प्यार का कोई प्रतिदान
नहीं
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विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल,
भोपाल)
स्नेह जीवन का सबसे सरल सम्बल या सहारा है। बशर्ते वह निर्मल हो स्वार्थ से परे। पर कई बार यह नसीब
होता से भाग्य से। जिसे मिल जाए वह परम सौभाग्यशाली और जिसे न मिल पाए, वह दुर्भाग्यशाली। प्यार अनमोल होता है। पर कई बार प्यार स्वार्थ के
धरातल पर उसका मोल लगाते हुए हम असली अर्थ भूल जाते हैं।
एक किसान के पास बहुत सुंदर चार पिल्ले
थे;
जिन्हें बड़े नाज़ से पाला गया था। उन्हें बेचने की विवशता उसके जीवन
में आ गई। उसने एक छोटी सी सूचना एक कागज पर लिखकर खेत की सीमा पर खड़े लकड़ी के
खंबे पर कील से टाँगने का जतन किया। जब वह आखरी कील ठोककर हटा, तो देखा छोटे- से बच्चे को समीप ही खड़ा पाया,
जिसने किसान से निवेदन किया कि वह उनमें से एक को खरीदना चाहता है।
किसान ने कहा- ठीक। लेकिन क्या तुम्हें
मालूम है इनकी नस्ल। ये बड़े मँहगे हैं और इन्हें खरीदने के लिए तुम्हें काफी पैसों
की जरूरत पड़ेगी।
बच्चे ने एक पल सोचा और हाथ डालते हुए
सारे जमा सिक्के निकालते हुए किसान को सौप दिए- मेरे पास निन्यानवे पैसे हैं, क्या ये काफी हैं।
बिल्कुल ठीक -किसान ने ये कहते हुए एक
आवाज लगाई। सबसे पहले एक सर्वाधिक सुंदर पिल्ला तेजी से दौड़कर बाहर आया। उसके बाद
दूसरा और फिर तीसरा। तीनों सुंदर थे तथा अपने स्वामी के पास आकर उछल -कूद करने लगे। सबसे आखिर में जो पिल्ला निकला, उसकी
चाल धीमी थी तथा वह थोड़ा लँगड़ाकर चल रहा था। बालक ने तुरंत कह दिया- मुझे यही चाहिए। बिल्कुल यही।
किसान ने सहानुभूतिपूर्वक बालक के सिर पर
स्नेहपूर्वक हाथ रखते हुए कहा- बेटा मैं जानता हूँ , ये तुम्हें नहीं चाहिए । यह न तो दौड़ सकेगा और न ही
तुम्हारे साथ खेल पाएगा। बालक थोड़ा पीछे हटा तथा अपने पैर की पतलून ऊपर उठाई।
किसान ने देखा कि बालक के पैर कृत्रिम थे तथा शरीर में एक स्टील रिंग की सहायता से
जुड़े हुए थे।
उसने कहा- अंकल मैं स्वयं भी नहीं दौड़ सकता। अतः
मुझे ऐसा ही साथी चाहिए, जो मुझे समझ सके। मेरा साथ दे।
मुझसे भावनात्मक रूप से जुड़ सके।
किसान की आँखों से अश्रुधारा बह उठी। उसने अपने हाथ से पिल्ले को उठाया तथा पूरी सावधानी
के साथ बालक को सौंप दिया और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए।
प्रेम और प्यार अनमोल होता है। उसका मोल तो ईश्वर भी नहीं लगा सकते।
मित्रों यही है वह निर्मल,
निश्चल स्नेह जिसका सम्मान हम सबको करना चाहिए।
भावनाहीन इंसान का जीवन भौतिकता के धरातल पर भले ही संपन्न हो, लेकिन अंतस् के धरातल पर शून्य। संवेदना, सद्भावना, स्नेह को बढ़ाइए, सजाइए,
सँवारिए।
प्रेम प्रार्थना की तरह,
इक मंदिर का दीप
जिसको यह मोती मिले, वह बड़ भागी सीप
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के
पास), भोपाल-462023,मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
4 comments:
अरे वाह!!💐👌
Awesome write up by Vijay Joshi sahab। Regards to him and thanks for sharing.
अतिसुन्दर व्याख्या।
निर्मल स्नेह समझने के लिए निर्मल ह्रदय जरूरी है।
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