हम अनेक, किन्तु एक।
हैं कई प्रदेश के
किन्तु एक देश के;
विविध रुप-रंग हैं
भारती के अंग हैं।
भारतीय वेश एक
हम अनेक, किन्तु एक
बोलियाँ हज़ार हैं
कंठ भी अनेक हैं
राग भी अनेक हैं।
बोल-स्वर समान एक
हम अनेक किन्तु एक।
एक मातृभूमि है
एक पितृभूमि है,
एक भारतीय हम
चल रहे मिला कदम।
लक्ष्य है समक्ष एक
हम अनेक, किन्तु एक।
2. नमन है
जिसने हम को
दी है धरती
दिया गगन है
उसे नमन है।
जिसने हम को
दिये अग्नि-जल
दिया पवन है
उसे नमन है।
जिसकी ऊर्जा
से चलता जग
का जीवन है
उसे नमन है।
है यह देन
प्रकृति की सारी
उसका ऋण है
उसे नमन है।
खग-कुल-कलरव, तरु वैभव
खिलते सुन्दर सुमन सुहाने;
प्रात: सुनहरे, साँझ सुनहरी
हरी घास पर लुटे सजाने
अब तो उसका रहा खुशी का
और हर्ष का नहीं ठिकाना;
देख चकित रह गया झूमता
दुनिया का वह दृश्य सुहाना।
4. पौधे की खुशी
माटी के नीचे, गहरे में
एक बीज मैंने बोया था,
उसी बीज में गहरी निद्रा
में नन्हा पौधा सोया था।
पौधा समझ रहा था सारी
दुनिया में है सिर्फ अँधेरा,
क्योंकि अभी तक उसने देखा
कभी नहीं था स्वर्ग-सवेरा।
टप-टप-टप गिर कर बूँदों ने
तब उसको आ स्वयं जगाया;
कहा- उठो, आँखें खोलो
देखो दुनिया की अद्भुत माया।
उतर गगन से नन्ही किरणों
ने उसको आ स्वयं जगाया;
कहा- उठो, आँखें खोलो,
देखों दुनिया की अद्भुत माया।
सर-सर, मर-मर करती हुई
हवा ने दे आवाज जगाया;
कहा- उठो, आँखें खोलो,
देखो दुनिया की अद्भुत माया।
कल-कल करती सरिता की
नन्हीं लहरों ने उसे जगाया;
कहा- उठो, आँखें खोलो,
देखो दुनिया की अद्भुत माया।
सुन हम सब की आवाज़ें, ली
पौधे ने मीठी अँगड़ाई;
आँख खोल देखा तो सचमुच
दुनिया दी अद्भुत दिखलाई।
नील गगन, मृदु-मंद पवन, रवि
स्वर्णिय, शीतल चाँद-चाँदनी;
मलमल तारागण, हिम के कण सरिता कल-कल-कल निनादिनी।
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