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Aug 12, 2015

एवरेस्ट फतह

13 साल की मालावाथ पूर्णा
और 17 साल के
आनंद कुमार ने रचा इतिहास

 - आकांक्षा यादव


कहते हैं हौसले बुलंद हों तो फिर आँधी, तूफान और पहाड़ भी रास्ता दे देते हैं। इसे बखूबी सच कर दिखाया है आँध्र प्रदेश में निजामाबाद जिले के एक आदिवासी खेत मजदूर की 13 साल की बेटी मालावाथ पूर्णा और एक साइकिल मैकेनिक के बेटे 17 वर्षीय साधनापल्ली आनन्द कुमार ने। कक्षा 9 में पढऩे वाले इन दोनों बच्चों ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउण्ट एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया हैं। मालावाथ पूर्णा ने माउण्ट एवरेस्ट को फतह करने वाली सबसे कम उम्र की महिला का रिकार्ड बनाया है,  वहीं उसका सहपाठी आनन्द कुमार आन्ध्र प्रदेश के खम्मन जिले का रहने वाला है। कक्षा 9 में पढऩे वाले पूर्णा और आनन्द दोनों ही आन्ध्र प्रदेश सोशल वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी के विद्यार्थी हैं। इन दोनों ने इस चढ़ाई को चीन के सबसे खतरनाक रास्ते से तय किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के जरिये इन्हें बधाई देते हुए कहा, यह जानकर बहुत खुशी हुई। एवरेस्ट पर चढऩे वाली किशोरी पूर्णा को बधाई। उसने हमें गौरवान्वित किया है।
52 दिनों की चढ़ाई के बाद वे 25 मई, 2014 की सुबह छह बजे एवरेस्ट की चोटी पर हुँचे। यह भी एक अजीब संयोग है कि न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और उनके मार्गदर्शक शेरपा तेजिंग नोर्मे ने 29 मई 1953 के दिन माउण्ट एवरेस्ट पहली बार फतह किया था। तब से चार हजार से भी ज्यादा लोग 29 हजार 35 फीट ऊँचे इस पर्वत शिखर पर चढ़ चुके हैं और अभी भी यह सिलसिला बना रहेगा।
मालावाथ पूर्णा और आनन्द कुमार का चयन सोसायटी के 150 बच्चों में से किया गया था, जिन्होंने साहसिक खेलों को चुना था। इनमें से 20 बच्चों को प्रशिक्षण के लिए दार्जिलिंग के एक प्रतिष्ठित पर्वतारोहण संस्थान में भेजा गया था और नौ बच्चों को पहले भारत-चीन सीमा पर भेजा गया।  इसमें से दो विद्यार्थी ताकत और धीरज की बदौलत सबसे उच्च श्रेणी तक पहुँचने में सफल रहे, जिन्हें अप्रैल में एवरेस्ट फतह करने के लिए भेजा गया। आन्ध्र प्रदेश सरकार ने इनके अभियान के लिए 70 लाख रुपये मंजूर किए थे। यह दोनों, और इनके दल का एक अन्य सदस्य शेखर बाबू, पर्वत के उत्तर की तरफ, चीन की तरफ से माऊँट एवरेस्ट चढ़ रहे थे, इसलिए दक्षिण में नेपाल की तरफ के रास्ते में, इस साल अप्रैल में आए बर्फीले तूफान का शिकार होने से बच गए। इस तूफान में 16 लोगों की जानें जाने के बाद इस रास्ते से एवरेस्ट की चढ़ाई बीच में रोक दी गई थी। गौरतलब है कि एवरेस्ट फतह करने का समय 25 मई के बाद पूरा हो जाता है क्योंकि इसके बाद गर्मी बढऩे पर पहाड़ खतरनाक हो सकते हैं। अप्रैल में आए एक भूस्खलन में 16 जानें जाने के बाद इस साल एवरेस्ट चढऩे का मौसम समय से पहले ही खत्म हो गया, ज्यादातर पर्वतारोहियों ने नेपाल की तरफ से माउण्ट एवरेस्ट पर चढऩे की योजना अधबीच में ही छोड़ दी। ऐसे में दो वक्त के गुजारे के लिए संघर्ष करते परिवारों के यह बच्चे अपनी साहसिक उपलब्धि से देश के लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।
गौरतलब है कि नवंबर 2013 में कुछ बच्चों को बहुत छोटा कहकर पर्वतारोहण से मना करने के बाद,  इजाजत मिलने पर माउण्ट एवरेस्ट फतेह करने वाले किशोरों में आर पूर्णा और आनन्द कुमार भी थे। यह सभी बच्चे उनकी ही जैसी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के थे। तभी से वह दल माउण्ट एवरेस्ट पर निगाहें लगाए हुए था। आत्मविश्वास से लबालब पूर्णा ने तब कहा था – मैं माउण्ट एवरेस्ट चढ़ूँगी और लौटने के बाद मैं एक आईपीएस अफसर बनूँगी।’  वह तब की बात थी ठीक जब उसका लक्ष्य उससे कोसों दूर था। पूर्णा की प्रेरणा समाज कल्याण आवासीय शिक्षण संस्थान सोसाइटी के सचिव, आन्ध्र प्रदेश सरकार के आईपीएस अफसर आरएस प्रवीण कुमार हैं, जिन्होंने आन्ध्र प्रदेश के समाज कल्याण छात्रावासों के प्रभारी रहते यह दिखाया है कि मौका मिलने पर किसी भी  वर्ग के लोग दुनिया में सबसे ऊपर पहुँच सकते हैं।
पूर्णा और आनन्द अपने साथ प्रतीक के तौर पर बाबा साहब अम्बेडकर और पूर्व आईएएस अधिकारी एमआर शंकरन की तस्वीरें लेकर एवरेस्ट पर गए थे। आन्ध्र प्रदेश के दिवंगत अफसर शंकरन देश के सबसे काबिल और ईमानदार अफसरों में से थे और आँध्र के आदिवासियों की हालत सुधारने के लिए और बँधुवा मजदूरी खत्म करवाने के लिए उन्होंने बहुत काम किया था। आँध्र के गरीबों और आदिवासियों के बीच उन्हें बेहद सम्मान की निगाह से देखा जाता था। उन्होंने मैला साफ करने का काम करने वाले अछूत समझे जाने वाले दलितों की भलाई के लिए बहुत काम किया था।

सम्पर्क: टाइप 5, निदेशक बंगला, जी.पी.ओ. कैम्पस
सिविल लाइन्स, इलाहाबाद (उ.प्र.)- 211001

Email- kk_akanksha@yahoo.com,  ,http:// shabdshikhar.blogspot.in

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