- ख़लील जिब्रान , अनुवाद - सुकेश साहनी
ऊँचे पर्वत पर चकवा और गरुड़ की भेंट हुई।
चकवा बोला, ‘‘शुभ प्रभात, श्रीमान्!’’
गरुड़ ने उसकी ओर देखा और रुखाई से कहा,
‘‘ठीक है-ठीक है।’’ चकवे ने फिर बात शुरू की, ‘‘आशा है, आप सानन्द हैं। ’’
गरुड़ ने कहा,
‘‘हाँ, हम मजे में हैं पर तुम्हें मालूम होना
चाहिए कि तुम पक्षियों के राजा से बात कर रहे हो। जब तक हम बात शुरू न करें, तुम्हें हमसे बात शुरू करने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए।’’
चकवे ने कहा,
‘‘मेरे ख्याल से हम दोनों एक ही परिवार से हैं।’’
गरुड़ ने आँखें निकालकर घृणा से उसकी ओर
देखा,
‘‘किस बेवकूफ़ ने कह दिया कि हम एक ही परिवार
से हैं?’’
तब चकवे ने कहा,
‘‘मैं आपको याद दिला दूँ कि मैं आपके समान ऊँचा उड़ सकता हूँ। इसके
अलावा मैं अपने सुमधुर गीतों से दूसरों का मनोरंजन भी कर
सकता हूँ। आप किसी को भी सुख और खुशी नहीं दे सकते।’’
इस पर गरुड़ ने क्रोधित होते हुए कहा,
‘‘सुख और खुशी! अबे ढीठ, मैं अपनी चोंच की एक
चोट से तेरा काम तमाम कर सकता हूँ। तू तो मेरे पैर जितना भी नहीं है।’’
चकवा उड़कर गरुड़ की पीठ पर जा बैठा और
उसके पंख नोचने लगा। गरुड़ भी गुस्से में था, उससे
पिण्ड छुड़ाने के लिए वह तेजी से काफी ऊँचाई तक उड़ता चला गया। लेकिन उसका बस नहीं
चला। हारकर वह फिर उसी चट्टान पर आ गया। चकवा अब भी उसकी पीठ पर सवार था। गरुड़ उस
घड़ी को कोस रहा था, जब वह उस तुच्छ पक्षी से उलझ पड़ा था।
गरुड़ ने कछुए की ओर देखकर कहा,
‘‘पृथ्वी पर रेंगने वाले कीड़े, हँसता क्यों है?’’
कछुए ने कहा,
‘‘क्या यह हँसने की बात नहीं है कि आपको घोड़ा
बनाकर एक छोटा-सा पक्षी आपकी पीठ पर सवारी कर रहा है।’’
गरुड़ ने कहा, ‘‘अबे जा, अपना काम कर। यह तो मेरे भाई
चकवे का और मेरा घरेलू मामला है।’’
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खलील ज़िब्रान की मानवेतर बहुत सशक्त लघुकथा ।
तुच्छ प्राणी भी बुद्धि बल में बड़ा हो सकता है । खलील ज़िब्रान की अन्य कथाओं जैसी भाषा व शिल्प
प्रभावशाली ।
खलील ज़िब्रान की मानवेतर बहुत सशक्त लघुकथा ।
तुच्छ प्राणी भी बुद्धि बल में बड़ा हो सकता है । खलील ज़िब्रान की अन्य कथाओं जैसी भाषा व शिल्प
प्रभावशाली ।
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