उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jul 1, 2023

यात्रा-संस्मरणः घने बादल और बारिश में भीगता समुद्र

 - नीरज मनजीत

सड़क के एक तरफ़ सह्याद्रि की हरी-भरी पहाड़ियाँ और दूसरी तरफ मूसलाधार बारिश में भीगता सलेटी समुद्र... वृक्षों, पौधों की हरीतिमा धुलकर साफ चटक हरी हो गई है और बारिश के कोहरे में समुद्र धुँधला... और अधिक धुँधला हो रहा है... मूसलाधार बारिश का भी अपना कोहरा होता है.... बादल-बारिश- कोहरा-समुद्र... लगता है कि दसों दिशाओं में सैकड़ों मील घना सलेटी कोहरा आकार ले रहा है... धूप का एक टुकड़ा भी हमें दिखा.... बस थोड़ी देर के लिए... फिर वह हमारी परछाइयों के साथ कहीं गुम हो गया....

यह बारिश के दिनों का दापोली है... महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में सह्याद्रि पर्वत शृंखला की गोद में बसा यह तटवर्ती नगर बारिश में नहाकर कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत दिखाई पड़ता है.... नितांत उस कविता की तरह जो उस दिन लिखी गई....

             कोहरे  की  बारिश      


                    बारिश के कोहरे में

                     खो गया है समुन्दर।

                     कोहरे के बादलों तले

                     कोहरे की नीली-हरी मौजें

                     करवटें बदल रही हैं।


                    बादल बारिश समुन्दर

                    या कि सलेटी कोहरे से

                    कोहरे की बारिश

                    बरस रही है

                    नीले कोहरे पर।


                   सबकुछ मिलकर ज्यों

                   एक बहुत बड़े वितान पर

                   गतिमान कई दृश्याभास।


                   समन्दर के किनारे

                   कोहरे के साहिल पे 

                   धूप का एक टुकड़ा

                   दिखा था जो थोड़ी देर पहले,

                   वह गुम हो गया है

                   हमारी परछाइयों के साथ !

दापोली में हम पूरे सवा दो दिनों तक रहे। हम सब रचनाकार 25 जुलाई, 2017 की रात 10 बजे के आसपास एक पहाड़ी पर बसे सागर हिल रिसोर्ट पहुँच गए थे। बस से उतरते ही ताज़ा ठण्डी हवाओं, हल्की बूँदाबाँदी और सड़क के थोड़ा नीचे समुद्र की गरज ने हमारा इस्तक़बाल किया। रात के वक़्त हम कतई नहीं देख पाए कि हम कितनी सुंदर दृश्यावलियों से घिरे हैं। सुबह खिड़की खोली, तो सामने अपनी लहरों पर तैरते आकर्षक समुद्र का विस्तार था और आसमान पर घने काले बादल छाए हुए थे। चाय पीने रिजॉर्ट की ऊपरली छत पर बैठे ही थे कि ठण्डी हवाओं के साथ तेज बारिश शुरू हो गई। उसके बाद तो पूरे 52 घण्टों तक हम थे, सह्याद्रि की सुंदर शृंखला थी, बादल बारिश समुद्र थे और तन-मन के आरपार होकर गुज़रती ठण्डी हवाएँ थीं। ताज़ा ठण्डी हवाएँ, बादल, बारिश और समुद्र 28 जुलाई की सुबह 10 बजे तक हमारे साथ-साथ चलते रहे। जब हमने दापोली को अलविदा कहा, तो मानो खिली धूप का उपहार देकर उन्होंने हमें विदाई दी।

दापोली जाने के लिए मई महीने के आखिरी हफ़्ते मैंने ट्रेन की टिकटें बुक करा लीं, ताकि ऐन वक़्त पर किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। मुम्बई की टिकिट एक दिन पहले यानी 23 जुलाई की ली। 24 जुलाई का दिन वहाँ मित्रों से मुलाक़ात का तय किया। टिकटें आदि हो जाने के बाद दापोली के बारे में नेट पर सर्च किया, तो कुछ खास जानकारी नहीं मिली। एक तरह से यह ठीक ही होता है। किसी यात्रा के पहले सबकुछ जान लिया गया, हो तो कुछ रोमांच शेष नहीं रहता। खैर, जुलाई के पहले हफ़्ते बारिशें आने लगीं। बड़ी खुशगवार-सी, तन-मन को भिगोती। ऐसी, जिन्होंने थमने का नाम नहीं लिया। दूसरे हफ़्ते बारिशें थोड़ा भयभीत करने लगीं। हर तरफ़ से बड़ी ही डरावनी खबरें आ रही थीं। खासतौर पर मुम्बई से। प्रवास खटाई में पड़ता नज़र आने लगा। फिर भी हिम्मत जुटाकर सामान बाँध लिया, तैयारी कर ली।

