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Jan 1, 2023

अनकहीः नया साल, नया दिन, नया संकल्प

 - डॉ. रत्ना वर्मा

...तो आप कैसे शुरूआत कर रहे हैं नए साल के दिन और क्या नया करने का सोचा है इस साल, कोई नया संकल्प, नया काम आदि आदि? साल के खत्म होते- होते सबकी जुबान पर इसी तरह का सवाल होता है। पर खुशियाँ मनाने के सबके अपने- अपने तरीके होते हैं। कोई दोस्त के साथ या परिवार के साथ बाहर छुट्टियाँ मनाने जाता है, तो कोई पार्टी करके खुश होता है, बहुत से ऐसे हैं, जो कहते हैं नए साल का पहला दिन परिवार के साथ बिताएँगे। अधिकतर तो घर पर रहकर टीवी देखते हुए नए साल का स्वागत करते हैं। कहने का तात्पर्य यही कि स्वागत सब करते हैं, तरीके चाहे सबके कितने ही अलग क्यों न हो। 

हम सबने देखा है कि पिछले दो साल से आम लोगों ने अपने जीवन को देखने का नज़रिया बदल दिया है। कहते हैं- जिंदगी के हादसे, मुसीबतें और परेशानियाँ व्यक्ति को सबक सिखाती हैं। यही सबक हम सबने पिछले सालों में आई स्वास्थ्य सम्बंधी मुसीबतों से सीखा है कि जीवन, सिर्फ भाग- दौड़ करते हुए जीने का नाम नहीं है; बल्कि जितना जीवन हमें मिला है, उसको अपनों के साथ खुशियाँ मनाते हुए स्वस्थ मानसिकता से जीने का नाम है। कोरोना जैसी महामारी ने हम सबके जीवन में उथल- पुथल मचाकर एक नए नजरिए से जीवन को जीने का संदेश दिया है, बहुतों ने इसे गंभीरता से लिया भी है और अपने नजरिए में बदलाव करते हुए जीवन को सहज, सरल और ज्यादा खुशहाल बनाने की दिशा में सोचना शुरू भी कर दिया है।

जीवन की राह बहुत कठिन है, जहाँ अनगिनत उतार- चढ़ाव आते हैं। खुशियाँ हैं, तो दुःख भी कम नहीं है। दरअसल सुख और दुःख दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। पर इन दोनों के बीच संतुलन बनाकर ही जीने का आनंद उठाया जा सकता है। किसी एक पल में दुःख आ जाने से हम निराश हो जाते हैं और जीने की सारी उम्मीद छोड़ देते हैं, बस यहीं एक गलती कर बैठते हैं । पर यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह पिछली मुसीबतों को बहुत जल्दी भूल जाता है। ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय’ की तर्ज पर लोग बस आगे बढ़ना चाहते हैं । यह सही भी है कि दुःखों को भूल कर खुशियों को साथ लेकर आगे बढ़ना ही जिंदगी है;  परंतु पिछली गलतियों से बिना सबक लिये, आगे बढ़ना गलत होगा।

जो व्यक्ति यह कहते हुए केवल धन कमाने में लगा रहता है कि परिवार के लिए, बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए धन कमा रहा हूँ, ऐसे लोगों को अब लोग नसीहतें देने लगे हैं कि यह सब तो ठीक है;  पर इसके पीछे अपने आपको खत्म मत करो कि अपनों के साथ दो पल खुशियों के भी न बीता पाओ या फिर दूसरों के लिए जीते – जीते ऐसा न हो कि स्वयं आपके अपने सपने, आपकी इच्छाएँ, चाहते सब दबी रह जाएँ और अंत में आपको पछताना पड़े कि अरे इतना सब समझौता करके जीने से तो अच्छा था कि थोड़ा समय अपनी खुशियों को भी दे देते। पैसा ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना आपके पास है, उतने में खुश रहना सीखना होगा। गलत तरीके से धन कमाना या दिन रात बस धन कमाने में ही लगे रहना, तो बेहतर जीवन जीने का तरीका नहीं है।

