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Jan 27, 2018

मुकद्दमा

मुकद्दमा
-डॉ. कविता भट्ट
अरे साहेब! एक मुकद्दमा तो
उस शहर पर भी बनता है
जो हत्यारा है- सरसों में
प्रेमी आँख-मिचौलियों का 
और उस उस मोबाइल को भी
घेरना है कटघरे में  
जो लुटेरा हैसरसों सी
लिपटती हंसी-ठिठोलियों का 
हाँ- उस एयर कंडीशन की भी
रिपोर्ट लिखवानी है
जो अपहरणकर्ता है- गीत गाती
पनिहारन सहेलियों का
और उस मोबाइल को भी
सीखचों में धकेलना है
जो डकैत है- फुसफुसाते होंठों-
चुम्बन-अठखेलियों का 
उस विकास को भी थाने में
कुछ घंटे तो बिठाना है
जिसने गला घोंटा; बासंती
गेहूँ-जौ-सरसों की बालियों का
लेकिन इनका वकील खुद ही
रिश्वत ले बैठा है
फीस इनसे लेता है;
और पैरोकार है शहर की गलियों का
ओ साहेब! आपकी अदालत में
पेशी है इन सबकी 
कुछ तो हिसाब दो
उन मारी गयी मीठी मटर की फलियों का 

सम्पर्क: हे.न.ब. गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखण्ड। 
email- mrs.kavitabhatt@gmail.com

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