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Jul 1, 2023

लेखकों की अजब गज़ब दुनियाःनियम बनाकर चलने वाले लेखक

 - सूरज प्रकाश

ई बी व्‍हाइट अपने लेखन के बारे में लिखते हैं कि मैं काम करते समय संगीत नहीं सुनता। मुझमें ध्‍यान देने का इतना माद्दा नहीं है। हाँ, छोटे मोटे व्‍यवधानों के बीच मैं काम कर लेता हूँ। मेरे घर में जो बैठक का कमरा है, घर भर की सारी गतिविधियाँ वहीं से होती हैं। वहीं से तहखाने में जाने का रास्‍ता है। रसोई में जाना हो, तो वहीं से गुजर कर जाना होगा।  फोन भी एकदम पास ही रखा होता है। यानी हर समय वहाँ चहल पहल रहती है; लेकिन ये कमरा उजास लिये हुए है। आसपास बेशक मेला चल रहा हो, मैं यहीं बैठ कर लिख लेता हूँ। नतीजा ये होता है कि मेरे घर के लोग इस बात की जरा- सी भी परवाह नहीं करते कि ये बंदा लेखक है। वे शोर गुल करते रहते हैं। अगर मैं इनसे ज्‍यादा ही परेशान हो जाऊँ, तो वहाँ से दूर जाने के लिए मेरे पास जगहें हैं। अगर लेखक इस बात का इंतज़ार करता रहे कि उसे लिखने के लिए आदर्श स्‍थितियाँ चाहिए, तो माफ करना, वह एक भी शब्‍द लिखे बिना मर जाएगा।

ओरहान पामुक
ओरहान पामुक अभी भी पेन से लाइनों वाले काग़ज़ पर लिखते हैं। तय करके लिखते हैं और समय बरबाद नहीं करते। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्‍हें घर पर लिखना अजीब लगता है। उन्हें हमेशा एक दफ़्तर चाहिए, जो घर से अलग हो, जहाँ वे सिर्फ़ लिख सकें। वे घर में लिखने की मजबूरी से अलग ही ढंग से निपटते हैं। वे सुबह उठते हैं, नहाते-धोते हैं, नाश्ता करते हैं, बाक़ायदा फॉर्मल सूट पहनते हैं और पत्‍नी से यह कहकर घर से निकल पड़ते हैं कि मैं ऑफिस जा रहा हूँ। पंद्रह-बीस मिनट सड़क पर टहलने के बाद वे घर लौट आते हैं, अपने कमरे में घुसते हैं और उसे अपना ऑफिस मान लिखने लग जाते हैं।
जेम्‍स जॉयस सफेद कोट पहनकर पेट के बल बिस्‍तर पर लेट जाते। हाथ में लंबी नीली पैंसिल होती। वे कार्ड बोर्ड पर क्रेयान से लिखते। इस तरह की हरकत के पीछे कोई सनक या वहम की बात नहीं थी। दरअसल उन्‍हें ठीक से दिखना बंद हो गया था। बचपन में आँख में हुई तकलीफ बीस बरस की उम्र आते आते परेशान करने लगी थी और कोढ़ में खाज ये हुआ कि जब वे पच्‍चीस बरस के थे तो बुखार से ये हालत हो गयी कि उन्‍हें 25 बार आँखों के ऑपरेशन कराने पड़े; लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब यही तरीका बचता था कि बड़े से क्रेयान से जो लिख पाते, वही देख पाते थे। सफेद कोट से कागज पर रात के वक्‍त ज्‍यादा रौशनी पड़ती। इसके बावजूद उन्‍हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी। वे मानकर चलते थे कि अगर पूरे दिन में ढंग के दो पूरे वाक्‍य भी लिख लिये तो दिहाड़ी पक्‍की समझो।

• विक्‍टर ह्यूगो जब द हंचबैक ऑफ नोत्रेदम लिखने बैठे, तो अपने लिए बेहद मुश्‍किल से लगने वाली समय सीमा तय कर ली। वे स्‍याही की एक पूरी बोतल खरीद लाए और एक तरह से अपने आपको घर में कैद कर लिया। वे घर से बाहर ही न निकलें इसके लिए उन्‍होंने एक नायाब तरीका अपनाया। अपने कपड़े उन्‍होंने ताले में बंद करके रख दिए; ताकि बाहर जाने का लालच ही न रहे। बस, एक भूरी- सी शॉल ओढ़कर बैठे रहते। उन्‍होंने मौके -बे मौके के लिए पंजों तक आने वाला बुना हुआ एक लबादा- सा खरीद लिया था, जो कई महीने तक उनकी पोशाक बना रहा। किताब तय समय सीमा से पहले ही पूरी हो गयी थी। अलबत्‍ता, स्‍याही की पूरी बोतल खाली हो चुकी थी। वे तो इस किताब का नाम ही ये रखना चाहते थे – स्‍याही की बोतल से क्या हासिल हुआ, लेकिन बाद में ये नाम रहने दिया।

विलियम फॅाकनर जब लिखते थे, तो खूब व्हिस्की पीते थे। जितनी शराब अंदर, उतना लेखन बाहर। मजे की बात वे खुद दारू बनाने वाली कंपनी में काम करते थे।

अमरीकी उपन्यासकार जोनाथन फ्रेंजेन एक लंबे राइटर्स ब्लॉक के दौरान जब कुछ नहीं लिख पा रहे थे, तो उन्होंने तंबाकू खाना शुरू कर दिया। यह आदत उनके लेखक मित्र डेविड फ़ॉस्टर वैलेस में थी। वैलेस की आत्महत्या के बाद वह आदत उनमें आ गई। जब वे लिखते हैं, तो अपने पुराने डेल के लैपटॉप के
आगे ज़ोर-ज़ोर से अपने डायलॉग्स बोलते हैं। छह घंटे के लेखन-सेशन के बाद उनका गला बैठ जाता है और यह लगभग रोज़ की बात है।

सलमान रश्दी
सलमान रश्दी सुबह उठने के बाद पहला काम जो करते हैं, वह है लिखना। बैठते ही पढ़ेंगे कि कल क्या- क्या कितना लिखा था। फिर आगे लिखने का काम शुरू होगा। तीन घंटे लिखने के बाद पहला ब्रेक। फिर दुनियादारी। शाम को पेज तीन वाली जि़ंदगी में घुसने से पहले एक बार फिर पढ़ेंगे कि सुबह क्या क्या- लिखा था। फिर अगली सुबह छुएँगे। कोई करेक्शन हुआ, तो वह भी अगली सुबह। मिडनाइट्स चिल्ड्रेन लिखते समय वे नौकरी कर रहे थे। पाँच दिन नौकरी बजाते थे, पाँचवीं शाम घर पहुँच घंटा-डेढ़ घंटा गरम पानी में नहाते, फिर लिखने बैठ जाते। सोमवार की सुबह तक सोते-जागते लिखते, फिर अपने काम पर चले जाते, पाँच दिन के लिए।

द काइट रनर के प्रसिद्ध लेखक खालिद हुसैनी लिखते हैं कि मैं ऐसे कई लोगों से मिलता हूँ जो बताते हैं कि उनके दिमाग में एक किताब बस तैयार है; लेकिन वे एक शब्‍द भी नहीं लिखते। लेखक होने के लिए आपको सचमुच लिखना पड़ता है। आपको हर दिन लिखना होता है। और आपको अच्‍छा लगे या बुरा लगे, लिखना होता है। शायद सबसे जरूरी बात ये होती है कि आपको श्रोता के लिए लिखना होता है। ये श्रोता आप खुद होते हैं। वह कहानी लिखो, जो आप सुनाने की ज़रूरत महसूस करते हैं और जो कहानी आप पढ़ना चाहते हैं। ये पता करना बहुत ही मुश्किल होता है कि दूसरे क्‍या चाहते हैं, इसलिए ये सब जानने में समय बरबाद न करें। जो कुछ भी आपकी आँखों के सामने है उसे लिखें और वह सब लिखें जो आपकी रातों की नींद खराब करती हैं।

