उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 11, 2020

प्यार का कोई प्रतिदान नहीं

प्यार का कोई प्रतिदान नहीं 
- विजय जोशी 
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
स्नेह जीवन का सबसे सरल सम्बल या सहारा है। बशर्ते वह निर्मल हो स्वार्थ से परे। पर कई बार यह नसीब होता से भाग्य से। जिसे मिल जाए वह परम सौभाग्यशाली और जिसे न मिल पाए, वह दुर्भाग्यशाली। प्यार अनमोल होता है। पर कई बार प्यार स्वार्थ के धरातल पर उसका मोल लगाते हुए हम असली अर्थ भूल जाते हैं।
एक किसान के पास बहुत सुंदर चार पिल्ले थे; जिन्हें बड़े नाज़ से पाला गया था। उन्हें बेचने की विवशता उसके जीवन में आ गई। उसने एक छोटी सी सूचना एक कागज पर लिखकर खेत की सीमा पर खड़े लकड़ी के खंबे पर कील से टाँगने का जतन किया। जब वह आखरी कील ठोककर हटा, तो देखा छोटे- से बच्चे को समीप ही खड़ा पाया, जिसने किसान से निवेदन किया कि वह उनमें से एक को खरीदना चाहता है।
किसान ने कहा- ठीक। लेकिन क्या तुम्हें मालूम है इनकी नस्ल। ये बड़े मँहगे हैं और इन्हें खरीदने के लिए तुम्हें काफी पैसों की जरूरत पड़ेगी।
बच्चे ने एक पल सोचा और हाथ डालते हुए सारे जमा सिक्के निकालते हुए किसान को सौप दिए- मेरे पास निन्यावे पैसे हैं, क्या ये काफी हैं।
बिल्कुल ठीक -किसान ने ये कहते हुए एक आवाज लगाई। सबसे पहले एक सर्वाधिक सुंदर पिल्ला तेजी से दौड़कर बाहर आया। उसके बाद दूसरा और फिर तीसरा। तीनों सुंदर थे तथा अपने स्वामी के पास आकर उछल -कूद करने लगे। सबसे आखिर में जो पिल्ला निकला, उसकी चाल धीमी थी तथा वह थोड़ा  लँगड़ाकर चल रहा था। बालक ने तुरंत कह दिया- मुझे यही चाहि। बिल्कुल यही।
 किसान ने सहानुभूतिपूर्वक बालक के सिर पर स्नेहपूर्वक हाथ रखते हुए कहा- बेटा मैं जानता हूँ , ये तुम्हें नहीं चाहि । यह न तो दौड़ सकेगा और न ही तुम्हारे साथ खेल पाएगा। बालक थोड़ा पीछे हटा तथा अपने पैर की पतलून ऊपर उठाई। किसान ने देखा कि बालक के पैर कृत्रिम थे तथा शरीर में एक स्टील रिंग की सहायता से जुड़े हुए थे।
 उसने कहा- अंकल मैं स्वयं भी नहीं दौड़ सकता। अतः मुझे ऐसा ही साथी चाहिए, जो मुझे समझ सके। मेरा साथ दे। मुझसे भावनात्मक रूप से जुड़ सके।
किसान की आँखों से अश्रुधारा बह उठी। उसने अपने हाथ से पिल्ले को उठाया तथा पूरी सावधानी के साथ बालक को सौंप दिया और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहि। प्रेम और प्यार अनमोल होता है। उसका मोल तो ईश्वर भी नहीं लगा सकते।
मित्रों यही है वह निर्मल, निश्चल स्नेह जिसका सम्मान हम सबको करना चाहि। भावनाहीन इंसान का जीवन भौतिकता के धरातल पर भले ही संपन्न हो, लेकिन अंतस् के धरातल पर शून्य। संवेदना, सद्भावना, स्नेह को बढ़ाइए, सजाइए, सँवारि
प्रेम प्रार्थना की तरह, इक मंदिर का दीप
जिसको यह मोती मिलेवह बड़ भागी सीप
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

4 comments:

Preeti upadhyay said...

अरे वाह!!💐👌

Hemant Borkar said...

Awesome write up by Vijay Joshi sahab। Regards to him and thanks for sharing.

Unknown said...

अतिसुन्दर व्याख्या।

देवेन्द्र जोशी said...

निर्मल स्नेह समझने के लिए निर्मल ह्रदय जरूरी है।