नहीं कटेंगे पेड़
- हरिहर वैष्णव
(मंच पर नट का प्रवेश।)
नट (दर्शकों को सम्बोधित करते हुए)- क्यों, भाइयो और बहनो! आपमें से किसी ने देखा है मेरी नटी को?
पहला दर्शक- क्यों भइया, कहीं खो गई क्या? बड़े दु:खी लगते हो?
नट- हाँ भाई साहब। ठीक कहते हैं आप।
(तभी भीड़ में से नटी वहाँ आती है। नट उसे देख कर खुश होता है। सब तालियाँ बजाते हैं।)
नट- अरी भागवान! तू कहाँ रह गई थी?
नटी- बस! चली ही तो आ रही हूँ।
नट- अच्छा, अच्छा। भूल गई क्या, क्यों आए हम लोग यहाँ पर?
नटी- नहीं याद कुछ पड़ता है जी। तुम बतलाओ, क्यों आए हैं?
नट- हम आए हैं, कथा सुनाने। इन लोगों का मन बहलाने।
नटी- अच्छा, अब तुम देर न करना। कह डालो, जो कुछ है कहना।
नट (दर्शकों से)- सुनो गाँव की एक कहानी। मेरी जुबानी, मेरी जुबानी। एक गाँव की सुनो कहानी। मेरी जुबानी, मेरी जुबानी।
नटी- कहानी, कौन कहानी? कहानी, किसकी कहानी?
नट- जरा तू धीरज धर ले नानी। तू मत करना मनमानी। मेरी नानी, जरा तू धीरज धर ले।
नटी- लोग खो रहे धीरज अब तो। कहना हो जो, कह दो तुम तो।
नट- गाँव एक था जंगल बीच। रहते उसमें नर-नारी। लेकिन जंगल काटे जाते। रोज-रोज थे वे भारी।
नटी- तभी गाँव की महिला एक। खड़ी हो गई थी वह नेक। बोली अपनी सखियों से। नहीं कटेंगे, पेड़ अब एक।
नट- घर-घर जा कर अलख जगाया। सबको उसने था समझाया। लोग थे कहते उसको पगली। पर ना उसने धीरज खोया।
नटी- वह थी कहती, पेड़ हमारे। जीवन का सम्बल हैं प्यारे। इन्हें काटना पाप बहुत है। ये तो हैं भगवान हमारे।
नट- थी औरत वह हिम्मत वाली। रहती थी ना कभी वह खाली। गाँव-गाँव वह घूमा करती। जंगल की करती रखवाली।
नटी- नाम था उसका कुछ अच्छा-सा। घर था उसका कुछ कच्चा-सा। पढ़ी-लिखी वह थोड़ी-सी थी। पर विचार कितना अच्छा-सा।
नट- क्या तुम भूल रही हो नाम?
नटी- हाँ, हाँ। भूल रही हूँ नाम।
नट- नाम था उसका सोमारी। लोगों पर थी वह भारी। दिखने में थी सुकुमारी। लेकिन काम बड़े भारी।
नटी- क्यों न हम ऐसा करें। जाएँ परदे के पीछे। सोमारी को आने दें। हम आएँगे फिर पीछे।
नट- ठीक कहा भई, ठीक कहा। तुमने बिल्कुल ठीक कहा।
नटी- चलो, चलें हम दूर यहाँ से। दूर बैठ कर देखेंगे। आने दो अब सोमारी को। लोग भी उसको देखेंगे।
नट- लो भाइयो, जाते हैं हम। मिलना होगा बाद में। आएगी अब सोमारी। हम आएँगे बाद में।
(दोनों वहाँ से चले जाते हैं। एक ओर से सोमारी का प्रवेश। सोमारी ग्रामीण वेश-भूषा में है। मंच पर आते ही एक ओर से ठक्-ठक् का शोर उभरता है। सोमारी का ध्यान उस शोर की तरफ जाता है। वह उस ओर कान लगा कर कहने लगती है)
सोमारी (उस शोर की ओर कान लगा कर)- फिर से यह ठक्-ठक् का शोर। लगता कोई लकड़ी-चोर। फिर घुस आया जंगल में। दूँ पटखनी दंगल में। (इतना कह कर वह उसी ओर जाती है जिस तरफ से शोर उभर रहा होता है और वहाँ से एक युवक को पकड़ कर खींचती है। युवक के हाथों में कुल्हाड़ी है।)
युवक- अरे, अरे! तू करती क्या है?
सोमारी- तू बतला, तू करता क्या है?
युवक- पेड़ काटता, नहीं देखती?
सोमारी- देख रही हूँ, देख रही हूँ। हरे-भरे जंगल का तू है, करता सत्यानाश! अरे अभागे! क्यों करता है, तू अपना उपहास?
युवक- तू है कौन, मुझे क्यों रोके? क्या जंगल तेरे बाप का? काटूँ पेड़ या जंगल सारा, क्या जाता तेरे बाप का?
