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Jan 15, 2020

पुस्तक समीक्षा


सूखे आँसू का सुखांत
-धर्मपाल महेंद्र जैन
सूखे आँसू (आत्मकथा): श्याम त्रिपाठी , प्रकाशक - अयन प्रकाशन, 1/20 , महरौली नई दिल्ली -110020; पृष्ठ संख्या  146 (सजिल्द प्रथम संस्करण, 2019), मूल्य: 300 रुपये, संस्करण: 2019
आत्मकथा लिखना निश्चित ही कठिन है विशेषकर तब जब उससे दो शर्तें जोड़ दी जाएँ। पहली शर्त कि आत्मकथाकार का जीवन एक संदेश हो और दूसरी कि वह स्व का पुनरावलोकन करते हुए ईमानदार रहे। सूखे आँसू कर्मठ संपादक श्री श्याम त्रिपाठी का आत्मकथ्य है। श्याम जी उत्तरी अमेरिका के प्रतिष्ठित हिंदी सेवियों में एक आदरणीय नाम हैं। उनसे मेरी पहली मुलाकात 1999 में हुई और धीरे-धीरे यह संपर्क घनिष्ठ होता गया। मैंने उन्हें उनके अधिकांश परिचितों की तरह एक आस्थावान मनुष्य, कवि, लेखक, कार्यक्रम संचालक, संपादक और हिंदी शिक्षक के रूप में जाना पर मेरे लिए उनकी समग्र पहचान एक निस्वार्थ और दृढ़ संकल्पी हिंदी सेवी की है जो आज भी सप्ताहांत में छोटे-छोटे बच्चों को धार्मिक स्थलों पर जाकर हिंदी सिखाते हैं और अपने महत्तर समुदाय को नई पीढ़ी को हिंदी सिखाने के लिए प्रेरित करते हैं।
कैनेडा जैसे देश से हिंदी साहित्य की स्तरीय एवं गौरवमयी त्रैमासिकी हिंदी चेतना का पिछले बीस वर्षों से निरंतर चुनौतीपूर्ण संपादन और प्रकाशन उनकी विशिष्ट उपलब्धि रहा है। आलोच्य पुस्तक सूखे आँसू में श्याम जी के तीस आलेख हैं। अपने पिता के असामयिक निधन से उपजे संघर्ष और कठिनतम बचपन के दिनों के बहाने वे पाठकों पर छाप छोड़ जाते हैं कि इरादे पक्के हों तो देर-सवेर सफलता मिलती ही है। गाँव जेवाँ (जिला शाहजहांपुरा) और बरेली से निकलकर वे अपने दिल्ली के उल्लासित जीवन के बारे में बात करते हुए गाँव से शहर आए हर युवा की कहानी का बड़ी प्रामाणिकता से वर्णन कर जाते हैं।
दिल्ली स्थित अमेरिकन एम्बेसी में काम करना श्याम जी के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ है। भाग्य उन्हें इंग्लैंड ले आता है जहाँ वे सप्लाई टीचर के रूप में काम करते हुए विदेशी धरती की मुख्यधारा से जुड़ते हैं। इंग्लैंड के दस वर्षों पर उनके दस आलेख इस पुस्तक में हैं, एक से एक रोचक जो पाठक को इंग्लैंड के आम जनजीवन और विशेषकर शैक्षणिक व्यवस्था से अनुभव-समृद्ध करते हैं। एक ओर रंगभेद उन्हें विचलित करता है तो वहीं किस्मत सुरेखाजी के साथ उनकी जोड़ी जमा देती है।
कनाडा के प्रारंभिक दिनों में अर्थाभाव को झेलते हुए भी उन्होंने टीचिंग में डिग्री ली, धीरे-धीरे ही सही पर एक दिन वह कामयाब हो गए। कैनेडाई स्मृतियों पर पाँचों आलेख उनके यहाँ मुकाम बनाने की जद्दोजहद को आरेखित कर जाते हैं। पुस्तक में उनकी कुछ कविताएँ, कैनेडा के शैक्षिक परिदृश्य पर लेख, आत्मनिरीक्षण, मित्रों और पारिवारिक स्मृतियों पर लेख भी इसमें शामिल हैं जो उनके संघर्ष में बहे आँसूओं के विलोपित हो जाने या सूख जाने के साक्षी हैं। कैनेडा में हिंदी के प्रचार-प्रसार को जानने के लिए यह ऐतिहासिक महत्व की किताब है। इस किताब में श्याम जी के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं और मित्रों के जीवंत चित्रों ने किताब के महत्व को और बढ़ा दिया है। सबसे बड़ी बात, इस किताब में ख़ुद को महान साबित करने की कोई किस्सागोई नहीं है, बस ज़मीन से जुड़े एक कार्यकर्ता का अपना विवेकपूर्ण और विनम्र बयान है।
सरल, सहज और प्रवाहमयी यह आत्मकथा अपरिचितों के लिए एक सुखांत उपन्यास की तरह क्रमिक चलती है, जिसमें हर पड़ाव पर जिज्ञासा है और ज्यादा जानने की ललक। जीवेत शरदः शतम् की आकांक्षा के साथ इस योद्धा को नमन।
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