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Aug 15, 2019

उदंती.com अगस्त 2019

उदंती.com, अगस्त 2019
दुनिया की सबसे बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान 
होता तो सिर्फ संवाद से ही है
युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। 
- सुषमा स्वराज

Aug 14, 2019

नींद में होंगे तब हम

गाने वाली चिडिय़ा
- जया जादवानी

नींद में होंगे तब हम
धीरे-धीरे जायेंगे
चुपके से सपनों में
जाने बगैर तुम्हारे
सुबह उठ के गाया अगर वही गाना
उड़ जायेंगे किसी और डाल पर
देंगे सूने दरवाजों पर दस्तक
बजायेंगे कुंडी मानो हवा में बजी हो
भेदती तमाम सन्नाटों को
छुयेगी एकदम उसी जगह हमारी आवाज
खिल उठेंगे प्रतीक्षा में मुरझाये चेहरे
चल देंगे किसी और ढौर पर
आयेगें जैसे आती है नदी से गुजरती हवा
सहलायेंगे थके पैरों चमकहीन बालों को
बैठेगें भूख की बगल में उम्मीद की तरह
आंच की तरह ठंड ही बगल में
सदियों रहेंगे बंद तहखानों में
प्रकट होंगे अचानक पुरानी चमक लिये
छोड़कर आयेगें घर तक घर भूले पथिक को
पड़े रहेंगे भीतर बच्चे हैं जब तक
पककर फुटेगें
गदरायेगें तुम्हारे चेहरे पर
नया स्वाद देगें
गिरेगें बीज बनकर तुम्हारे ही भीतर
गायेंगे ऐसे गाने लगोगे खुद को
हम गाने वाली चिडिय़ा हैं।

