबकी उसने बिना बाबू के कहे चपरासी को बुलाकर सौ रुपये देते हुए पूरे दफ्तर को चाय पिलाने के लिए कहा। चपरासी खुश हुआ। बाबू ने मुस्कराते हुए कहा- “धीरे-धीरे आप ऑफिस की कार्यप्रणाली समझते जा रहे हैं। लाइए, आपके कागज देखता हूँ।”
अब तक चाय आ गई। चाय की चुस्कियों के साथ बाबू ने कागजों पर एक उड़ती हुई नजर डालकर कहा- “अब आपकी फाइल चलाते हैं। ऑडीटर, सुपरवाइजर और सुपरिन्टेंडेंट की टेबिल से होते हुए यह फाइल साहब की टेबिल पर जाएगी। तत्पश्चात् साहब ही इस केस में कोई निर्णय ले पाएँगे, तब तक आपको इंतजार करना पड़ेगा। मेरी तरफ से आज यह फाइल आगे बढ़ा दी जाएगी।” आदमी ने सशंकित होकर पूछा-“अब मैं कब आऊँ?”
“बस, अगले हफ्ते। ऑडीटर महोदय देख लें। वे फाइल में कोई ऑब्जेक्शन निकालेंगे, तो आपको उसका जवाब जरूर देना पड़ेगा। तत्पश्चात् सुपरवाइजर साहब अपनी टीप के साथ फाइल आगे बढ़ाएँगे। सुपरिण्टेंडेंट साहब के पास फाइल पहुँचने के पश्चात् वे केस को डिटेल में देखेंगे। संतुष्ट होने के पश्चात् फाइल उनकी टीप के साथ साहब की टेबिल पर पहुँच जाएगी। वे उसे देखकर अपना निर्णय दे देंगे। थोड़ा धैर्य रखिए। इतना समय तो लगता ही है, हर फाइल में।” बाबू ने आदमी से आत्मीयता दिखाते हुए कहा।
इस बार बाबू ने आदमी को पुनः आने के लिए कोई समय सीमा नहीं बताई। आदमी ने सोचा साहब के पहले तीन लोगों के पास से फाइल को गुजरना है। इस प्रकार कम-से-कम पन्द्रह दिन तो लग ही जाएँगे। उसने दो सप्ताह पश्चात फिर ऑफिस में दस्तक दी। बाबू ने छूटते ही पूछा: “इतने दिनों कहाँ रहे? पिछले हफ्ते ही ऑडीटर ने फाइल में कुछ आपत्तियाँ दर्ज कर फाइल वापस कर दी। लीजिए इनके जवाब बनाकर लाइए।” -यह कहकर आगे की फाइल आदमी की तरफ बढ़ा दी।
आदमी ने ऑडीटर की नोटशीट पढ़ी। मामूली-सी आपत्तियाँ थीं, मानो आपत्तियाँ निकालनी ही हैं, इसलिए निकाली गई थीं। उसने वहीं उनका विस्तृत जवाब बनाया और बड़े बाबू को थमा दिया। बड़े बाबू ने जवाब पढ़ा और उसे फाइल में अटैच करते हुए कहा- “फाइल का पेट तो भरना ही पड़ता है। अच्छा किया आपने तुरंत जवाब लगा दिया। अब देखते हैं आगे क्या होता है।”
“अब कब आऊँ?”-आदमी ने निराश स्वर में बड़े बाबू से पूछा।
“दस दिनों पश्चात् आ जाएँ तब तक सुपरिण्टेंडेंट साहब भी छुट्टी से आ जाएँगे। उनकी बिटिया की शादी है। इन दिनों छुट्टी पर हैं। उसके बाद फाइल सीधे साहब की टेबिल पर होगी। बस, समझो कि आपका काम हो गया।” बड़े बाबू ने स्नेहपूर्वक आदमी को समझाया।
दरवाजे पर आदमी को अपने पड़ोसी होशियारीलाल मिल गए। वे हँस-हँसकर चपरासी से बतिया रहे थे। आदमी ने उनसे सौहार्दवश पूछा- “कैसे आना हुआ भई?”
