धर्म की
परिभाषा
- डॉ. बच्चन पाठक 'सलिल’
सन् 1964
ईस्वी में जमशेदपुर में साम्प्रदायिक दंगा
हुआ। लोग हिंसा, आक्रोश, भय और
संदेह के साये में पल रहे थे। सैकड़ों लोगों की जानें गईं । रात में पूरी तरह
कर्फ्यू लागू थे। बिष्टुपुर के एक मंदिर में पंडित रामानंद जी पुजारी थे। वे
सत्यवादी और पक्के सनातनी थे। मंदिर में बीसों कच्चे घर थे जिनमे किरायेदार रहते
थे। मंदिर कमैटी की ओर से पंडित जी ही कमरे आवंटित करते थे और
किराया वसूलते थे।
एक दिन
उनके गाँव का रहमान नाम का एक मुसलमान आया। वह शास्त्रीनगर से भाग कर आया था जहाँ
दर्जनों हत्याएँ हो चुकी थी ।

दो दिनों
के बाद किसी तरह भेद खुल गया कि वह मुसलमान है। रात को करीब एक दस बजे कुछ लोग आए
और बोले कि यहाँ एक मुसलमान छिपा है। हम उसे मैदान में ले जाकर काट डालेंगे।
पंडित जी
घबराए। बोले- यहाँ सभी पुराने लोग हैं। एक रघुवर आया है, वह नया है
, मैं उसे जानता हूँ।
रघुवर
बुलाया गया। वह थर- थर काँप रहा था। पंडित जी ने कहा- यह रघुवर है और यादव है। मैं इसे जानता हूँ ।
एक यादव पहलवान ने कहा- अगर पंडित जी इसका छुआ पानी पी लेंगे तो हम लोग मान
जायेंगे।
पंडित जी
धर्म-संकट में पड़े। उन्हें मानस की याद आई - पर हित सरिस धर्म नहि भाई। उन्होंने
रघुवर के हाथ का पानी पी लिया। लोग चले गए।
दो चार दिनों के बाद दंगा शान्त हुआ। पंडित जी आश्वस्त थे कि मैंने धर्म का सही पालन
किया है। जीव-रक्षा रुढ़ी पालन से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
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