Aug 10, 2019

धारा 370 की समाप्ति और सुषमा स्वराज का जाना…

धारा 370 की समाप्ति और सुषमा स्वराज का जाना… 
- डॉ. रत्ना वर्मा
जम्मू कश्मीर में धारा 370 के हठते ही मन में जो पहला विचार उठता है, कि कभी धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला यह प्रदेश क्या आतंकवाद से मुक्त होकर फिर पहले जैसा खूबसूरत हो पाएगा? बरसों से बंदूक के साए में जी रहे कश्मीरवासी क्या सुकून की जिंदगी बसर कर पाएँगे? और पर्यटन की इच्छा रखने वाले हम जैसे लोग जो आतंक के डर से वहाँ जाने से डरते हैं क्या बेखौफ होकर उन खूबसूरत वादियों में घूम पाएँगे? डलझील में तैरते वे खूबसूरत शिकारे, बर्फ से ढकीं पहाडिय़ाँ, पहलगाँम, गुलमर्ग, सोनमर्ग और चीनार के पेड़ों के साथ-साथ चलते घोड़ों की सवारी, मुगल गार्डन, शालीमार्ग गार्डन, निशातबाग और बेहद खूबसूरत रंग- बिरंगे फूलों के साथ रसीले फल... क्या अब इन सबका आनंद हम बिना बंदूक के साए में निडर होकर ले पाएँगे।
सवाल ढेर सारे हैं; पर मोदी सरकार के इस साहसिक फैसले से एक उम्मीद तो जगी है कि आतंकवाद का खात्मा होगा और अलगाववाद का जरिया बन चुके इस अनुच्छेद के हटते ही कश्मीर की तस्वीर बदलेगी। कश्मीर के जो हालात पिछले कई दशकों से इतने खराब हो चुके थे, उससे तो ऐसा लगने लगा था कि वहाँ के कट्टरपंथी नेता एक अलग ही दुनिया बसाने का सपना देख रहे हैं, जिसको हवा देने का काम पड़ोसी देश पाकिस्तान बखूबी कर रहा था। ऐसे में कश्मीर पर यह बड़ी पहल अगस्त में आई एक और क्रांति की तरह है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाने के साथ ही 35ए को निष्प्रभावी करके जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र्र की मुख्यधारा में जोडऩे के साथ  राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक बड़ा कदम है। एक निशान-एक विधान की भावना वाले इस फैसले से केवल कश्मीर का समुचित विकास ही सुनिश्चित नहीं होगा, बल्कि कश्मीर के आम लोगों को शेष भारत से जुडऩे का अवसर भी मिलेगा। दूसरी सबसे बड़ी बात लद्दाख, जम्मू-कश्मीर से अलग होकर बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश बनेगा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा युक्त केन्द्र शासित प्रदेश।
इन सब मामलों में सबसे अच्छी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने दुनिया को यह समझाने में बड़ी सफलता हासिल की है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और वे इसे सुलझा लेंगे। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को छोड़कर लगभग सभी स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों ने जम्मू कश्मीर सम्बंधी भारत के फैसले का समर्थन किया है। यद्यपि रास्ता आसान नहीं है; क्योंकि कई पीढिय़ों से कश्मीर और कश्मीरवासियों ने दहशत के साए में जैसी  जि़न्दगी गुज़ारी है उसे सामान्य होने में समय लगेगा। इसके लिए बहुत धैर्य और संयम की जरूरत है। जो इस धारा के हटाए जाने के समर्थक नहीं हैं, उन विरोधियों के लिए भी यह चिंतन का समय है। यह बात किसी पार्टी की नहीं है, बात देश के उस हिस्से की है जो भारत का है; पर भारत का होते हुए भी वह अलग- थलग पड़ा हुआ है।
अब तक जम्मू-कश्मीर के नागरिक दोहरी नागरिकता में जी रहे थे। इस राज्य का अपना अलग झंडा भी था। 370 हटने के साथ ये सब तो समाप्त तो होगा ही और भी कई पाबंदियाँ हैं, जो समाप्त हो जाएँगी- जैसे- सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। रक्षा, विदेश, तथा संचार विभाग को छोड़कर अन्य मामलों में अभी तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति के बिना केन्द्र का कानून लागू नहीं कर सकता था परंतु अब केन्द्र सरकार अपने कानून लागू कर सकेगी। इससे पहले विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था पर अब 5 वर्षों का हो जाएगा। कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था जो अब मिलने लगेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि जम्मू कश्मीर के नागरिकों को भी सामान्य और बेहतर जीवन जीने के लिए वे समस्त सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी जिनपर प्रत्येक भारतीय का हक है। इन सबके साथ- पर्यटन, रोजगार, व्यापार और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारी बदलाव के संकेत सरकार दे रही है। जाहिर है इससे वहाँ की तस्वीर और भी बेहतर होगी।
उम्मीद तो यही है कि पूरा देश यदि एकजुट होकर साथ चलेगा तो निश्चित ही बाहरी विरोधी शक्तियों को हम हरा देंगे तथा राज्य में स्थिरता और शांति को बढ़ावा मिलेगा। बंदूक के साए में पलने वाले कश्मीर में फूलों की खुशबू मँहकेगी और फिज़़ा में प्यार के गीत गुंजेंगे...
अगस्त माह में इस बड़ी क्रांति के तुरंत बाद देश को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है, वह है सुषमा स्वराज का निधन। उनके आखिरी ट्वीट को पढ़ कर ऐसा लगा मानो वे इस पल के इंतजार में साँसें ले रही थीं। धारा 370 के हटते ही उन्होंने मोदी जी को बधाई देते हुए लिखा - 'प्रधानमंत्री जी आपका हार्दिक अभिनन्दन। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं अपने जीवनकाल में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।
सुषमा स्वराज एक प्रखर और प्रभावशाली नेता होने के साथ एक मुखर वक्ता थीं। राजनीतिक जीवन में वे अपनी विशिष्ट भाषण शैली के लिए भी जानी जाती थीं। हिन्दी से उन्हें प्रेम था साथ ही संस्कृत पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। यह बात उनके भाषणों में साफ नजऱ आती थी। हिन्दी में सजे और सधे हुए शब्दों से संसद से लेकर यूनाइटेड नेशन तक में उनके भाषणों ने करोड़ों लोगों के मन को छुआ है। वे जब भी बोलतीं थीं पक्ष में हों या विपक्ष में हर कोई उनकी बातों को ध्यान से सुनता था।
दिल्ली में मुख्यमंत्री के पद से लेकर उन्होंने कई राजनीतिक पदों को बखूबी सम्भाला; परंतु विदेश मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल को स्वर्णिम काल के रूप में जाना जाएगा। प्रधानमंत्री को उनकी योग्यता का भान था, तभी उन्होंने इतनी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी। सहज सरल जीवन जीने वाली और सबकी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहने वाली नेत्री के रूप में उन्होंने सबका दिल जीत लिया था। एक ट्वीट से दूर देश में बैठे लोगों को मदद पहुँचाने वाली वे पहली विदेश मंत्री थीं। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के सबकी सहायता की। उनकी उपलब्धियों, उनकी अच्छाइयों और उनके द्वारा देश के लिए किए गए कामों की सूची बहुत लम्बी हैं।6 अगस्त 2019 को उनके देहांत के साथ ही भारतीय राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। उन्हें सादर नमन...

