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Sep 26, 2013

बाबाओं का गोरखधंधा...

बाबाओं का गोरखधंधा...

डॉ.रत्ना वर्मा
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आजादी के पहले गुलाम भारत में जब अंग्रेज आए और उन्होंने भारत के बारे में अपने संस्मरण लिखे तो उनकी लिखी बातों में से एक बात को बहुत अधिक प्रचारित किया गया कि भारत सपेरों, नटों, जादूगरों और चमत्कारों का देश है? आज भी जब- तब इस बात को दोहराया जाता है? बचपन में जब अपने देश के बारे में इस तरह की बातें सुनते- पढ़ते थे तो मन में गुस्सा भर जाता था कि एक तो वे अंग्रेज हमारे देश को दो सौ सालों तक लूटते रहे और इसी सम्पन्न देश को सपेरों का देश कहकर उसकी खिल्ली उड़ाते रहे।
 मैं अपने देश की संस्कृति और सभ्यता पर गर्व करती हूँ और मुझे मान है अपने देश पर कि मैंने यहाँ जन्म लिया ; लेकिन दु:ख तब होता है जब चारो ओर अपनी इस महान संस्कृति और सभ्यता का उपहास होते हुए देखती हूँ। हम भारतीय मानसिक तौर पर भगवान पर आस्था रखने वाले लोग हैं। हम सृष्टि के रचयिता के सामने हमेशा नतमस्तक होते हैं; परंतु हमारी यही आस्था धीरे-धीरे अंधआस्था बनती जा रही है और हम पर ज़रा -सी मुसीबत आई नहीं कि घबरा जाते हैं। अपने सामने वाले इंसान को सुखी देखकर दु:खी होते हैं कि उसे सब कुछ कैसे मिल गया, मुझे भगवान ने क्यों नहीं दिया। बस फिर क्या है निराशा और हताशा हमें घेर लेती है; जिसका फायदा उठाने के लिए इन दिनों हमारे देश में कई प्रकार के बाबा पैदा हो गए हैं। इन्होंने हमारी इस कमज़ोरी का फायदा उठाना शुरू कर दिया है- कोई कहता है काले पर्स में पैसा रखो ,आपका पर्स हमेशा भरा रहेगा, कोई चमत्कार करके प्रसाद और फूल देकर उनकी गोद भर रहा है, तो कोई हाथों से भभूत निकाल करके उनके सब दु:ख हरने का दावा कर रहा है, कोई भविष्य बताकर बरगला रहा है, तो कोई जनता की सेवा के बहाने बड़े- बड़े आश्रम खोलकर दुकानदारी कर रहा है। इन्होंने देश- विदेश में बड़ी तादाद में अपने चेले- चपाटे खड़े कर लिये हैं ,जो अपने- अपने बाबाओं का गुणगान करते हुए, उनकी चमत्कार-कथाओं का प्रचार- प्रसार करते हैं।  मुसीबतों की मारी जनता जो पहले से ही मँहगाई, गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी से ग्रसित है ,भाग्य पर भरोसा कर बाबाओं की शरण में पँहुच जाती है, और पँहुचे भी क्यों न बाबाओं का चमत्कार ही ऐसा होता है कि न वे पैसे को छूते हैं, न किसी से पैसा लेते हैं; लेकिन उनकी सुख- सुविधाएँ देखिए तो पाँच सितारा से कम नहीं होती।  उनके लिए जो मंच बनाए जाते हैं ,वे भी एयरकंडीशंड होते हैं। पर फिर भी वे कहते हैं यह सब भक्तों की कृपा है, हम किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाते। आपको उन पर श्रद्धा है, भरोसा है, आपको ऐसा लगता है कि बाबा आपके कष्ट दूर कर देंगे तो आप उदार मन से दान दीजिए।
 पिछले दो दशकों से हमारे देश में ऐसे बाबाओं की बाढ़- सी आ गई है। इन ढोंगी बाबाओं के चलते अब सच्चे और ज्ञानी संत महापुरुष कहीं पीछे हाशिए पर चले  जा रहे हैं ; क्योंकि एक सच्चा संत वह सब नहीं कर सकता जो ये तथाकथित बाबा किए जा रहे हैं। हम जितने अधिक आधुनिक बन रहे हैं, ये बाबा अपना जाल उतनी ही तेजी से फैला रहे हैं।  बाबाओं के लिए आज मीडिया सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम हो गया है। और अब तो इण्टरनेट में इन बाबाओं की अपनी वेब साइट बनी हुई हैं; जिनमें उनके चमत्कार के ऐसे- ऐसे किस्से बखान किए गए हैं कि दाँतो तले उँगली दबानी पड़ जाती है।