सोमारी- ना तेरा ना मेरा जंगल। यह तो सबका अपना है। इसे बचाना काम हमारा। यह सुन्दर इक सपना है। काट न जंगल, मेरी मान। सुन ले विनती, दे तू ध्यान। पेड़ कटेंगे, सूखा होगा। मत कर तू अभिमान!
युवक- पेड़ न काटूँ, मर जाऊँगा। तू ही बतला, क्या खाऊँगा? मेरी रोजी-रोटी इससे। कहाँ-कहाँ अब मैं जाऊँगा?
सोमारी- काम-काज तो और भी, ढेर पड़े हैं भइया। कुछ भी कर तू, लेकिन अब पेड़ काट मत भइया।
युवक (एक ओर संकेत करते हुए)- उधर देख तो, कुछ ही गज पर। ढेरों लोग खड़े हैं। रोज काटते जंगल जो हैं, अब भी वहीं अड़े हैं। सबके हाथों में है कुल्हाड़ी और गँड़ासे ढेर। काट-काट कर पेड़ों का वे, लगा रहे हैं ढेर।
सोमारी- लो, जाती उस ओर अभी मैं। लाती महिला-सेना हूँ। जंगल-चोरों के हाथों में, धरती आज चबेना हूँ।
(युवक चला जाता है। सोमारी एक चक्कर लगा कर अपने साथियों को आवाज देती है।)
सोमारी- सुनो, सुनो री, चम्पा-मैना। नैना तुम भी सुनो, सुनो। रमकलिया, रधिया, सावित्री! तुम सब जन मेरी बात सुनो। सुनो-सुनो री, सुनो-सुनो। रमकलिया, रधिया... ओ चम्पा-मैना ...।
(भीड़ से तीन-चार महिलाएँ निकल कर वहाँ आती हैं। वे चारों है चम्पा, मैना, नैना और रधिया।)
चम्पा- क्या है, दीदी...?
मैना- क्यों चिल्लाती बड़ी जोर से?
नैना- हुआ कोई क्या झगड़ा-टंटा?
रधिया- कहो, कहो तो, क्यों बुलवाया? क्यों इतना है शोर मचाया?
सोमारी- खामोश रहो! मत शोर करो। थोड़ा-सा बहना, ध्यान धरो।
चारों (एक साथ)- ध्यान धरें! क्या ध्यान धरें?
सोमारी (एक ओर संकेत कर)- सुनती हो, ठक्-ठक् का शोर? लगता कोई लकड़ी-चोर। फिर घुस आया जंगल में, दें पटखनी दंगल में?
चारों (एक साथ)- हाँ, हाँ। दें पटखनी दंगल में। जी, दें पटखनी दंगल में।
(पाँचों एक ओर जाती हैं और एक-एक व्यक्ति का हाथ पकड़ कर खींचती हुई लाती हैं। सभी युवकों के हाथों में कुल्हाडिय़ाँ हैं।)
पाँचों (एक साथ)- अरे! ये तो सब अपने हैं लोग!
सोमारी- हाँ, हैं तो ये अपने ही लोग। इसी गाँव के इसी ठाँव के।
चम्पा- इनको तो कई बार बताया।
मैना- बार-बार इनको समझाया।
रधिया- लेकिन इनकोसमझ न आया।
सोमारी- समझ न आया, समझ न आया।
नैना- अब बोलो, क्या करना इनका?
सोमारी- चलो बुलाएँ पंचायत। वहीं करेंगे फैसला।
चम्पा (आवाज देती है)- सुनो-सुनो ओ गाँव वालो। हमने पकड़ा जंगल-चोर। हमने पकड़ा जंगल-चोर।
मैना- अब करना इनका फैसला। हाँ, करना इनका फैसला।
(कुछ लोग इधर-उधर से आ कर वहाँ बैठ जाते हैं।)
पहला व्यक्ति- लेकिन मेरी प्यारी बहना। सुन तो लो मेरा भी कहना।
सोमारी- कहो, कहो जो कहना चाहो।
पहला व्यक्ति- लकड़ी का तो काम है पड़ता, रोज-रोज सबको।
दूसरा व्यक्ति- हाँ, हाँ। इसको-उसको, तुमको-मुझको। काम है पड़ता, रोज-रोज सबको।
पहला व्यक्ति- फिर बतलाओ, लाएँ कहाँ से? काटें जो न पेड़, वो खाएँ कहाँ से?
सोमारी- पेड़ों का कटते जाना तो, है विनाश का कारण। धरती सारी जलती है, बिगड़ रहा पर्यावरण।
चम्पा- तेजी से हैं पेड़ कट रहे, जंगल नष्ट हुआ है। इसीलिए तो मानवता को भारी कष्ट हुआ है।
रधिया- जंगल के कटते जाने से, कैसे हम जिएँगे? जो सूख गयीं नदियाँ तो हम, पानी कहाँ पिएँगे?
मैना- बिन पानी सूना जग सारा। पेड़ बिना न पानी। आओ मिल-जुल पेड़ बचाएँ। बरसे बरखा रानी।
नैना- पेड़ कटें, गरमी बढ़ जाए। वर्षा थम-थम जाए। ऐसे में प्राणी का जीवन, फिर कैसे बच पाए?