घाटी में अब शान से फहराएगा तिरंगा

घाटी में अब शान से फहराएगा तिरंगा
-डॉ. महेश परिमल
 घाटी में ही नहीं, आज पूरे देश में खुशी का माहौल है। लोग होली-दीवाली एक साथ मना रहे हैं। पर इस खुशी को पाने के लिए घाटी के लोगों को, वहाँ तैनात सुरक्षा जवानों को कितनी पीड़ाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इसका अंदाजा केवल उन्हें ही हो सकता है, जो इन पीड़ाओं से होकर गुजरे हैं। जरा सोचो, भारत का एक जवान कश्मीर के लाल चौक में तिरंगे को जलता देख रहा है, उसका खून खौल रहा है, पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसके हाथ कानून से बँधे हुए हैं। कितनी पीड़ा होती होगी उसे, जिस तिरंगे के लिए हमारे जवान हँसते-हँसते अपनी दे देते हैं, वही तिरंगा उनके सामने जल रहा है। पर अब ऐसा नहीं होगा, कभी नहीं होगा। अब घाटी में नया सवेरा चुका है। अब लोग नहीं जीयेंगे, जहालत की ज़िन्दगी। लोग अब बेखौफ होकर नई ज़िन्दगी के साथ जिएँगे।

केंद्र सरकार ने कश्मीर में 72 साल से लागे धारा 370 को हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर दिया है। यह शायद पहली आजादी है, जो खून का एक कतरा भी गँवाए प्राप्त की गई है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार चाहे तो वह देश हित में सख्त कदम उठा सकती है। वह नीयत साफ होनी चाहिए। भारत के इस कदम की पूरे विश्व में सराहना की जा रही है।
कश्मीर में कुछ हो रहा है, कुछ होने वाला है, ऐसे संकेत तो मिल ही रहे थे। अमरनाथ के यात्रियों को यात्रा रोककर वापस बुलाया गया। घाटी में गए पर्यटकों को भी वापस बुलाया गया। हजारों की संख्या में सेना के जवानों की तैनाती। 4 अगस्त की आधी रात को तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की नजरबंदी से यह साफ हो गया था कि कश्मीर में कुछ होने वाला है। 5 अगस्त को जब संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर में लागू धारा 370 को हटाने का संकल्प पेश किया। तब सभी लोग सन्नाटे से घिर गए। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। गृहमंत्री ने ऐसा दाँव खेला कि विरोधी भी इसका विरोध नहीं कर पाए। उन्हें चाहते हुए भी इसका समर्थन करना पड़ा। सरकार के एक कदम से घाटी के कथित प्रेमियों की नींद हराम कर दी। अब विपक्ष भले ही कितना भी शोर मचा ले, पर सरकार के इस कदम की उन्हें सराहना करनी ही होगी।

