आज परीक्षा का परिणाम आने वाला था। रितु सुबह से ही बेसब्री से परिणाम की प्रतीक्षा कर रही थी।
“रितु! नाश्ता ठीक से क्यों नहीं कर रही हो? क्या बात है रिजल्ट एंक्जाइटी?” रितु की मम्मी ने रितु से कहा
“हाँ माँ! थोड़ी सी। लेकिन इस बार प्रथम मैं ही आऊँगी। आपकी वह प्रिय शिष्या साक्षी नहीं। देख लीजिए। ”
“जिसने ज्यादा मेहनत की होगी, वही प्रथम आएगा रितु। तुम मेरी बेटी हो, मैं चाहती हूँ मेरी बेटी भी साक्षी की तरह मेहनत करे और पहले के जैसे प्रथम आए। ”
“माँ! मेहनत मैं हर बार बहुत करती हूँ। न जाने साक्षी कैसे मुझसे ज्यादा नम्बर ले आती है; लेकिन इस बार मैं ही प्रथम आऊँगी। आप देख लेना। ” गर्व से बोली रितु।
“अच्छी बात है। तुमने मेहनत की है तो अवश्य आओगी।
“माँ! देखो परिणाम घोषित हो गया। मेरे 95+प्रतिशत हैं। ” रितु चहकते हुए बोली। अब साक्षी के नम्बर भी देख लेते हैं।” कहते हुए रितु ने साक्षी के नम्बर देखने लिए फिर से परिणाम पत्र खोला। साक्षी के नम्बर देखते ही पल भर में रितु का सारा उत्साह खतम हो गया। इस बार भी साक्षी ही प्रथम थी।
“कोई बात नहीं रितु। थोड़ी और मेहनत करना। अगली बार तुम अवश्य प्रथम आ जाओगी। “माँ ने बेटी का कंधा प्यार से थपथपाया।
रितु मायूस हो उठ गई। स्टोर में जाकर कुछ खोजने लगी।
“कहीं तुम ये तो नहीं खोज रहीं रितु?” -माँ के हाथ में साक्षी की कॉपी देख रितु हड़बड़ा गई।
“ये वही कॉपी है, जो साक्षी ढूँढ रही थी। चेक करने के लिए मेरी घर लाई कॉपीज से तुमने यह कॉपी निकालकर यहाँ छुपा दी, थी जिससे साक्षी पढ़ न सके।”
” माँ! आप चाहती तो मैं प्रथम आ सकती थी।” रितु ने मायूसी से कहा।
“रितु बेटा! मैं गुरु द्रोणाचार्य नहीं जो अर्जुन के लिए एकलव्य का अँगूठा काट लूँ। ”
●
सम्पर्कः B-1/248 , यमुना विहार, दिल्ली-110053
No comments:
Post a Comment