पहला व्यक्ति- लकड़ी न हो फिर हम कैसे, चूल्हा-चौका कर सकते? बिन लकड़ी के घर भी कैसे, हम सब निर्मित कर सकते?
दूसरा व्यक्ति- कड़क ठण्ड में बिन लकड़ी के, क्या रह सकता है कोई? इन सबका उपाय जानती, तुममें से क्या है कोई?
सोमारी- है उपाय इन सबका भाई। लो, मैं सबसे कहती हूँ। मेरी बात पर कान धरो। यह मैं तब से कहती हूँ।
पहला व्यक्ति- कहो, कहो क्या कहती हो तुम?
सोमारी- सभी गाँव के आसपास में, खुले हुए निस्तार डिपो हैं। जा कर लो खरीद वहाँ से, इसीलिए निस्तार डिपो हैं।
पहला व्यक्ति- यह तो तुमने भली बताई । हम सब के है मन को भायी।
सभी (एक साथ)- हम सब के है मन को भायी। हम सब के है मन को भायी।
मैना- अब इन चोरों का है हमको, करना जल्दी फैसला।
नैना- करना इनका फैसला। हाँ, करना इनका फैसला।
दूसरा व्यक्ति- क्या कहती है महिला-सेना?
सोमारी- सजा है इनको ऐसी देना। बंद करो सब लेना-देना।
पहला व्यक्ति- लेना-देना? क्या लेना और क्या देना?
सोमारी- हाँ, हाँ। लेना-देना। ना कुछ देना, ना कुछ लेना। बंद करो सब देना-लेना।
रधिया- सजा है इनको ऐसी पाना। भूल जाएँ ये जंगल जाना।
चम्पा- इनसे कोई बात न करना।
मैना- इनके घर पर पाँव न धरना।
नैना- हुक्का-पानी कर दो बंद।
सभी (एक साथ)- कर दो बंद। कर दो बंद।
पहला व्यक्ति- सही कहा है, बहना तुमने।
दूसरा व्यक्ति- कह रखा था इनसे हमने।
चम्पा- फिर भी ये करते मनमानी। पेड़ काटने की है ठानी।
रधिया- इनके घर पर कोई काम हो, नहीं कोई भी जाए।
मैना- कहीं भूल से गया कोई भी, सो पाछे पछताय।
सभी (एक साथ)- सो पाछे पछताए पंचों, सो पाछे पछताय।
(तभी अपराधी युवक एक-एक कर बोल उठते हैं।)
अपराधी एक- हमें सब कर दो माफ, ओ भैया। हाँ, अब कर दो माफ ओ बहना। बाद आज के पेड़ न काटें, मानें सबका कहना। ओ दइया! मानें सबका कहना।
अपराधी दो- लो, हम कान पकड़ते हैं, अब नहीं कटेंगे पेड़।
अपराधी तीन- एक-एक के जिम्मे हैं अब, हरे-भरे ये पेड़।
अपराधी चार- हाँ, हाँ। नहीं कटेंगे पेड़। भैया, नहीं कटेंगे पेड़।
अपराधी पाँच- बहना, नहीं कटेंगे पेड़। भाई, नहीं कटेंगे पेड़।
सभी अपराधी (एक साथ)- हमें सब कर दो माफ, ओ भैया! हमें अब कर दो माफ, ओ बहना! बाद आज के पेड़ ना काटें। मानें सबका कहना। ओ भैया! मानें सबका कहना।
(तभी नट और नटी वहाँ आते हैं।)
नट- अरे, अरे! ये लोग तो हमारा रोल कर रहे हैं, भाई।
नटी- फिर तो मारी जाएगी हमारी कमाई।
सोमारी- कोई किसी की रोजी नहीं छीन रहा है, भाई।
नट- तब फिर हो क्या रहा है?
सोमारी- देख-सुन नहीं रहे हो? पेड़ बचाने की, जंगल बचाने की कसमें ली जा रही हैं। क्या तुम लोग न होगे इसमें शामिल?
नट और नटी (एक साथ)- अरे! हम तो पहले से हैं शामिल।
सोमारी- तो आओ। हम सब ठान लें कि अब के बाद नहीं कटेंगे पेड़।
सभी (एक साथ)- नहीं कटेंगे पेड़, अब नहीं कटेंगे पेड़।
(सोमारी गाना शुरु करती है। उसके साथ सारे के सारे लोग भी गाते हैं)
पेड़ हमारे जीवन-रक्षक, मिल कर इन्हें बचाएँगे।
पेड़ न काटे कोई भी अब, हम सब अलख जगाएँगे।।
जंगल से हैं जीवन पाते, पशु-पक्षी और नर-नारी।
जंगल हैं तो जीवन है, ना हों तो विपदा भारी।।
एक पेड़ सौ पुत्र समान, बात ये सबने मानी है।
हरे-भरे जंगल की महिमा, दुनिया ने भी जानी है।।
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