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Aug 25, 2012

यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में ...

...लेकिन वह दिन कब आएगा

- साधना वैद 
मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो जो स्कूल कॉलेज वर्तमान में चल रहे हैं मैं ना केवल उन्हीं की दिशा में हर संभव सुधार लाकर उन्हें और बेहतर बनाऊंगी वरन उन्हीं में दो शिफ्ट्स चला कर नये स्कूल कॉलेज खोलने के खर्च के बोझ से भी जनता को बचाऊंगी।
सरकार चलाना एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट को हैंडिल करने जैसा ही है। समस्याएं अनेक हैं, साधन भी कम हैं और समय की भी तो सीमा होती है। ऐसे में आवश्यकता है उन समस्याओं की पहचान करना जिनके निदान से देश में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके, त्वरित राहत मिल सके और उनका निदान हमारे पास उपलब्ध साधनों के द्वारा ही निकाला जा सके। साधनों से मेरा तात्पर्य हमारे पास उपलब्ध धन, तकनीक व जनशक्ति से है। मामला जरा टेढ़ा तो लगता है लेकिन अगर हमारे पास दूरदृष्टि है और साथ ही शासन की बागडोर भी हमारे हाथ में आ जाये तो फिर क्या कहने। हम तो देश में ऐसा जादू कर दें कि लोग देखते ही रह जायें। 
सबसे पहले तो विकास के नाम पर जिस तरह से पब्लिक मनी का दुरुपयोग हो रहा है उस पर मैं तुरंत रोक लगा दूंगी। हमें शहरों के सौन्दर्यीकरण के लिए नये पाक्र्स, मॉल्स या महंगी- महंगी मूर्तियों और मनोरंजन स्थलों के निर्माण की कोई जरूरत नहीं है। शहरों की मौजूदा सड़कों और नालियों की सही तरीके से सफाई और मरम्मत कर दी जाये, सारे शहर में यहां वहां फैले कूड़े कचरे और गन्दगी के निस्तारण की उचित व्यवस्था कर दी जाये और शहरों में उचित स्थानों पर कूड़ा एकत्रित करने के लिए गार्बेज बिन्स को जमीन में ठोक कर मजबूती से लगा दिया जाये तो इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। बाजारों में और सड़कों पर समुचित व्यवस्था ना होने के कारण लोग यहां वहां गन्दगी करने के लिए विवश होते हैं। इसे रोकने के लिए स्थान- स्थान पर शौचालयों और मूत्रालयों की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें साफ रखने के लिए कर्मचारी तैनात किये जाने चाहिए। उनका प्रयोग करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। यदि इन छोटी- छोटी बातों का ध्यान रखा जाये तो शहरों की सूरत ही बदल जाये।
मेरे हाथ में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं सबसे पहले इसी दिशा में काम करना पसंद करूंगी और उन लोगों के साथ सख्ती से पेश आऊंगी जो इसका उल्लघन करेंगे। शहरों की सड़कों की मरम्मत और रख रखाव की तो जरूरत है ही वहां पर रांग पार्किंग और अनाधिकृत निर्माण तथा फेरीवाले और चाट पकौड़ों के ठेले वाले और उनके ग्राहकों की भीड़ उन्हें और सकरा बना देती हैं। जहां थोड़ी सी भी जगह की गुन्जाइश होती है वहां कूड़ों के ढेर लग जाते हैं। यदि सड़कों के आजू- बाजू के मकानों की पेंट पुताई और मरम्मत की ओर ध्यान दिया जाये, बाउण्ड्री वाल्स पर पोस्टर्स ना लगाए जाएं तो यही शहर चमन लगने लगेगा। हमें अपने शहरों को ढेरों धन व्यय करके लन्दन, पेरिस, रोम या न्यूयार्क नहीं बनाना है बस थोड़ा सा ध्यान देकर बिना अतिरिक्त धन खर्च किये उन्हें साफ सुथरा रखें तो ही बहुत फर्क पड़ जायेगा।
मेरे हाथ में शासन की बागडोर हो तो मेरा सारा ध्यान शहरों की साफ सफाई, सड़कों और नालियों की मरम्मत और रख रखाव पर ही होगा जिसके लिये धन खर्च करने से अधिक मुस्तैदी से काम करने की जरूरत अधिक होगी।  
कोई भी प्रोजेक्ट बिना जन समर्थन के कामयाब नहीं होता। इसके लिए नये- नये कानून बनाने से अधिक जनता में जागरूकता फैलाने के लिये प्रचार- प्रसार माध्यमों का सही तरीके से उपयोग करने पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। हम इन्हें मजबूत बना कर लोगों को शिक्षित बना सकते हैं और उनकी संकीर्ण सोच को बदल देश में क्रान्ति ला सकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज, खर्चीली शादियां, मृत्यु भोज, परिवार नियोजन आदि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सिनेमा, नाटक, नुक्कड़ नाटक, टी वी धारावाहिक, सार्थक साहित्य, नृत्य नाटिकायें, पेंटिंग्स इत्यादि को माध्यम बना कर लोगों की सोच में बदलाव लाया जा सकता है। इस कार्य के लिए स्वयंसेवी कलाकारों को साथ ले मुहिम चलाई जा सकती है। दृश्य और प्रिंट मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं इस दिशा में अवश्य सार्थक पहल करूंगी। जब- जब इनके लिये कानून बनाये गये उनका दुरुपयोग किया गया और जनता सरकार के विरुद्ध खड़ी हो गयी। कानूनों को मन मुताबिक तोडऩे मरोडऩे के लिए भ्रष्टाचार बढ़ा। इनसे निबटने के लिए कानून बनाने से अधिक लोगों में सही गलत का निर्णय खुद लेने की क्षमता विकसित करने की अधिक जरूरत है। 
बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते स्थान की कमी हो रही है और जंगल बड़ी मात्रा में काटे जा रहे हैं जिनसे पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो जो स्कूल कॉलेज वर्तमान में चल रहे हैं मैं ना केवल उन्हीं की दिशा में हर संभव सुधार लाकर उन्हें और बेहतर बनाऊंगी वरन उन्हीं में दो शिफ्ट्स चला कर नये स्कूल कॉलेज खोलने के खर्च के बोझ से भी जनता को बचाऊंगी। इस तरह से बिना किसी अतिरिक्त खर्च के शिक्षा के क्षेत्र में जो कमी आ रही है उसका निदान हो सकेगा। इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं को भी सुधारा जा सकता है। नये- नये अस्पताल खोलने की जगह यदि वर्तमान में मौजूद स्वास्थ केन्द्रों, अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की दशाओं को सुधारा जाये तो स्थिति में बहुत सार्थक परिवर्तन लाया जा सकता है।
शासन की बागडोर मेरे हाथ में आ जाये तो मेरा अगला कदम यहां की न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में होगा। न्यायालयों में वर्षों से लंबित विचाराधीन मुकदमों का अविलम्ब निपटारा होना चाहिए। ऐसे कानून जिनका कोई अर्थ नहीं रह गया उन्हें तुरंत निरस्त कर दिया जाना चाहिए। हर केस के लिए समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ताकि लोगों को समय से न्याय मिल सके और शातिर अपराधियों को सबूत मिटाने का या गवाहों को खरीद फरोख्त कर बरगलाने का मौका ना मिल सके। मेरा फोकस इस दिशा में होगा और मैं इसके लिए हर संभव उपाय करूंगी। 
कई उत्पादों जैसे सिगरेट, शराब, पान तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि पर वैधानिक चेतावनी लिखी होती है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि यदि ये वाकई हानिकारक हैं तो ये बनाये ही क्यों जाते हैं और इन्हें बेचने का लाइसेंस सरकार देती ही क्यों है। मेरे हाथों में यदि शासन की बागडोर आ जाये तो सबसे पहले मैं इन उत्पादों की बिक्री पर रोक लगा दूंगी जो मनुष्य को शारीरिक और मानसिक दोनों तौर पर खोखला बना देते हैं और वह अपना विवेक खोकर मनुष्य से जानवर बन जाता है।
भ्रष्टाचार का दानव सबसे अधिक हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में पैर पसार कर जमा हुआ है। इसे वहां से हटाना बहुत मुश्किल हो रहा है। लेकिन ब्यूरोक्रेसी को डाउन साइज करके हम इसके आकार प्रकार को कम जरूर कर सकते हैं। मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जायेगी तो सबसे पहले मैं ऐसे नियम कानूनों को हटाऊंगी जिनका अनुपालन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। जनता को कानूनों के फंदे में लपेटने से अधिक उचित है कि उनमें सही तरीके से सिविक सेन्स डेवलप किया जाये ताकि वे अपने देश के आदर्श नागरिक बन सकें और स्वयं देश के प्रति अपने दायित्वों और प्राथमिकताओं को समझ कर उनका स्वेच्छा से पालन करें। यदि वे कायदे कानूनों की अहमियत को नहीं समझते तो वे उनका पालन भी नहीं करते और जब कभी कानून के लपेटे में आ जाते हैं तो पैसा ले देकर स्वयं को बचाने की कोशिश में जुट जाते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। मेरे हाथों में जिस दिन शासन की बागडोर आ जायेगी इन सभी अनियमितताओं पर मैं जरूर अंकुश लगा दूंगी। लेकिन वह दिन आये तभी ना। ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी।
मेरे बारे में - एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हूँ। अपने स्तर पर अपने आस- पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोडऩे की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है। 
संपर्क- 33/23, आदर्श नगर, रकब गंज, आगरा (उप्र) 282001       
           sadhana.vaid@gmail.com

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