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Aug 1, 2022

किताबेंः मैटी बैठ जाओ! बैठ जाओ मैटी!

आजादी अनुशासन और सीखने के इर्द गिर्द एक किताब

 - कुँवर सिंह

किताब : मैटी बैठ जाओ! बैठ जाओ मैटी!, और Mattie Sit down! Sit down Mattie! संस्करण: नवम्बर 2021, कहानी व चित्र: इन्दु एल हरिकुमार, प्रकाशक: एकलव्य जमनालाल बाबाज परिसर जाटखेड़ी, होशंगाबाद रोड, भोपाल- (M.P.) - 462 026, मूल्य : 75/ और 100/.  पृष्ठ संख्या -20

स्कूल खुल रहे हैं। और इसी बीच एक सवाल भी सबके सामने है कि बच्चे और स्कूल के बीच जो दूरी बन गई है। इस दूरी को कैसे कम किया जा सकता है। वहीं इसका एक दूसरा पक्ष भी है कि  इस दूरी में जो आज़ादी में जीना और जिंदगी से सीखना हुआ है,  क्‍या अब स्कूली अनुशासन में वह सीखना आसान होगा। असल में इस लॉकडाउन के दौरान आज़ादी में सीखने को लेकर सीखना कैसे रहा है। और क्या घर के अनुशासन में सीखना हुआ है? इन सवालों के बीच ही एक किताब हाथ में आई। नाम थोड़ा अटपटा- सा लगता है मैटी बैठ जाओ! बैठ जाओ मैटी!

इस छोटी -सी चित्रकथा को को पढ़ने से इन विचारों के द्वंद्व बनने शुरु हुए।  दरअसल इस किताब को थोड़ी गम्‍भारीता के साथ देखें तो यह किताब हमारे स्कूली शिक्षण की ओर भी इशारा करती है। और फिर इतने विविधता वाले समाज के कुछ ही बच्चे अनुशासन में सीख रहे थे। क्या ये अनुशासन बच्चों को अपने बचपन में अपनी रुचि से खेलने-कूदने, नाचने- गाने, पढ़ने-लिखने जैसी प्रतिभा को करने के मौके देती है? आजादी और अनुशासन का हमारे लिए सीखने में क्या महत्व है? हमें आज़ादी और अनुशासन के बारे में कोई साफ़-साफ़ नहीं बताता है क्योंकि हमारे समाज और स्कूली पढाई का ढाँचा हमें दूसरों के आदेशों में रहना व मानना सिखाती है। पर दूसरों की बातों को मानते हुए हम क्या खुद को जिम्मेदारी के लायक बना पाते हैं?

इस किताब के प्रमुख किरदार मैटी को चित्र बनाना अच्छा लगता है;  पर उसको एक जगह बैठकर चित्र नहीं बनाना है। वह चित्र बनाते हुए नाचने लगता है, तो कभी इधर-उधर दौड़ लगाता। और फिर वापस आकर चित्र बनाता। अब मैटी के इस तरह के बर्ताव के लिए उसकी मम्मी ड्राइंग क्लास में भेजती है; क्योंकि वे मानती हैं कि टीचर उसे शान्त बैठना सिखा देंगी। ड्राइंग से उसमें थोड़ा ठहराव आएगा और एक जगह बैठने लगेगा।

बहुत से माता-पिता भी अपने बच्चों के इस तरह के बर्ताव के लिए ऐसा सोचते हैं। कुछ माता-पिता तो अपने बच्चे को सभी तरह के प्रतिभा सिखाने वाली कक्षाओं में भी भेजते हैं। चाहे बच्चे की रुचि हो या नहीं। बच्चे को वह सब करने में मज़ा आता हो या नहीं।

इस लंबे लॉकडाउन के बाद स्कूल खुल रहे हैं। आख़िर इस लंबे अंतराल के बाद बच्चे और हमारे टीचर फिर से मिलने वाले हैं। और लॉकडाउन में हम सब ने आज़ादी और अनुशासन के साथ खुद में बहुत कुछ सीखा और अनुभव किया है। स्कूली पढ़ाई के तरीक़े में क्या नया और अलग होगा?

इस किताब में मैटी चित्रकारी के साथ डांस करता, दौड़ लगता और फिर कागज़ के रॉकेट बनाकर दीवार पर निशाना लगाता। जब दीवार पर निशाना लगता, उन्हें मैटी उठाता और फिर निशाना लगाता। जो दीवार तक नही पहुँचता, उसे कचरे के डिब्बे में डाल देता है। पर सभी बच्चे भी मैटी से कहते हैं- "मैटी बैठ जाओ, बैठ जाओ मैटी।"

टीचर बच्चों से बोलीं- मैटी को नाचने-दौड़ने दो। हम अपनी ड्राइंग करते रहेंगे। वह हमें परेशान नहीं कर रहा है। वैसे तो हमें भी बचपन में रोक-टोक ही सिखाया गया है; लेकिन इस बात को समझने की जरूरत भी है। और बच्चे अपने बचपन में ही तो तय करते हैं, अपनी रुचि के करने की खोज। हम खुद से संवेदनशील, जिम्मेदार और सजग बनने की ओर जा सकें। हम भी थोपी गई चीजों को मन से नहीं करते हैं और सारी दुनिया के सभी बच्चे तो इंजीनियर-डॉक्टर ही तो नहीं बनेंगे ना।

यह किताब हिंदी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं में "मैटी बैठ जाओ! बैठ जाओ मैटी!" और "Matti sit down! sit down Matti!" नाम से प्रकाश‍ित हुई है। इसे एकलव्य ने प्रकाशित किया है। इसकी लेखक व चित्रकार इन्दु एल हरिकुमार हैं। इंदु ने  केवल कहानी को ही खूबसूरती से  नहीं सँजोया है; बल्कि उनके चित्रों में भी उतनी आकर्षकण है। उनकी कुछ और भी किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। इंदु की हर कहानी और चित्रों में जिन्दगी के अनुभवों का  मिश्रण-सा मिलता हैं।  ●

सम्पर्कः जमनालाल बजाज परिसर, जाटखेड़ी, भोपाल 462026

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