पश्चिमी घाट के सतारा जिले में स्थित यह एक सुंदर सा हिल स्टेशन है। इसे पुराना महाबलेश्वर अथवा क्षेत्र महाबलेश्वर भी कहते हैं। यह जगह यहाँ के प्राचीन मंदिरों और स्ट्रॉबेरी फार्म के लिए प्रसिद्ध है। महाबलेश्वर कई नदियों,शानदार झरनों और खूबसूरत पहाड़ों की वजह से आकर्षक बना हुआ है। गौरतलब है कि इसे पुणे और मुंबई के गेट वे के तौर पर भी जाना जाता है. यह महाराष्ट्र का लोकप्रिय हिल स्टेशन है। इसका सही विकास ब्रिटिश राज में मुंबई का समर कैपिटल बनने के बाद हुआ। घने वनों से आच्छादित होने के कारण इसे हरियाली का शहर भी कहते हैं । यहाँ कितनी ही जगहें ऐसी हैं, जिन्हें देखने पर्यटक जरूर जाते हैं। लॉडविक प्वाइंट, विल्सन प्वाइंट और आर्थर सीट पर्यटकों की पहली पसंद में शामिल हैं। इसके अलावा चाइनामैन फॉल, वाशरमैन फॉल तथा वेन्ना झील यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं।
यहाँ स्थित महाबलेश्वर मंदिर मराठा साम्राज्य की महिमा और समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर शिव को समर्पित है तथा इसे त्रिदेवों का प्रतीक भी माना जाता है । इसका निर्माण चंदा राव मोरवंश ने करवाया था। गर्भगृह में 6 फीट लंबा शिवलिंग तथा भगवान शिव की मूर्ति है। मंदिर का स्थापत्य दक्षिण की हेमदंत शैली पर आधारित है। मंदिर का निर्माणकाल सोलहवीं शताब्दी का है। शिवलिंग रुद्राक्ष के आकार का है जिसके ऊपर पंचगंगा नदियों की नक्काशी है। यह भी कहा जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है।मंदिर में विशालकाय नंदी की उपस्थिति है तथा एक तरफ कालभैरव विराजमान हैं। इसी मंदिर के समीप ही पंचगंगा मंदिर है जहाँ पाँच नदियाँ -कृष्णा, कोयना वीणा, सावित्री और गायत्री अपना जल मिलाती हैं। इसे देवगिरी के यादवों के राजा राजसिंहदेव ने बनवाया था। पंचगंगा मंदिर महाबलेश्वर के सबसे धार्मिक स्थलों में से एक है। महाबलेश्वर मंदिर और पंचगंगा मंदिर के बीच में स्थित कृष्णाबाई मंदिर अपना अलग ही स्थान रखता है। यह महाबलेश्वर मंदिर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर है.एक पगडंडी इस मंदिर तक जाती है। यह अत्यंत प्राचीन मंदिर हरी काई से ढका है। कुछ सीढ़ियाँ उतरकर मंदिर तक जाना होता है. यहाँ आप पॉजिटिव एनर्जी साफ महसूस कर सकते हैं। मंदिर प्राचीन है, पर खंडहर नहीं है। प्रस्तर स्तंभों की कलात्मकता देखने योग्य है। छतों पर भी सुंदर नक्काशी है। मंदिर परिसर में एक कुंड है, जिसके गोमुख से निकला पानी आगे जाकर कृष्णा नदी में समाहित हो जाता है। हालाँकि कृष्णा बाई मंदिर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है; फिर भी स्थानीय लोगों का कहना है कि इसे 1888 में रत्नागिरी के एक शासक ने बनवाया था। मंदिर का प्रांगण धनुषाकार है।यहाँ के शांत वातावरण के बीच जो कुछ रहस्यमय और आकर्षक है वह है मंदिर के भीतर फैला अंधकार। यहाँ कोई रोशनी नहीं होती। बस विशाल शिवलिंग के आगे रखे दीपक का प्रकाश ही आपको रोशनी प्रदान करता है। कहते हैं कि सूर्य की पहली किरण सीधे शिवलिंग पर गिरती है और पूरे परिसर को ऊर्जा से भर देती है। यह ऊर्जा प्रकाश बल्बों को नष्ट कर देती है। यही वजह है कि मंदिर में बिजली नहीं है।
महाबलेश्वर का दूसरा आकर्षण मेप्रो पार्क है जो पूरी तरह स्ट्रॉबेरी थीम पर आधारित है। यहाँ एक खुला रेस्टोरेंट है.और फूलों की अनगिनत वेराइटीज आपका ध्यान खींच लेती हैं। एक छोटी- सी मार्केट भी है, जहाँ आप सिरप ,सॉस,जैम,स्क्वैश तथा तैयार किए गए अन्य उत्पाद खरीद सकते हैं। मेप्रो गार्डन शानदार ऑर्गेनिक उत्पाद आधारित आपूर्ति करता है। अब तो यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट के रूप में भी प्रसिद्ध हो गया है।महाबलेश्वर जाने के लिए सही मौसम जून से अक्टूबर तक है। महाराष्ट्र के आस-पास के क्षेत्रों तथा भारत के मेट्रो शहरों से यहाँ तक की अच्छी रोड कनेक्टिविटी है। कैब की सुविधा है ,निजी और सरकारी बसें भी चलती हैं।
पुणे एयरपोर्ट से दूरी 128 किलो मीटर
पुणे रेलवे स्टेशन से दूरी 120 किलो मीटर
महाबलेश्वर बस स्टैंड से दूरी 6 किलो मीटर है । ■■
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