अब जबकि
लगभग सभी स्कूल खुल गए हैं- बच्चे स्कूल तो आने लगे हैं; पर एक अहम बात, जो इनमें देखने को मिल रही है कि
किताबों को पढ़कर अर्थ समझने में बच्चों को दिक्कत आ रही है। इतने लम्बे समय तक
स्कूल न जाने की वजह से बच्चों में वह तेजी देखने को नहीं मिल रही। ऐसा होना
स्वाभाविक भी है। आमने- सामने बैठकर शिक्षक और विद्यार्थी के बीच जो रिश्ता बनता
है, वह मोबाइल के माध्यम से नहीं बन पाता है। विशेषकर छोटे
बच्चों के लिए यह और भी बहुत मुश्किल है।
बच्चों की शिक्षा से जुड़े इसी नुकसान का आकलन
करने के लिए अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि
कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था, वे उसे भूलने लगे । इसकी वजह से वर्तमान सत्र की कक्षाओं में उन्हें
सीखने में दिक्कत आ रही है। इसका मुख्य कारण यह पाया गया कि ऑनलाइन क्लास ठीक से संचालित नहीं हो पाए, इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाएँ सबको नहीं मिल पाईं और घर बैठकर पढ़ाई के
प्रति अरुचि ने बच्चों को शिक्षा के लिहाज से पीछे धकेल दिया। इस दौरान पहली से
तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई की ओर तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया
गया ।
इस अध्ययन
के लिए पाँच राज्यों- छत्तीसगढ़, कर्नाटक,
मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड
को चुना गया था। इन राज्यों के 44 जिलों के 1,137 सरकारी स्कूलों के कक्षा 2 से
कक्षा 6 तक के 16,067 छात्रों को सर्वे में शामिल किया गया। सर्वे के मुताबिक,
कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो
सीखा था, उसे भूलने लगे हैं। इस सर्वे में पाया गया कि: 54%
छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावित हुई है। 42% छात्रों की पढ़ने की क्षमता
प्रभावित हुई है। 40% छात्रों की भाषा लेखन क्षमता प्रभावित हुई है और 82% छात्र
पिछली कक्षाओं में सीखे गए गणित के सबक को भूल गए हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया
कि बच्चों को भाषा और गणित में सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।
इस मामले में शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भाषा और गणित का बुनियादी कौशल ही
दूसरे विषयों को पढ़ने का आधार बनता है।
स्कूल में कक्षा में बैठकर शिक्षकों द्वारा दी
जा रही शिक्षा और घर में बैठकर मोबाइल से दी गई शिक्षा में जमीन आसमान का अंतर
होता है। इसे सभी ने बहुत अच्छे से महसूस किया है। घर से ही पढ़ाई के कारण ने
बच्चों के मानसिक स्तर को प्रभावित तो किया ही है, साथ ही
खेल- कूद और दोस्तों से दूरी ने उनके शारीरिक विकास को भी बहुत ज्यादा नुकसान
पहुँचाया है। ज्यादातर समय घर पर ही रहने से बच्चे अपना समय टीवी और फोन पर ही
बिताते थे। जब आम दिनों में गर्मियों की छुट्टी के बाद स्कूल की दिनचर्या में आने
में बच्चों को वक्त लगता था तो यह तो कोरोना काल की बंदिशों के बाद का बहुत लम्बा
समय है, इस समय वे न तो बाहर खेलने जा सकते थे, न कहीं घूमने, यहाँ तक कि दोस्तों और रिश्तेदारों से भी मिलने पर पाबंदियाँ थी । इन
सबके बाद वे जब स्कूल जाएँगे, तो उनकी आदतों में बदलाव तो
नजर आएगा ही। जिसे पटरी पर लाने में जाहिर है शिक्षकों को भारी मशक्कत करनी
पड़ेगी।
बच्चों को पढ़ाई – लिखाई के प्रति रुचि जागृत
करने के लिए सरकारी और गैरसरकारी दोनों ही स्तरों पर विशेष कार्यक्रम और योजनाएँ
बनानी होंगी ताकि बच्चे पुनः अपनी पढ़ाई सुचारु रूप से जारी रख सकें। बच्चों के
विकास को लेकर हुए इस नुकसान पर गंभीरता से विचार करना होगा और बच्चों की आगे की
पढ़ाई सुचारु रूप से चले और हो चुके नुकसान की भरपाई हो सके, इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। यद्यपि विभिन्न प्रदेशों में राज्य सरकारों