22 जुलाई को एक कांफ्रेंस में शामिल होने जबलपुर जाना था। सुबह 5 बजे हम कवर्धा से जबलपुर के लिए रवाना हुए, तो तेज बारिश हो रही थी। फिर रास्ते भर बारिश लगातार घटती-बढ़ती रही। जबलपुर से वापसी के लिए निकले,  तो भी मूसलाधार बारिश हो रही थी। पानी की तेज बौछारों से जूझते कवर्धा पहुँचे; लेकिन बड़ा ही अच्छा लगा। पिछले कुछेक वर्षों से तो ऐसी तेज बारिश देखने में ही नहीं आ रही थी। 23 की सुबह चार बजे उठा, तो फिर बाहर तेज बारिश थी। तैयार होकर रायपुर के लिए निकला, तो भी अच्छी खासी बारिश हो रही थी। रायपुर में बारिश तो नहीं थी, लेकिन घने काले बादल कब बरस पड़ें, कुछ कहा नहीं जा सकता था। अच्छी खबर यह थी कि मुम्बई में बारिश थम चुकी है।

दापोली पहुँचने के लिए हमें मत्स्यगंधा एक्सप्रेस पकड़कर खेड़ जाना था। मुंबई से मडगाँव गोआ तक चलने वाली यह ट्रेन मुंबई से दोपहर 2 बजे रवाना होती है और रात 8 बजे खेड़ पहुँचती है। बारिशों में मुंबई से मडगाँव का रास्ता काफी खुशगवार और सुंदर दृश्यावलियों से भरा होता है। इसी लाइन पर देश की सबसे लंबी सुरंग है। इस सुरंग की लंबाई 12 किमी है। खेड़ से हम एक विशेष बस से दापोली पहुँचे, जो वहाँ से 45 किमी दूर था।

रसिका माने, दापोली और  मछुआरों की बस्ती

दापोली और सह्याद्रि की पहाड़ियाँ प्राकृतिक सुंदरता की दृष्टि से काफी संपन्न हैं। इसके बावजूद पर्यटन के नज़रिए से इसकी ख्याति ज़्यादा नहीं है, हालाँकि यहाँ कुछ बड़े ही अच्छे रिज़ॉर्ट हैं। दरअसल, यहाँ गोआ जैसे सुनहली रेत वाले खूबसूरत, साफ-सुथरे बीच नहीं हैं। यहाँ के समुद्रतट कटे-फटे, सँकरे और काली रेत वाले हैं। समुद्र का पानी भी अपेक्षाकृत गँदला है। सुंदर बीच तलाश करने वाले पर्यटकों के लिए भले ही यहाँ ज़्यादा कुछ न हो, पर हम रचनाकारों के लिए यहाँ बहुत कुछ था।

दापोली में यह मछुआरों की बस्ती है। यहाँ पर समुद्र काफी गहरा और उग्र है। 27 जुलाई की दोपहर जब हम यहाँ आए, तो मौसम काफी सुहावना था। ऊपर घने काले बादल थे; लेकिन बारिश नहीं हो रही थी। तेज ठंडी दिलकश हवाएँ तन-मन को ताज़ादम कर रही थीं। यह मौसम मछुआरों के लिए ऑफ सीजन है, इसलिए उनकी छोटी-बड़ी नावें समुद्र के किनारे गाँव में ज़मीन पर उल्टी-सीधी पड़ी हैं। कुछ नावें काफी बड़ी, भारी-भरकम, कई टन वजनी थीं। उन पर तालपत्री तानकर मछुआरों ने घर बना लिये थे। मैंने एक मछुआरे से पूछा कि इतनी भारी और बड़ी नाव वे समुद्र में वापस कैसे उतारते हैं, तो उसने बताया कि नाव के नीचे बड़े गोल लट्ठे डालकर धीरे-धीरे सरकाकर उसे उतारा जाता है। कुछ मछुआरे अपने जाल की मरम्मत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि गणपति की स्थापना के साथ ही उनका सीजन शुरू हो जाता है। इस जगह एक पुराने लाइट हाउस के अवशेष भी हैं और कुछ दूरी पर एक छोटे से द्वीप पर एक भग्न होता किला है। इस किले में नाव पर बैठकर ही जाया जा सकता है, लेकिन अभी उफनते समुद्र में आवाजाही बंद है।

