समीक्ष्य कृति- मैडम का डॉगीज़ बीमार है ( व्यंग्य संग्रह), लेखकः सूरज प्रकाश, प्रथम संस्करण, 2021, प्रकाशक: अद्विक प्रकाशन, प्रतापगढ़, दिल्ली- 110092, पृष्ठ संख्या : 128 पेज, मूल्यः 160 रु.
वरिष्ठ रचनाकार सूरज प्रकाश का नया व्यंग्य
संग्रह है - ‘डॉक्टर साहिबा का डॉगीज
बीमार है’। इसमें उनके चालीस व्यंग्य हैं।
सूरज प्रकाश जी का यह दूसरा
व्यंग्य संग्रह है। इससे पहले इनका ‘जरा संभल कर चलो’ नामक व्यंग्य संग्रह आ चुका
है। सूरज जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कहानी, उपन्यास,
अनुवाद हर क्षेत्र में वे अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं।
इस
संग्रह में पहला व्यंग्य है- डॉक्टर साहिबा के डॉगीज़ बीमार हैं। इसमें कुत्तों को
माध्यम बना कर वे समाज में बन गए आम और खास वर्ग की तुलना करके उनके बीच के फर्क
को चुटीले अंदाज में पेश करते हैं। खास वर्ग का आदमी ‘हाई सोसाइटी’ में क्या- क्या
पाने के अलावा क्या क्या खोता है इसे, उन्होंने डॉगी
के जीवन से तुलना करके बताया है।
अपनी
दूसरी रचना ‘फेसबुक चिंतन’ में उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से ही फेसबुक की हानि
और लाभ दोनों को दर्शाया है। ‘ना सारे जीनियस दाढ़ी रखते हैं और न सारे दाढ़ी वाले
जीनियस होते हैं’ में लेखक ने बड़ी सूक्ष्मता से दाढ़ी वाले प्रसिद्ध लोगों के बारे
में गहन चिंतन किया है।
‘प्रथम श्रेणी के लेखन से संन्यास’ रचना में
बहुत ही मज़ेदार तरीके से लेखन जगत के उठा-पटक को दिखाया गया है। कैसे कोई लेखक
लेखकीय कसौटी पर खरा लेखन ना करते हुए भी जोड़-तोड़ से अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाता
है,
बल्कि पुरस्कार व सम्मान का जुगाड़ तक कर लेता है, इसी तरह के लेखकों के लिए सूरज प्रकाश सर ने प्रथम श्रेणी का लेखक उपमेय
का प्रयोग किया है।
कहते हैं लेखक के कल्पना की उड़ान हवा से भी तेज
होती है,
इसका बाखूबी उदाहरण ‘जब दिल की धड़कन से मोबाइल चार्ज होंगे’ रचना
है। आप खुद पढ़ें और आनंद उठाएँ। जरा सँभल
कर चलो जबरन कवि बन गए लोगों की पोल खोलने के लिए बहुत सटीक व्यंग्य है जहाँ हर
कोई बस कवि बना हुआ है और हर कोई बस सुनाना ही चाहता है। ना ही जगह देखते हैं ना
मौका, बस कहीं भी बेसिर पैर की रचनाएँ सुनाने लगते हैं।
इसी तरह
की व्यंग्य रचना ‘मुशायरा करवा लो’ भी है। ये व्यंग्य विशुद्ध व्यंग्य ही है जो
खासा मजेदार बन पड़ा है। हँसते-हँसते आपके पेट में बल पड़ना और आपका सारा तनाव
रफ़ूचक्कर होना लाजिमी है। एक अन्य रचना ‘कैसे मिलती थी शराब अहमदाबाद में’ गुजरात
में जहाँ शराबबंदी है, वहाँ हर तरीके से शराब हासिल
करके उन्होंने प्रशासन की पोल पट्टी खोल दी है।
‘दिल्ली
पूछे चार सवाल’ में लेखक के खुद के कुछ सवाल दिल्ली की लेखकीय बिरादरी से बिना
किसी लाग लपेटकर हैं कि आखिर क्यों कई विचार धाराओं में बँटी दिल्ली की लेखक
बिरादरी बाहर से आने वाले लेखकों से कैसा व्यवहार करती है। इसी कड़ी का व्यंग्य कथा
‘बुलाए जाने की पीड़ा’ नाम से है।
लेखक
को नाम के आयोजनों में जाना सख्त नापसन्द है। बकौल लेखक के ही शब्दों में ही ‘पूरे
शहर की साहित्यिक गतिविधियों का ठेका कुछेक लोगों ने अरसे से सँभाल रखा है। वे ही
उसे किसी तरह जिलाये हुए है वर्ना अब जिस दिन डाक से मेरे लिए किसी आयोजन का
न्यौता नहीं आता, वह दिन मेरे लिए बहुत सुकून भरा
होता है।’
‘गांधी-स्मृति लाइंस क्लब स्टाइल’ में जिस तरह
गांधी जी के जन्मदिन के आयोजन को किस तरह से भंड़ैती में बदल दिया गया ये कारुणिक
वर्णन है। ये रचना आँखों देखा हाल लगती है। ‘संयुक्त राष्ट्र संघ का दिवालियापन’
मज़ेदार है।
‘एक
थे पाठक जी’ विशुद्ध स्ट्रैस दूर करने
वाला “मैटेरियल” है। आप इस पात्र के हर प्रसंग पर हँसते-हँसते लोटपोट हुए बिना
नहीं रहेंगे। इस तरह मुख्यतः कहानीकार और अनुवादक होते हुए भी सूरज जी ने जितने
चुटीले अंदाज में इस व्यंग्य संग्रह के माध्यम से राजनीतिक, सामयिक, व सोशल मीडिया जैसे मुद्दों को उठाया है व
उस पर लिखा है, व्यंग्य संग्रह होते हुए भी ये संग्रह हमें
इन मुद्दों पर सोचने को मजबूर करती हैं।
सूरज सर
की यह किताब निःसंदेह पढ़ने लायक है, ताकि हम जान
सकें कि कोई-कोई लेखक लेखन के हर विधा के हरफनमौला होते हैं, उन्हें कहानीकार या व्यंग्यकार जैसे किसी एक “कैटेगरी” में नहीं रख सकते
हैं।
इस
संग्रह का सबसे सशक्त पक्ष आधुनिक बोधकथाएँ हैं। बारह जानी पहचानी जन जीवन की
कथाओं को बेहद शानदार तरीके से आज के राजनैतिक जीवन से जोड़ा गया है वह कमाल का
है। हर बोध कथा में बेशक डिस्क्लेमर है लेकिन हम जानते हैं कि ये डिस्क्लेमर ही
क्लेमर है कि दरअसल सच यही है। ‘अद्विक
प्रकाशन’ की ये पहली किताब है। सूरज प्रकाश जी की नयी किताब का भरपूर आनन्द लिया
जाना चाहिए।
सम्पर्कः tropica society, flate no-G 937 kiwale gown road, pimpri, pune 412101
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