अंग्रेजी के लेखक नाथन इंगलैंडर लिखते हैं कि लिखते समय अपना मोबाइल बंद कर दें। सच तो ये है कि अगर आप काम करना चाहते हैं तो आपको अलग रहने की कला आनी  चाहिए। कोई एसएमएस नहीं, ईमेल नहीं, फेसबुक नहीं, कुछ भी नहीं। आप जो कुछ भी कर रहे  हों लिखते समय सब बंद कर देना चाहिए। आपको जान कर हैरानी होगी कि जब मैं लिखता हूँ, आसपास भले ही सन्‍नाटा हो, मैं कानों में ईयर प्‍लग घुसेड़े रहता हूँ।

जापानी लेखक हारुकी मुराकामी बताते हैं कि जब मैं उपन्‍यास लिखने के मूड में होता हूँ, तो सुबह चार बजे जग जाता हूँ और पाँच से छह घंटे काम करता हूँ। दोपहर के वक्‍त मैं दस किलोमीटर की दौड़ लगाता हूँ या डेढ़ किलोमीटर की तैराकी करता हूँ या दोनों ही करता हूँ। तब कुछ देर पढ़ता हूँ और कुछ संगीत सुनता हूँ। रात नौ बजे मेरा सोने का समय होता है। मेरे इस रूटीन में कोई बदलाव नहीं आता। दोहराव ही सबसे अहम हो जाता है। ये एक तरह से मन को वश में करने की तरह की बात है। मैं अपने दिमाग की गहराई तक पहुँचने के लिए अपने आपको सम्‍मोहित करता हूँ;  लेकिन इस दोहराव को लंबे समय तक, छह महीने से एक बरस तक चलाना बहुत अधिक मानसिक और शारीरिक मेहनत की माँग करता है। एक तरह से कहें तो लंबा उपन्‍यास लिखना जीवित रहने के प्रशिक्षण की तरह  है। शारीरिक श्रम भी कलात्‍मक संवेदना की तरह जरूरी होता है।

हेनरी मिलर ने अपने लेखन के लिए जो रूटीन बनाया था, वह बेहद रोचक है: एक वक्‍त में एक ही काम और उसके खत्‍म हो जाने तक उसी पर डटे रहो। अधूरे कामों की सूची बढ़ाने की जरूरत नहीं। कोई नई किताब या नया काम हाथ में मत लो। तनाव में आने की जरूरत नहीं। धीरज से काम करो, काम में खुशी तलाशो, जो भी काम हाथ में हो, पूरी शिद्दत से करो। तय कार्यक्रम के हिसाब से काम करो न कि मूड के हिसाब से। ठीक वक्‍त पर काम बंद। जब आप रच नहीं सकते, तब काम कर सकते हैं। जमीन धीरे धीरे पुख्‍ता करें। रोजाना नई खाद डालने से कुछ नहीं होने वाला। संबंध बनाए रखें, लोगों से मिलें जुलें, घूमें, मन करे तो शराब की चुस्‍की लें। गधे की तरह काम न करें। खुशी-खुशी काम करें। मन न करे तो तयशुदा कार्यक्रम छोड़ दें; लेकिन अगले दिन उसी पर लौट आएँ। ध्‍यान लगाएँ। लक्ष्‍य पर ध्‍यान दें। उन किताबों को भूल जाएँ जो आप लिखना चाहते हैं। सिर्फ उसी के बारे में सोचें, जिस पर काम कर रहे हैं। लेखन पहले और लेखन हमेशा। पेंटिंग, संगीत, दोस्‍त, सिनेमा, सब चीजें बाद में आती हैं। (क्रमशः)  ■■

1 comment:

Anonymous said...

रोचक। सुदर्शन रत्नाकर