बावज़ूद इसके कि एक के बाद एक ऐसे बाबाओं के  ढोंग, उनके  पाखंड उजागर होते जा रहे हैं ,पर आश्चर्य -हमारी भोली! जनता को अपने अंधविश्वास के चलते यह सब कुछ नजर नहीं आता! ऐसी मन:स्थिति पर मनोविज्ञान कहता है कि जो व्यक्ति कमजोर होता हैं और कर्म के बजाय चमत्कारों पर विश्वास करते हुए अपने को भाग्य के हवाले कर देता है वह ऐसे बाबाओं की शरण में जा कर अपनी हताशा अपनी निराशा दूर करने की कोशिश करता है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ गरीब और मध्यमवर्ग इनके भक्त बने होते हैं, इनके भक्तों की लाइन में कारों की कतारें भी लगी रहती हैं।
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि एक ओर तो हम आधुनिक और शिक्षित होने का दम भरते हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी दैनिक जीवन की समस्या के समाधान के लिए ऐसे तथाकथित ढोंगी बाबाओं की शरण में जाते हैं। इतना ही नहीं किसी बीमारी को भूत-प्रेत की छाया मानकर बैगा और ओझाओं के पास जाते हैं, साँप या कुत्ते के काटने पर बजाय इलाज कराने के झाड़- फूँक का सहारा लेते हैं, अपनी अवांछित मनोकामना की पूर्ति के लिए बलि प्रथा या काले जादू पर विश्वास करते हैं। ये किस तरह की आदिम मानसिकता में हम जी रहे हैं! पिछले माह महाराष्ट्र में ऐसे ही अंधविश्वासों के खिलाफ कानून बनवाने के लिए लड़ते रहने वाले नरेन्द्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनकी पहल पर राज्य में अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए एक विधेयक का प्रस्ताव आया भी था पर राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में वह पास न हो सका। उनकी हत्या के  एक दिन बाद महाराष्ट्र सरकार ने उसी विधेयक को अध्यादेश के तौर पर लागू करने की घोषणा जरूर की है।
अब प्रश्न यह उठता है कि इस तरह के गोरखधंधे कब तक चलते रहेंगे और जनता कब तक ठगी जाती रहेगी? ऐसे बाबाओं को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं? इनसे मुक्ति के लिए सबसे पहले तो स्वयं जनता को इनके मोहजाल से निकलना होगा ।इसके लिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरुरत है ,जो बचपन से ही इन अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाए।  दूसरी जिम्मेदारी शासन- प्रशासन और कानून- व्यवस्था की बनती है कि वे ऐसे बाबाओं के बढ़ते कारोबार पर सख्त नजर रखें, आज बहुत सारे बाबाओं का कारोबार इसलिए भी फल-फूल रहा है; क्योंकि उन्हें शासन-प्रशासन का प्रश्रय मिला होता है। तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी मीडिया की बनती है - थोड़े से फायदे के लिए उन्हें ऐसे ढोंगी बाबाओं का प्रचार- प्रसार करना बंद करना होगा, बल्कि जिस प्रकार आसाराम बापू के मामले में मीडिया ने अपनी भूमिका निभाई है, उसी तरह जनता के हित में सतर्क रहते हुए ऐसे गोरखधंधों को हमेशा ही उजागर करते रहना होगा।
अफसोस तो तब होता है जब इस तरह का कोई भी मामला जैसे ही ठंडा होता है ,सब उसे भूल जाते हैं और फिर चुपके से वही कारोबार और किसी तरीके से फिर-फिर शुरू हो जाता है; जिसकी रोकथाम बहुत जरुरी है । यह काम मीडिया बार-बार और हजार बार बताकर आगाह करके  इसे रोक सकती है। आज इस बात को सबने जान लिया है और मान भी लिया है कि जन-जागरण में मीडिया जैसा प्रभावशाली माध्यम और कोई नहीं है, यह तब भी सबसे प्रभावशाली माध्यम था ,जब हमारे पास उतने साधन और तकनीक नहीं थी और आज भी है जब हमारे पास अत्याधुनिक तकनीक है जो पूरी दुनिया को एक साथ जोडऩे में सक्षम है। उम्मीद तो यही है कि जन- जागरण की यह जिम्मेदारी हम बखूबी उठाएँगे और ऐसे बाबाओं को पनपने नहीं देंगे।

3 comments:

Anonymous said...

समसामयिक विषय पर स्टिक संपादकीय आलेख के लिए बधाई
- पंकज त्रिवेदी

D.P. Mishra said...

bahut sundar samayik aalekh,

RADHIKASCIENTIFICSOLUTION said...

तार्किक विश्लेषण हेतु साधुवाद