ने स्कूल शिक्षा का स्तर बेहतर हो इस दिशा में नई कार्य योजनाओं पर काम करना शुरू
कर दिया है, परंतु यह काम केवल दिखावे के लिए न हो । बच्चों की गुणवत्ता को बिना परखे आगे की
कक्षाओं में प्रमोट कर देना बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। लॉकडाउन का सबसे
ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों के बच्चों पर पड़ा है, उसमें भी
सबसे ज्यादा असर बच्चियों पर पड़ा है। इस दौर की बहुत सी बच्चियाँ ऐसी होंगी
जो अब स्कूल नहीं लौट पाएँगी। सरकार को इस दिशा में काम करना अभिभावकों और बच्चों
को इसके लिए प्रोत्साहित करना होगा,
अन्यथा इसका असर दूरगामी होगा, जो सामाजिक
ह्रास का कारण बनेगा।
उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की यह भावी पीढ़ी
हमारी थोड़ी सी लापरवाही से कहीं लड़खड़ा न जाए। तो आइए कुछ ऐसा करें कि इस दौर के
शिकार सभी बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास सुचारू रूप से हो सके।
जब बच्चे स्कूल पहुँचें, तो उन्हें पाठ्यक्रम से न जोड़कर
दो-तीन दिन के लिए कुछ रोचक कहानियाँ पढ़ने के लिए दी जाएँ। कारण- अधिकतम
छात्रों का सीधे तौर पर पुस्तक से नाता टूट चुका है। इसे जोड़ना ज़रूरी है। इसके बाद
आगामी 10-12 दिनों तक कुछ नया न पढ़ाकर,
पूर्व पठित सामग्री के वे अंश
स्पष्ट किए जाएँ, जिन्हें विद्यार्थी ठीक से नहीं समझ
सके हैं। उन अस्पष्ट अंशों को जानने के लिए एक अनौपचारिक रूप से पूर्व परीक्षा ली
जाए। इसी पूर्व परीक्षा के आधार पर पुनरावृत्ति की कार्य-योजना बनाई जाए। निश्चित
रूप से ये सोपान छात्रों को आगामी नए पाठ्यक्रम से जोड़ने में सहायक होंगे।
8 comments:
अनकही में आपने कोरोना काल मे बच्चों की शिक्षा और उनसे प्रभावित हुए सारी स्थितियो पर बेबाक और गंभीर चिंतन करके जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया है वह न केवल सही बल्कि समीचीन भी है और हर स्तर पर इसके लिए सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए। इसमें ये सोचना उचित नहीं होगा कि कौन क्या कर रहा है या कर सकता है बल्कि अपनी जिम्मेदारी को, कर्म को ईमानदारी से करना सही होगा। इस काल मे हमने बहुत कुछ खोया है, इसमें संदेह नहीं है लेकिन जिसे खो चुके उससे उबरकर जो बचा है उसे बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए। मैं आपके विचारों से पूरी तरस सहमत हूँ।
प्रो अश्विनीकेशरवानी
आदरणीया,
बहुत सामयिक विषय पर सोच को एक नई धार दी है आपने। दुर्भाग्य कि जिस आगत पीढ़ी पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना जरूरी है वही देश के मानस पटल से विलोपित
है और देश पूरा शिक्षित होने का दंभ भरता है। अफ़सोस। इतने ज्वलंत विषय पर जो आपने उठाया है यदि सुप्त कुंभकर्णी व्यवस्था में थोड़ी भी हलचल हो सके तो उदंती का सपना पूरा हो जायेगा।
- बालक को बचपन और फिर यौवन नहीं मिलता
- मरुथल में किसी प्यास को साधन नहीं मिलता
- सजा रखे हैं सब आईने अंधों ने घर अपने
- जिनकी आंखें हैं उनको दर्पण नहीं मिलता
साधुवाद सहित सादर प्रणाम
सामयिक विषय पर सटीक आलेख। हमने बहुत कुछ खोया है। सब तो नहीं पा सकते लेकिन जो पा सकते हैं उनके लिए प्रयास करना आवश्यक है। आपके सुझावों से मैं सहमत हूँ। अशेष शुभकामनाएँ।
मैं एक शिक्षिका हूँ..और मैं अति गहराई इस आलेख में दिये गये संदेश को समझ सकती हूँ... कदाचित सबकुछ पुनः ठीक हो पाए... आपकी लेखनी ने सार्थक कहा 🙏🌹💐🙏
कोरोना काल जितना चुनौतीपूर्ण था,उतना ही उसके बाद का काल भी।समाज के बदलते परिवेश पर विचारोत्तेजक लेख।
सनसामयिक और महत्त्वपूर्ण लेख। अभिभावकों और शिक्षकों के लिए बहुत उपयोगी और विचारणीय।
समसामयिक विषय पर लिखी गई अनकही .... वाकई अनकही है ...
अति उत्तम आलेख, सामयिक व प्रासंगिक।
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