1. पपेट शो
"आर! "
"आरव. जल्दी आओ बेटा रिसेप्शन में जाना है न! आज, चलो जल्दी से तैयार
हो जाओ।"
"क्या मम्मा अभी तो दस मिनट बस खेल" आरव ने झुंझलाकर
कहा।
" कल खेल लेना " -खुशबू ने अपनी चूड़ियों का सेट
जमाते कहा।
"कभी नहीं आता कल,
आप रोज बोलती हो कल खेलना और रोज कभी मार्केट ,कभी आपकी किट्टी-" रुआँसा आरव चिल्ला पड़ा।
" बिहेव योरसेल्फ,
ऐसे बात करते है बड़ों से तुम बहुत बिगड़ गए हो”- खुशबू ने आरव का हाथ
खींचते हुए लगभग घसीटते हुए बाथरूम तक ला छोड़ा।
"अब अच्छे से मुँह हाथ धोकर आओ”- आँखें तरेरते हुए खुशबू
बोली।
नन्हे आरव ने दरवाज़ा बंद कर पहले आँसुओं से चेहरा धोया, फिर साबुन से मुँह-
हाथ धो मुस्कुराता हुआ अपनी वार्ड रॉब से अपनी फेवरेट टी शर्ट और केप्री निकाल ली
।
खुशबू ने उसकी ड्रेस देखी,
तो वो वापस रख फुल स्लीव की शर्ट और फुल पेंट निकालकर सख्त आवाज़ में
कहा-" ये पहनो! "
" ये मुझे पसंद नहीं है कॉलर चुभते हैं ,और मैं तेज़ दौड़.....
"हर बात पर बहस,
हम पार्टी में जा रहे है।" और उसने जबरदस्ती कपड़ों में कैद कर
दिया नन्हे जिस्म को।
आरव तैयार था
"मम्मा मैं खेल लूँ थोड़ी देर ,जब तक आप तैयार हो रहे
हो?” नन्हा आरव
मनुहार करता हुआ बोला।
" नहीं,
बिल्कुल नहीं। फिर से गंदे हो जाओगे – “ वो साड़ी जमाते हुई बोली।
"टी वी देख लो थोड़ी देर”- खुशबू ने फिर निर्देश दिया।
आरव को समझ नहीं आता कि जब मम्मा कहे, तब टी वी देखना बुरा
क्यूँ नहीं है, जब वो कहे कल करूँगा तब कल कभी नहीं आता
टीवी पर पपेट शो चल रहा था । बड़ी प्यारी- प्यारी पपेट्स डोर
खीचने वाले के इशारों पर नाच रही थी ।
आरव को बड़ा मजा आ रहा था। वो उन पपेट्स को देखकर बहुत खुश हो
रहा था । अचानक टी वी की स्क्रीन पर अँधेरा छा गया ।
खुशबू तैयार थी और रिमोट के पावर बटन पर उसकी उँगली यकायक पपेट
का चेहरा आरव के चेहरे में और डोर पकड़ने वाले का खुशबू के चेहरे में बदल गया ।
पपेट शो चालू था।
द्वार पर बीच की जगह आने जाने के लिए छोड़ दोनों किवाड़ों की
चौखट से लगी सुंदर रंगोली, दाएँ -बाएँ टेराकोटा के छोटी -छोटी तख्तियाँ, जिन पर
शुभ - लाभ और चौखट के मध्य स्वस्तिक का चिह्न; आँगन में
सुंदर टेराकोटा का कलात्मक तुलसी चौरा, तुलसी जी को अर्पित
कुमकुम, फूल जो गृहस्वामी / स्वामिनी की आस्था के साक्षी हो-
जैसे, घंटी का निशान बने हुए बटन पर हाथ धरते ही पवित्र
गायत्री मंत्र जब उच्चारित होने लगा, मेरे तन मन का पुलक
जैसे रोम -रोम से प्रदर्शित होने लगा ; पाश्चात्य अंधानुकरण
के इस युग में ऐसा देसीपन शुद्ध पवित्र परिवेश कौन नहीं रीझ जाएगा ।
मैं भी गदगद भतीजे के घर के सात्विक , संस्कारित माहौल से;
बैठक की साज- सज्जा भी मनमोहक भारतीय स्वाद लिये हुए, सर्वप्रथम विघ्नेश के दर्शन प्रवेश लेते ही, एक तरफ
दीवार पर सागोन की लकड़ी का ‘अतिथि देवो भवः’ का कट आउट मैं तो निहाल।
पत्नी अस्पताल के आई सी यू में थी; इसी बड़े शहर में
भतीजे के घर गए बरसों हो गए, जब मिलता बड़े प्रेम से कितनी
मनुहार करता घर आने की, इसीलिए आज मन किया कि उसके घर जाया
जाए ।
आदर सत्कार भी ऐसा
कि भतीजे, बहू दोनों बच्चों ने
पैर छुए मैंने भी हर्षाए स्वर में कहा- "घर तो बहुत सुंदर सजाया है।”
भतीजे ने कहा- "जी ट्रेडिशनल इंडियन थीम में इंटीरियर
है।"
न जाने कितने व्यंजनों
की सूची बनी मेरी आवभगत के लिए और फिर भतीजे ने पत्नी से मेरी पसंद बताकर -
जैसी मैं पीता वैसी बिना शक्कर की चाय के साथ मेरी पसंद के
भुने चने और सींग दाने, अब पसंद नापसंद का इतना ध्यान मेरे खुद के बच्चे नहीं रख पाते, मैंने सोचा रात का खाना खाकर ही अस्पताल लौटूँ। भतीजे ने आता हूँ कह मोहलत
माँगी और अंदर चला गया ।
लघुशंका से निवृत्त
होने की चेष्टा से अंदर गया;
किन्तु शायद गलत दिशा पकड़ ली कमरे के बाहर पहुँचा ही था कि पति
-पत्नी की आवाजें सुन स्तब्ध रह गया।
स्त्री स्वर- "कर दी खातिरदारी अब खाने पर मत रोक लेना, नहीं तो रोज़ का झंझट
पाल लिया समझो अभी तो टाइम लगेगा बुआ जी को ठीक होने में।"
पुरुष स्वर " ओहहो,
तुम टेंशन मत लो मैं सम्हाल लूँगा ।"
स्त्री स्वर " हाँ हाँ सँभालो, चाहे जो बहाना बनाओ
पर पीछा छुड़ा लेना ।"
मान बनाए रखने के लिए दबे पाँव उल्टे लौटा, तो नज़रें अतिथि देवो
भवः पर अटक गई । सहसा जैसे उसका अर्थ समझ आ गया और मैं अंतर्धान हो गया।
सम्पर्कः बी-2/38,
'ठाकुर विला', रोहिनीपुरम, लोकमान्य सोसायटी, रायपुर (छ. ग.) deepalee.thakur@gmail.com
2 comments:
सुन्दर एवं सार्थक सृजन 💐🌹🙏
धन्यवाद🙏
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