बारिश के मौसम में तरह-तरह के साँप दिखाई देते हैं। करैत, कोबरा, वाइपर, वुल्फ स्नेक, चेकर्ड कीलबैक और सैंड बोआ आदि घरों के समीप, खेत-खलिहानों और बाग-बगीचों में अक्सर दिख जाते हैं। इन्हीं दिनों में नम जगहों पर एक बेहद छोटे और पतले आकार का केंचुए जैसा अत्यन्त चमकीला जीव भी बहुत तेज़ी से ज़मीन और फर्श पर रेंगता दिखता है। दरअसल, यह केंचुआ नहीं बल्कि एक साँप है। इसे अँधा साँप कहते हैं। अँधा साँप दुनिया का सबसे छोटा साँप है। इसे तेलिया साँप के नाम से भी जाना जाता है।
इसे अँधा साँप क्यों कहते हैं? दरअसल इस साँप की आँखों की बनावट ऐसी होती है कि यह केवल उजाले और अँधेरे में फर्क कर सकता है। वैसे भी साँपों की दृष्टि क्षमता बेहद कमज़ोर होती है और अँधा साँप तो इस मामले में और भी ज़्यादा कमज़ोर होता है। अँधे साँप की आँखें दो काले बिन्दुओं की तरह दिखाई देती हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते इन साँपों को अँधा साँप कहते हैं। अंग्रेज़ी में इसे ब्लाइंड स्नेक या वार्म स्नेक के नाम से भी जाना जाता है।
दुनिया भर में अँधे साँपों की लगभग 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत में 15 से भी ज़्यादा प्रजातियाँ रिकॉर्ड की गई हैं, जिनमें ब्राह्मणी ब्लाइंड स्नेक सबसे आम है। अँधे साँप मुख्यतः नमीयुक्त जगहों, भूमिगत स्थानों और सड़े-गले पत्तों के ढेर के नीचे पाए जाते हैं। ये साँप तापमान के उतार-चढ़ाव के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। भौगोलिक विविधता एवं जलवायु के अनुसार अँधे साँपों का रंग कत्थई, काला और हल्का लाल होता है। मैंने अपने ग्रामीण क्षेत्रों में अँधे साँपों का अवलोकन करते हुए पाया कि ये प्रायः संध्याकाल अथवा गोधूलि बेला में ही ज़्यादा सक्रिय होते हैं।
बारिश का मौसम आते ही अँधे साँपों की सक्रियता बढ़ जाती है। वर्षा काल में गीली ज़मीन और फर्श पर बेहद तेज़ी से रेंगते इन खूबसूरत एवं विषहीन साँपों को देखकर अधिकांश लोग भ्रमवश इन्हें कोबरा और करैत जैसे विषैले सांपों का बच्चा समझ लेते हैं। अँधे साँपों के बारे में उचित जानकारी ना होने तथा इन्हें कोबरा और करैत का बच्चा समझने के चलते लोग इन्हें जान से मार देते हैं।
अँधे साँप का मुख्य आहार चींटियों तथा दीमकों जैसे कीटों के लार्वा हैं। वहीं, कई पक्षी और मेंढक आदि प्राणी अपने भोजन हेतु इन अंधे सांपों पर निर्भर हैं।
आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के युग में भी हमारे समाज में साँपों के विषय में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है। लोगों के बीच इन अँधे साँपों के प्रति फैले भ्रम के चलते पता नहीं कितने अँधे साँप मारे जाते हैं। चींटी एवं दीमकों की आबादी को नियंत्रित कर ये हमारे पर्यावरण तथा खाद्य-शृंखला के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं। आज ज़रूरत है इन साँपों के संरक्षण की और यह तभी संभव है जब हम इनके विषय में ज़्यादा जानें, अवलोकन करें तथा इनके पर्यावरणीय महत्त्व को समझें। (स्रोत फीचर्स) ●
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