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Nov 12, 2019

सहयोग से सफलता :चींटी

सहयोग से सफलता :चींटी

- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)

सही नेतृत्व के पश्चात किसी भी समूह की सफलता के लिये जो पहला मूल मंत्र काम में आता है वह है आपसी सहयोग, सामंजस्य व समझ। नेतृत्व चाहे कितना भी श्रेष्ठ या आदर्श हो, स्थितियाँ अनुकूल हों, संसाधन भरपूर हों, लक्ष्य भी आसान हो पर जब तक समूह के सदस्यों में आपसी समझ, तालमेल व एक दूसरे के प्रति आदर की भावना न हो सब व्यर्थ तथा सारहीन है। इसको ऐसा भी समझा जा सकता है कि एक रथ में अनेक घोड़े जुते हैं पर यदि वे सब मिल जुलकर एक दिशा में लक्ष्य रूपी रथ को यदि आगे नहीं खींचेंगे , तो रथ आगे नहीं बढ़ेगा। विपरीत दिशाओं में जोर लगाए जाने पर न केवल समूह की उर्जा तथा परिश्रम व्यर्थ जाएगा बल्कि रथ भी वहीं पर खड़ा रहेगा तथा यह नेतृत्व सहित संपूर्ण समूह की पराजय होगी। एक और जहाँ नेतृत्व के अनेक कर्तव्य हैं वहीं समूह के सदस्यों पर भी महती उत्तरदायित्व है कि पूरी समझ के साथ अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को तिलांजलि देते हुए संपूर्ण तथा समग्र हित हेतु कार्य करें। नेतृत्व या लक्ष्य के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हुए तथा अपने अहंकार को वरीयता देने के बाद उनके पास भी अपना कुछ नहीं होगा तथा सबके साथ वे भी डूब जाएँगे। समूह के हर अंग की अपनी प्रतिभा क्षमता व सामथ्र्य होती है तथा सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना के तहत हर सदस्य को अपने नैतिकता कर्तव्य के तकाजे के तहत पूरे मन, कर्म तथा वचन के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ समाज तथा संस्थान को प्रदान करना चाहिए। इसी में हर सदस्य की अपनी व्यक्तिगत भलाई तथा उन्नति भी निहित है।
याद रखिए समूह की शक्ति असीमित है। इसमें 1 और 1 मिलकर 2 नहीं बल्कि 111 होते हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन में यही मर्म समझने की आवश्यकता हम सभी को है।
चींटी की आत्मकथा :
कमजोर से कमजोर व्यक्तिगत इकाई की एकता शक्तिशाली व्यवस्था से भी उपर है तथा उसे पराजित कर सकती है। सामूहिक कार्य प्रणाली का श्रेष्ठ उदाहरण तो प्रकृति के संभवतया सबसे छोटे जीव चींटी की सामूहिक कार्य प्रणाली के माध्यम से दिया जा सकता है।
प्रथम सीख : सतत प्रयत्न
चीटियाँ जब यात्रा का लक्ष्य निधारित कर लेती हैं तो उसे पूरा करके ही दम लेती हैं। यदि उनका मार्ग रोका भी जाए तो वे बगैर विद्वेष या टकराव के वैकल्पिक मार्ग ढूँढ लेती हैं। सारांश यह कि लक्ष्य तक पहुँचने के आप अपने प्रयत्नों से विमुख न हों तथा लगातार प्रयत्न करते रहें।
दूसरी सीख : दूर दृष्टि
मौसम एक सा यानी अनुकूल वातावरण हमेशा नहीं रहता इसलिए चींटियाँ ग्रीष्म ऋतु में ही शीत ऋतु के भोजन की व्यवस्था कर लेती हैं। अर्थात अनुकूल समय में ही समूह सदस्यों को कठिन परिस्थिति का सामना करने का उपाय कर लेना चाहिए। सारांश यह कि हमेशा आगे का, कार्य के बारे में व्यावहारिकतापूर्ण तरीके से सोचेंगे।
तीसरी सीख : कड़ी मेहनत
कड़ी मेहनत यानी चींटियाँ ग्रीष्म के दौरान ही आधिकाधिक परिश्रम कर शीत काल का इतंजाम कर लेती हैं। अर्थात जब आवश्यकता हो अधिक परिश्रम से कोताही कोई सदस्य न करे, ताकि आगे की राह न केवल सुगम हो बल्कि जीवित रहने का समाधान भी हो। सारांश यह कि जितना आप कर सकते हैं उससे अधिक करने का प्रयत्न करें। इससे न केवल आपके सामर्थ्य में अभिवृद्धि होगी, बल्कि आपकी स्वयं की क्षमता प्रति विश्वास भी बढ़ेगा जो भविष्य में आपको और अधिक आत्म विश्वास प्रदान करेगा।
संक्षेप में समूह के हर सदस्य से यही अपेक्षा रहती है कि हर एक व्यक्तिगत रूप से इन सिद्धांतों पर अमल करे :
- दूर दृष्टि रखे यानी आगे की सोचे
- सबके साथ मिल जुलकर कार्य करे
- क्षमता का पूरा दोहन करे
- हौसला न छोड़े़ भले ही स्थिति प्रतिकूल हो
- आपस में एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखे
- लक्ष्य तथा नेतृत्व को खुले मन से स्वीकारे
- सामूहिक हित हेतु स्वयं की इच्छा तथा महात्वाकांक्षाओं को  तिलांजलि दे
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो।09826042641

1 comment:

देवेन्द्र जोशी said...

यह सब नेत्रत्व पर भी निर्भर है। उसका स्वार्थ रहित,समभाव एवं सर्वहितार्थ होना जरूरी है।