होशियारीलाल पान चबाते हुए, जो अभी-अभी चपरासी ने उनके हाथ में दिया था, बोले: “एक काम है हमारा। आज ही केस फाइल बनवाई है। बाबू ने दो दिन बाद बुलाया है।”
आदमी चौंककर बोला- “मुझे तो कभी एक हफ्ते के पहले उन्होंने नहीं बुलाया?” चपरासी हँसा। उसने छुट्टे रुपये होशियारीलाल की ओर बढ़ाए। चाय-नाश्ते और पान के लिए शायद होशियारीलाल ने उसे कोई बड़ा नोट दिया था। बाकी रुपये वह लौटाने को हुआ। होशियारी लाल ने लापरवाही से कहा- “रख लो, तुम्हारे हैं।” तत्पश्चात् आदमी की ओर मुखातिब होकर बोले-“ये चपरासी मेरा परिचित है। इसने पहले ही मुझसे फाइल में वजन रखने के लिए कह दिया था। मैंने वही किया। अब देखते हैं, दो दिनों पश्चात् फाइल कहाँ तक पहुँचती है।”
ये वजन रखना क्या होता है? सोचता हुआ आदमी अपने घर आ गया। दो महीने होने को आ रहे हैं और उसका एक मामूली-सा काम उस दफ्तर में अटका हुआ है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना विलंब क्यों हो रहा है?
दस दिनों पश्चात वह फिर बड़े बाबू के सामने था। आदमी को आज गुस्सा आ रहा था। स्थिति भाँपकर बड़े बाबू ने उसे आदरपूर्वक बिठाया। चपरासी को तुरंत ठंडा पानी लाने के लिए कहा। चपरासी ने थोड़ी देर में मुस्कुराते हुए उसके सामने ठंडा पानी पेश किया। आदमी ने ऊँचे स्वर में बड़े बाबू से पूछा- “मेरी फाइल का क्या हुआ?”
बड़े बाबू ने शांत स्वर में कहा- “ऑडीटर ने फाइल आगे बढ़ा दी है। बस, अब सुपरिण्टेंडेंट की टीप लग जाए, तो फाइल साहब के पास पहुँच जाएगी।”
“सुपरिण्टेंडेंट की टीप आखिर कब लगेगी?” आदमी ने झल्लाकर पूछा।
“फाइल में अब तक बहुत कागज लग चुके हैं। बहुत मोटी हो गई है आपकी फाइल। अब उसे पढ़ने में सुपरिण्टेंडेंट साहब को समय तो लगेगा। वे जल्दबाजी में कोई काम नहीं करते। हर फाइल को पूरी तरह इत्मीनान से पढ़ते हैं, फिर उस पर अपनी टीप लिखते हैं। आपको तो मालूम है कि वे अभी-अभी बिटिया की शादी निपटाकर आए हैं। अभी उनका मन स्थिर नहीं है। शादी-ब्याह में कितने काम कामकाज नहीं होते सिर पर। जल्द ही आपकी फाइल देखेंगे। धैर्य रखिए।” बड़े बाबू ने अतिरिक्त स्नेह के साथ समझाया। दूर खड़े चपरासी की मुस्कुराहट अभी कम नहीं हुई थी।
आदमी अन्यमनस्क-सा कुछ देर बैठा रहा। उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे? बड़े बाबू ने फिर समझाया-“देखिए, हर काम में समय लगता है। कहीं भी हथेली पर सरसों नहीं उगती। आपका काम भी हो जाएगा। आठ-दस दिन बाद आप फिर मिल लीजिएगा। तब तक शायद कुछ बात बन जाए।”
आदमी चिंतित, परेशान और गुस्से से भरा हुआ उठा और सीधे ऑफिस के बाहर आ गया। चपरासी अब भी उसी प्रकार मुस्कुरा रहा था। आदमी ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा- “ये फाइल पर वजन रखना क्या होता है?”
चपरासी ने कहा- “ये आप होशियारीलाल जी से पूछ लीजिएगा। आपके तो परिचित हैं वे।”
दो दिनों तक होशियारीलालजी नहीं मिले। शायद कहीं बाहर गए थे। सोमवार को एक पतली-सी फाइल लिये पप्पू के होटल में चाय पीते हुए मिल गए। आदमी ने उन्हें देखते ही अपनी पूरी व्यथा-कथा सुना डाली। होशियारी ने हँसकर हाथ की फाइल दिखाते हुए कहा-“ये मेरे काम की फाइल है। दो दिनों में मेरा काम हो गया। ये ऑर्डर की कॉपी अभी-अभी ऑफिस से लेकर आया हूँ। आप फालतू के कागज लगाकर फाइल मोटी करते रहे। नोटों का वजन उस पर आपने नहीं रखा; इसलिए अब तक ऑफिस के चक्कर लगा रहे हैं। अब तो कुछ कीजिए, जिससे आपकी फाइल निपटे।”
आदमी अब गंभीरतापूर्वक सोच रहा है कि उसे यथास्थिति से समझौता करना है या इसे बदलने के लिए सार्थक उपाय करने हैं? उसे लग रहा है उपाय करना ही ज्यादा ठीक होगा।
सम्पर्कः 376. बी/आर, महालक्ष्मी नगर , इंदौर.452010
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