खोना और पाना
- सीमा सिंघल
हमारे पास शुरू से ही हर चीज के दो विकल्प रहे हैं ... खोना और पाना अथवा करो या मरो, जीवन इन्हीं दो विकल्पों के आधार पर टिका हुआ है हर सिक्के के दो पहलू होते हैं... कई बार होता है स्थितियों को हम उसी रूप में स्वीकार कर लें वे जैसी हैं या फिर उन्हें बदलने का उत्तरदायित्व स्वीकार कर लें...
वर्तमान में देश के जो हालात हैं उन्हें हम स्वीकार कर चुके हैं क्योंकि उसे बदलने के लिए एक हाथ एक विचार या किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा .. देश में समस्याओं की बात करें तो समस्याओं का गढ़ बन चुका है यह चौतरफा लूट-खसोट मची हुई है, यह सब मेरे कहने की जरूरत नहीं न ही किसी को बताने की बल्कि हर जागरूक व्यक्ति यही विचार रखता है अपने मन में लेकिन यहां किसी की तरफ उंगली उठाने के लिए किसी से नहीं कहा जा रहा है ना ही किसी को दोषी ठहरा न्याय-अन्याय की परिधी में उसका आंकलन किया जा रहा है बल्कि एक शक्तिशाली विचार दिया गया है ..
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में .. यह विचार अपने आप में ही एक ऊर्जा देता हुआ सा है एक आम इंसान से हटकर आप स्वयं सत्तासीन होकर अपनी कल्पना को साकार कर सकते हैं जिन खामियों को लेकर आप मन ही मन कुढ़ते रहते हैं सरकार को दोषी ठहराते हैं यदि सुधार करने के लिए एक अवसर मिले तो आप क्या कर सकते हैं देश के लिए ... देश को आज जिस बात से ज्यादा खतरा है वह है भ्रष्टाचार का। जब तक इसको रोकने के कारगर उपाय नहीं होंगे तब हर व्यवस्था पर पानी फिरता रहेगा चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या आतंकवाद को रोकने के उपाय हो..या फिर बढ़ती मँहगाई से निपटने के तरीके सबसे पहले इसके लिए समूह बनाकर भ्रष्टाचार का खात्मा करना ही होगा तभी हर क्षेत्र में विकास संभव है... जैसा कि शुरू में ही मैंने कहा है एक हाथ एक विचार या किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा... यहां वो स्थिति तो रही नहीं कि हवा जिधर को बह रही हो हम भी उधर हो लें बल्कि हवाओं का रूख बदलने के लिए तैयार हों।
http://sadalikhna.blogspot.in
हमारे पास शुरू से ही हर चीज के दो विकल्प रहे हैं ... खोना और पाना अथवा करो या मरो, जीवन इन्हीं दो विकल्पों के आधार पर टिका हुआ है हर सिक्के के दो पहलू होते हैं... कई बार होता है स्थितियों को हम उसी रूप में स्वीकार कर लें वे जैसी हैं या फिर उन्हें बदलने का उत्तरदायित्व स्वीकार कर लें...
वर्तमान में देश के जो हालात हैं उन्हें हम स्वीकार कर चुके हैं क्योंकि उसे बदलने के लिए एक हाथ एक विचार या किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा .. देश में समस्याओं की बात करें तो समस्याओं का गढ़ बन चुका है यह चौतरफा लूट-खसोट मची हुई है, यह सब मेरे कहने की जरूरत नहीं न ही किसी को बताने की बल्कि हर जागरूक व्यक्ति यही विचार रखता है अपने मन में लेकिन यहां किसी की तरफ उंगली उठाने के लिए किसी से नहीं कहा जा रहा है ना ही किसी को दोषी ठहरा न्याय-अन्याय की परिधी में उसका आंकलन किया जा रहा है बल्कि एक शक्तिशाली विचार दिया गया है ..
यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में .. यह विचार अपने आप में ही एक ऊर्जा देता हुआ सा है एक आम इंसान से हटकर आप स्वयं सत्तासीन होकर अपनी कल्पना को साकार कर सकते हैं जिन खामियों को लेकर आप मन ही मन कुढ़ते रहते हैं सरकार को दोषी ठहराते हैं यदि सुधार करने के लिए एक अवसर मिले तो आप क्या कर सकते हैं देश के लिए ... देश को आज जिस बात से ज्यादा खतरा है वह है भ्रष्टाचार का। जब तक इसको रोकने के कारगर उपाय नहीं होंगे तब हर व्यवस्था पर पानी फिरता रहेगा चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या आतंकवाद को रोकने के उपाय हो..या फिर बढ़ती मँहगाई से निपटने के तरीके सबसे पहले इसके लिए समूह बनाकर भ्रष्टाचार का खात्मा करना ही होगा तभी हर क्षेत्र में विकास संभव है... जैसा कि शुरू में ही मैंने कहा है एक हाथ एक विचार या किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा... यहां वो स्थिति तो रही नहीं कि हवा जिधर को बह रही हो हम भी उधर हो लें बल्कि हवाओं का रूख बदलने के लिए तैयार हों।
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