पानी का घर
- सुकेश साहनी
‘विनय गाँव आकर कैसा लग रहा है?’’ प्रसाद जी ने पूछा।
विनय ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह जमीन में गड़े लेाहे के पाइप की ओर एकटक देखे जा रहा था, जिसके मुँह से पानी की मोटी धार निकल रही थी। वह पहली बार गाँव आया था। इससे पहले उसने कभी जमीन से इस तरह पानी निकलते नहीं देखा था।
‘‘विनय!’’ प्रसाद जी ने फिर पुकारा।
‘‘जी?’’ इस बार चौंककर उसने अपने पिता की ओर देखा।
‘‘क्या सोच रहे थे?’’ उन्होंने उससे पूछा।
‘‘पिताजी, मैं सोच रहा था कि अगर हमारे पैरों के नीचे की जमीन एकाएक टूट जाए तो हम सीधे पानी में जा गिरेंगे। क्या ज़मीन के नीचे पानी का तालाब या टैंक होता है?’’
‘‘नहीं विनय, ‘‘प्रसाद जी को हँसी आ गई,’’ धरती के नीचे पानी उस तरह नहीं होता है, जैसे तुम कल्पना कर रहे हो। जमीन के नीचे पानी मिट्टी की विभिन्न परतों में पाया जाता है।’’
‘‘मिट्टी की परते?’’ विनय ने देाहराया।
‘‘हाँ,’’ प्रसाद जी ने समझाया, ‘‘यदि जमीन की खुदाई की जाए तो हम पाएँगे कि मिट्टी हर कहीं अपनी बनावट में एक-सी नहीं होती है। अलग-अलग मोटाई की परतें जैसे-चिकनी मिट्टी, मिट्टी-कंकड़, मिट्टी बालू, बारीक बालू, मोटी बालू आदि जमीन के नीचे मिलती हैं। जमीन के नीचे पानी इन्हीं बालू वाली परतों में पाया जाता है।’’
‘‘पिताजी, जमीन के नीचे ये परतें कैसे बन जाती हैं?’’-विनय ने पूछा।
‘‘वर्षों पहले जब धरती बन रही थी, बड़ी-बड़ी नदियों द्वारा इन परतों का निर्माण हुआ। चट्टानी इलाकों में ये परतें भिन्न प्रकार की होती हैं।’’
‘‘कमाल है।’’ विनय बुदबुदाया।
वे दोनों ट्यूबवैल के नजदीक आ गए थे। डीजल इंजन के चलने से तेज शोर हो रहा था।
‘‘जमीन के नीचे से पानी उठाने या खींचने के लिए पम्प की जरूरत होती है।’’ प्रसाद जी ने विनय को बतलाया, ‘‘यहाँ पम्प को इस डीजल इंजन की सहायता से चलाया जा रहा है। जहाँ बिजली उपलब्ध होती है, वहाँ पम्प सीधे बिजली की सहायता से चलाया जा सकता है।’’

‘‘लोगों को बिना पम्प के जमीन से पानी निकालते हुए तुमने अक्सर देखा होगा। इसके लिए कुओं, रहट हैंडपम्प आदि का प्रयोग किया जाता है।’’
विनय गहरी सोच में डूब गया था।
‘‘पिताजी’’ -एकाएक उसने उत्सुकता से पूछा, ‘‘महाभारत के टी.वी. सीरियल में अर्जुन धरती में तीर मारकर पानी निकाल देते हैं और पानी जमीन से फव्वारे की तरह निकलने लगता है। बिना पम्प के पानी कैसे निकलने लगता है?’’
प्रसाद जी ने प्रशंसा भरी दृष्टि से विनय की ओर देखा।
‘मुझे खुशी है कि तुमने अपना पूरा ध्यान विषय पर केन्द्रित कर रखा है,’’ प्रसाद जी ने खुश होते हुए कहा, ‘‘टी.वी. में दिखाई जाने वाली बहुत-सी बातें ठीक उस रूप में नहीं होती है, जैसे दिखाई देती है। फिर भी अर्जुन के गांडीव धनुष से धरती छेदने वाली घटना से तुमने मेरा ध्यान पाताल तोड़कूप ( उत्स्रुत कूप ) की ओर आकृष्ट कराया है, जिनसे पानी बिना किसी मदद के अपने आप जमीन पर बहता रहता है। इस तरह के कूप हर जगह नहीं बनाए जा सकते है।’’
‘‘इनके निर्माण के लिए जमीन के नीचे मिट्टी की परतों एवं पानी की एक विशेष प्रकार की दशा या स्थिति होना अनिवार्य हैं।’’

‘‘पानी फव्वारे के रूप में जमीन से कैसे निकलने लगता है?’’-विनय ने पूछा।
‘‘मिट्टी की दो सख्त परतों के बीच दबाव के कारण। इसे समझने के लिए तुम एक गुब्बारा लो, उसे बिना फुलाए उसमें सुई से सावधानपूर्वक एक छेद कर दो, फिर उसमें पानी भर दो। क्या होगा?’’ प्रसाद जी ने पूछा।
‘‘पानी इस छेद से फव्वारे के रूप में निकलने लगेगा।’’
‘‘बिल्कुल ठीक!’’-प्रसाद जी ने कहा, ‘‘इस प्रयोग में गुब्बारे की झिल्ली के कारण उसके भीतर का पानी दबाव में रहता है। जमीन में सख्त मोटी मिट्टी की परतों के कारण ऐसा होता है।’’
‘‘समझ गया...बिल्कुल समझ गया!’’ विनय ने कहा।
नई जानकारी के कारण उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं।
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