जम्मू-कश्मीर में अब शान से फहराएगा तिरंगा। देश आजाद हुआ, तब से अनुच्छेद 35 और 370 पर विवाद चल रहा था। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे हटाने का वादा किया था। अब उसने यदि अपना वादा निभाया, तो फिर शोर क्यों मचाया जा रहा है? अगर आपत्ति करनी ही थी, तो उस समय करते, जब भाजपा ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया था। घाटी में पिछले कुछ वर्षों में अनेक जवान शहीद हुए। हजारों निर्दोषों ने अपनी जान गवाँई। कश्मीर की प्रादेशिक पार्टियों ने जमकर तबाही मचाई। आतंकवादी संगठनों के प्रति इन पार्टियों का रवैया हमेशा नरम रहा। इससे ही हमें जान लेना चाहिए कि इनकी कथनी और करनी में कितनी खोट है। घाटी में ऐसा पहली बार देखा गया कि अलगाववादी तत्त्वों की पीठ थपथपाने वालों के यहाँ छापे पड़ रहे हैं। इस बारे में कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों को किसी प्रकार की जानकारी नहीं दी जा रही है। अलगाववादियों को गुपचुप समर्थन देने वाले पत्रकारों को भी कुछ नहीं पता चल पा रहा था, इसलिए वे श्रावण महीने में होने वाली पूजा-अर्चना की रिपोर्टिंग में व्यस्त हो गए। अमरनाथ यात्रा अचानक ही बंद कर दी गई। इससे हिंदू संगठन पूरी तरह से खामोश हो गया, उसे यह अहसास हो गया था कि कुछ अनोखा होने वाला है। इधर सरकार पूरी योजना के साथ आगे बढ़ रही थी। उसने 15 हजार जवानों को घाटी में तैनात किया। फिर तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को नजर बंद कर लिया। इससे उसकी चतुराई ही सामने आई।
सरकार ने जिस तरह से टेररफंडिंग के खलनायकों को पहचाना, उसी तरह सेना पर पत्थर फेंकने वालों के नेटवर्क का भी पता लगा लिया। कश्मीर में रहने वाले भारत विरोधी तत्त्वों और उन्हें दी जाने वाली आर्थिक ताकत के सूत्र में एनआईए के अधिकारियों को भी खोज निकाला। जिस तरह से घाटी में स्क्रूटाइट कर रही है, उससे ऐसा लगता है कि बहुत ही जल्द सैकड़ों स्लीपर यूनिट की धरपकड़ हो सकती है। हँसी तो तब आती है, जब पाकिस्तान जैसा कर्ज में गले तक डूबा देश का प्रधानमंत्री यह कहता है कि अब फैसले का वक्त गया है। कश्मीर पर सरकार क्या करने वाली है, यह किसी को पता नहीं था। परन्तु सरकार वंसफॉरऑल की तरह पूरी तरह से सफाई के मूड में थी।
सरकार का ध्यान भटकाने के लिए भी कई कोशिशें हुईं। देश मंदी के दौर से गुजर रहा है, बहुत ही जल्द मंदी लौट आएगी, जैसी खबरें मीडिया में बढ़ने लगी। सरकार कुछ इधर सोचे और कश्मीर की समस्या को पीछे धकेल दे, ऐसे प्रयास भी किए जाने लगे। पर सरकार ने पहले तीन तलाक का एक दाँव खेला, इससे मिली कामयाबी ने उसकी हौसला अफज़ाई हुई। सरकार के पास सख्त कदम उठाने की इच्छा शक्ति है। यह सिद्ध हो गया, जब उसने कश्मीर से धारा 370 को नेस्तनाबूद कर दिया।

यह कैसी विवशता है कि हम अपने ही राज्य में सुधार का कोई कदम उठा पाए? देश के साथ रहने का कांग्रेस के सामने यह सुनहरा अवसर था ,जिसे उसने खो दिया। वह देश के रुख को समझ नहीं पाई। इसलिए वह भाजपा के इस कदम का विरोध करना अपना धर्म समझा। इससे उसकी काफी हुज्जत हुई, इसे वे शायद
अभी नहीं समझ रही है। कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान ने भारत का काफी नुकसान किया। कई बार ऐसा भी लगा कि अब कश्मीर की समस्या का समाधान हो ही जाना चाहिए। सरकार ने चुनाव जीतने के बाद से कश्मीर पर अपनी रूपरेखा बना ली थी। उसने पूरी सोची-समझी योजना के अनुसार वह कर दिखाया। इस मामले में सरकार की सराहना इसलिए की जानी चाहिए कि खून का एक कतरा भी नहीं गिरा और देश की सबसे बड़ी समस्या का समाधान हो गया। अब सरकार पूरी तरह से फाइटिंग के मूड में है। सावन महीने के चौथे सोमवार को मोदी सरकार क्या नया गुल खिलाएगी, इस पर सभी की नजर है। सरकार को बधाई दी जानी चाहिए कि उसने कुछ ऐसा कर दिखाया, जो केवल फिल्मों या सपने में ही हो सकता था, आम जीवन में नहीं।