रसिका माने एक दुबली-पतली लड़की है, दापोली के पास बसे साखरेवाड़ी गाँव की। 26 जुलाई को ग्राम पंचायत भवन में हम उससे मिले। वह यहाँ नौकरी करती है। चूँकि हम सभी रचनाकार इस इलाके के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानने के लिए उत्सुक थे, इसलिए हम सभी ने एक तरह से उसे घेर लिया और सवाल-पे -सवाल दागने लगे। उसे हमारी हिन्दी समझने में थोड़ी दिक़्कत हो रही थी, लेकिन बड़ी ही सहजता से, समझदारी से, बड़े ही धैर्य से उसने हमें अपने गाँव के बारे में, अपने रहन-सहन के बारे में काफी कुछ बताया। बातचीत के बीच ही किसी ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न आज शाम हम रसिका के घर चाय पीने चलें। रसिका ने भी सहर्ष हमें आमंत्रित कर लिया। शाम को हम सभी लोग रसिका के घर गए। साथ में बच्चों के लिए कुछ चॉकलेट स्नैक्स वगैरह भी ले गए। रसिका और उसकी भाभी ने बड़े ही प्यार से हमें घर के अंदर बिठाया। रसिका का घर छोटा; किंतु पक्का था। हमने बड़े ही चाव से उसके हाथों बानी चाय पी। यह हम सब रचनाकारों की मूल भावना के अनुरूप ही था। जैसा कि हमारे वरिष्ठ साथी साहित्यकार सतीश जायसवाल ने कहा-" हमने आज रसिका के घर बैठकर चाय पी, उसके घरवालों से बातें की, तो पूरा साखरेवाड़ी गाँव हमारे साथ चला आया। यह पूरा गाँव हमारी स्मृतियों में सदैव बना रहेगा और साथ ही हम सारे रचनाकार भी इस गाँव और गाँववालों को याद रहेंगे।"

दापोली और रसिका के अलावा भी इस प्रवास का बहुत कुछ हमें लंबे समय तक याद रहेगा। बालासाहेब सावंत कृषि विद्यापीठ- यह एशिया का सबसे बड़ा कृषि विश्वविद्यालय है। बालासाहेब का जन्म रत्नागिरि जिले के मिन्या गाँव में हुआ था। वे एक सक्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शिक्षाशास्त्री थे। आज़ादी के बाद वे कई वर्षों तक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी रहे। उनकी स्मृति में यह विद्यापीठ 1985 में स्थापित की गई। यहाँ के लाइब्रेरियन देवानंद बी खुपटे ने हमें काफी कुछ बताया। निकटवर्ती गाँव कर्दे के सरपंच सचिन तांडे हमसे मिलने रिसोर्ट आए। वे एक बड़े आम सप्लायर भी हैं। इस इलाके के बारे में उन्होंने हमारे कई सवालात को लेकर विस्तार से जानकारी दी। कर्दे गाँव के मोहम्मद असलम, जो हमें मस्जिद का चित्र लेते देख हमारे पास चले आए और फिर उस गली में खड़े-खड़े ही उनसे हम काफी कुछ पूछते रहे, उसके साथ एक चित्र भी लिया। कर्दे गाँव का स्कूल और फिर एक गाँववाले के घर रात के खाने में स्थानीय व्यजनों का स्वाद। 

और फिर दोनों दिन रात के वक़्त ठण्डी हवाओं, बारिश और समुद्र के साथ कविता पाठ और बातचीत। रात के वक़्त हम सभी रचनाकार गोल घेरे में कुर्सियों पर जम जाते और रसीली वार्ता तथा कविता सुनने-सुनाने का दौर चल निकलता। बारिश और समुद्र ही हमारी कविताओं के केन्द्र में थे। लग रहा था कि वे भी हमारी कविताएँ सुन रहे हैं, हमें कुछ सुना रहे हैं, हमारी बातचीत में शामिल हैं। यह एक अद्भुत अनुभव था। ■■

सम्पर्कः हैप्पीनेस प्लाजा, नवीन मार्केट, कवर्धा, छ .ग . 491995, मो.  96694 10338, 70240 13555

ई मेल- neerajmanjeet@gmail.com


No comments: