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Apr 1, 2022

कविताः मेरी धरती

 - मंगला शर्मा

मेरी धरती - तुम्हारा आकाश

छू नहीं सकती

ऐसा नहीं है

कुछ भ्रम जरूरी हैं

इसी से तुम्हारा आकाश

अछूता है मेरी ज़मीं के लिए

 

तुम्हारे उन प्रश्नों का जवाब

मेरे ज़ेहन में न हो

ऐसा भी नहीं है

उन प्रश्नों की गरिमा में

मेरा अहं बसता है

एक तरफ़ा ही सही

 

तुम्हारे उन बहुत से निबंधों में

अनुबंधों को न पहचाना हो

ऐसा भी नहीं है

 

मेरी कलम ने हाशिये

बनाने छोड़ दिए हैं

अब शेष के लिए

 

तुम्हारे यज्ञ दीप और साधना

मेरा अध्यात्म न पहचानता हो

ऐसा भी नहीं है

 

मेरी परिक्रमा तो

तुम्हारे आकाश के इर्द गिर्द है

सच कहूँ तो

कुछ और जन्मों के लिए


सम्पर्क: mangla.tainguria@gmail.com,

गंजबासौदा (म. प्र.)

  ( 9425016457)

2 comments:

विजय जोशी said...

नारी मन के कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई

Sudershan Ratnakar said...

सुंदर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति