- मंगला शर्मा
मेरी धरती - तुम्हारा आकाश
छू नहीं सकती
ऐसा नहीं है
कुछ भ्रम जरूरी हैं
इसी से तुम्हारा आकाश
अछूता है मेरी ज़मीं के लिए
तुम्हारे उन प्रश्नों का जवाब
मेरे ज़ेहन में न हो
ऐसा भी नहीं है
उन प्रश्नों की गरिमा में
मेरा अहं बसता है
एक तरफ़ा ही सही
तुम्हारे उन बहुत से निबंधों में
अनुबंधों को न पहचाना हो
ऐसा भी नहीं है
मेरी कलम ने हाशिये
बनाने छोड़ दिए हैं
अब शेष के लिए
तुम्हारे यज्ञ दीप और साधना
मेरा अध्यात्म न पहचानता हो
ऐसा भी नहीं है
मेरी परिक्रमा तो
तुम्हारे आकाश के इर्द गिर्द है
सच कहूँ तो
कुछ और जन्मों के लिए
सम्पर्क: mangla.tainguria@gmail.com,
गंजबासौदा (म. प्र.)
(
9425016457)
2 comments:
नारी मन के कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई
सुंदर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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