इन सबके बीच आज यहाँ सिर्फ एक बात कहना चाहूँगी। जिस युवा पीढ़ी की ओर उम्मीद भरी नजरों से  पूरा भारत देख रहा है, यह कहते हुए कि यही वह पीढ़ी है जो हमारे देश को विकास की ऊँचाइयों पर ले जाएगी, वह कुछ भटकता सा नजर आ रहा है।  पिछले दिनों हमने देखा कि युवाओं में डिप्रेशन के मामले बढ़ते जा रहे हैं, यही नहीं  बात आत्महत्या तक पहुँच जाती है।  इसका एक अहम कारण परिवार और समाज से दूर जिंदगी के थपेड़ों में उनका अकेले पड़ जाना। है। दरअसल बहुत जल्दी आगे बढ़ने की होड़ में वे सही रास्ता नहीं चुन पाते।  गलत राहों पर चलकर वे कुहरे- भरी जिंदगी में घिर जाते हैं कि वहाँ से उनका निकलना मुश्किल होता है।  कहने का तात्पर्य यहाँ यही है कि हम एक सामाजिक प्राणी हैं, परिवार समाज और दोस्तों के बिना अकेले जीवन नहीं गुजार सकते; इसलिए न तो माता पिता को अपने बच्चों को अकेला छोड़ना चाहिए और न ही बच्चों को सब छोड़कर अकेले निकल जाना चाहिए।

        ऐसे में बेहतर जीवन जीने के लिए हमें बस कुछ छोटी- छोटी बातों को अपने जीवन में ढालना होगा- खुशी छोटी हो या बड़ी,  उसमें खुश होना सीखना होगा, जिंदगी को जीने के लिए रिश्ते को अहमियत देना होगा- चाहे वे दोस्त हों या परिवार। सफलता के लिए मेहनत करना होगा, दूसरों के साथ अपनी खुशी और दुःख को साझा करने की आदत डालनी होगी, किसी ने हमारे साथ गलत किया, तो हम भी उसके साथ गलत करें यह सोच बदलनी होगी।

सार यही कि जिंदगी के हर पल को खुशी के साथ, सबके साथ मिलकर जीना सीखें और इस जिंदगी में मिले इस उजाले के लिए भगवान का शुक्रिया व्यक्त करना न भूलें। जीवन को सकारात्मकता, आशा और उम्मीद के साथ जिएँ। नए वर्ष पर सबका जीवन सुखमय हों, उज्ज्वल हो,  शुभ हों इन्हीं कामनाओं के साथ- नासिर राव के शब्दों में- 

जब उजाला गली से गुज़रने लगा, 

सब अँधेरों का चेहरा उतरने लगा ।

                    

8 comments:

Sonneteer Anima Das said...

वाह्ह्ह! उत्कृष्ट विचार 🌹🙏mam 🌹 नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ आपको 🌹🙏😊

विजय जोशी said...

आदरणीया,
सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का नाम ही है जीवन। नकारात्मक सोच न केवल पथ से भटकने, अपितु स्वयं के साथ ही साथ दूसरों के लिये दुख का प्रयोजन भी बनता है। जीवन चलने का नाम :
- क्या हार में क्या जीत में
- किंचित नहीं भयभीत मैं
- संघर्ष पथ पर जो मिले
- यह भी सही वह भी सही
एक बार फिर सामयिक विषय पर मार्गदर्शन को कलमबद्ध करने हेतु हार्दिक बधाई एवं आभार। सादर

Anonymous said...

सामयिक, सुंदर सकारात्मक सोच। उत्कृष्ट लेखन। हार्दिक बधाई आपको। सुदर्शन रत्नाकर

Anonymous said...

रत्ना जी ,आपने बहुत ही ख़ूबसूरती से अनकही के माध्यम से ही समसामयिक जीवन दर्शन को सामने लाया है साथ साथ मार्भीग भी शामिल है ।सचमुच आज इसी तरह की सोच की ज़रूरत है तभी हम अपने जीवन को अपने आस पास को ख़ूबसूरत बना पाएंगे

http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

सुंदर विचार, शुभकामनाएं रत्ना जी

Jyotsana pradeep said...

बहुत - बहुत बढ़िया आदरणीया रत्ना जी। नववर्ष की ढेरों शुभकामनाओं के साथ -
ज्योत्स्ना शर्मा 'प्रदीप '(देहरादून )

डॉ दीपेन्द्र कमथान said...

सुन्दर लेख ! नाव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
‘रात के बासी चेहरे पर ठण्डे पानी का छींटा’ !

dr. ratna verma said...

आप सबका तहे दिल से धन्यवाद। सबके सुन्दर विचारों के साथ मिलकर आने वाले समय का स्वागत करते हुए जीवन को बेहतर बनाएँगे यही कामना है।