आई जून की भरी दुपहरी
छाया देता भाये घर।
नीम -निबौंली से अक्सर ये
बने बिछौना मेरा घर।
चीं -चीं चिडिय़ा की बोली से
चहका रहता मेरा घर।
सभी यहाँ मिल करके रहते
खिल-खिल करता मेरा घर।
जंगल भी थर्राता है।
बाघ
बाघ ये जंगल का राजा है
फुर्तीला मोटा -ताजा है।
कपड़े पहने धारीधार
लम्बी छलाँग लगाता है
शिकार पकड़कर लाता है।
जब-जब ये गुर्राता है
जंगल भी थर्राता है।
Email-bhawnak2002@gmail.com
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शशि पुरवार की दो बाल कविताएँ
1. चंदा मामा
चंदा मामा प्यारे मामा
तुम जल्दी से आ जाना
प्यारे- प्यारे सपने जो
मेरी आँखों में लाना।
मामा तुम जब आते हो
मन को बहुत लुभाते हो
सभी मुझे यह कहते है
कितना हमें सताते हो।
चंदा मामा प्यारे मामा,
तुम जल्दी से आ जाना...!
मामा जब तुम आते हो
तो, माँ भी आ जाती है
प्यारी-प्यारी नई कथा
हमको रोज़ सुनाती है।
चंदा मामा प्यारे मामा,
मामा जब तुम आते हो
माँ लोरी भी गाती है
हाथों से थपकी देकर
मीठी नींद सुलाती है।
चंदा मामा प्यारे मामा,
तुम जल्दी से आ जाना।
2. नाना- नानी
नाना-नानी सबसे प्यारे
हमको लाड़ लड़ाते है।
हमसे जब भी मिलने आते
खेल-खिलौने लाते है।
रोज पार्क में सुबह -सवेरे
हमको सैर कराते है।
खूब खेलते साथ हमारे
हँसकर मन बहलाते हैं।
मम्मी-पापा के गुस्से से
हमको रोज़ बचाते है।
लड्डू, पेड़े,रसगुल्ले भी
ये हमको दिलवाते है
हमसे गलती हो जाती जब
खूबहमें समझाते है।
नई-नई बातें सिखलाकर
मन सबका बहलाते हैं।
सम्पर्क: p- 4, 2/1 सरकारी निवास, सागर पार्क के सामने, कोजी कॉटेज के बाजू , महाबल रोड, जलगाँव, महाराष्ट्र- 4257001, Email- shashipurwar@gmail.com
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