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Jan 31, 2012

हताशा की काली छाया तले

आने वाले कल का स्वागत हम कुछ सपने देखते हुए करते हैं कि वह आज से बेहतर होगा। लेकिन देश समाज और समूचे जगत के हालात को देखते हुए यदि भविष्य की कल्पना करें तो आसार कुछ अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य जब अंधकारमय दिखाई दे तो आगत में भी रोशनी की किरण धुंधली ही नजर आती है। सबसे बड़े लोकतंत्र के इस देश में न शासन से न तंत्र से यह उम्मीद जगती नजर आ रही है कि वह हमारे लिए कुछ बेहतर करेगा या कर सकता है।
पिछले पूरे एक साल पर नजर डालें तो भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा के तले पिसते हमारे देश की झोली में सिर्फ निराशा और हताशा की काली छाया ही नजर आती है। ऐसे में भला किस मुंह से कहें कि आइए नए साल का स्वागत मुस्कुरा कर करें।
इन निरूत्साहित कर देने वाले परिदृश्यों के बावजूद भारत माता के प्रति अटूट श्रद्धा और सम्मान के कारण हमारा मन बार- बार यह कहता है कि 2012 के इस वर्ष में भारतीय मनीषा कुछ ऐसा कर दिखाएगी जिससे आने वाला समय सुखदायी और मंगलमय होगा और यह तभी संभव होगा जब देश का हर एक व्यक्ति अपने मन में दृढ़ निश्चय करके चलेगा कि वह स्वयं के साथ और अपने देश के साथ ईमानदारी के साथ व्यवहार करेगा। ऐसा वही मनुष्य कर सकता है जिन्हें अपनी धरती माता से प्यार है।
अब इस प्यार को व्यक्त करने का समय आ गया है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य बद- से- बदतर होती जा रही है। इससे बुरा और भी कुछ हो सकता है अब यह कल्पना से परे है। तो आइए हम सब मिलकर कुछ ऐसा कर जाएं ताकि आने वाली पीढ़ी हमें गर्व से याद कर सके।
भ्रष्टाचार और घोटालों के प्रदूषण से घिरे इस देश में उम्मीद की किरण तभी नजर आएगी जब प्राथमिकता के आधार पर हम सबके लिए शिक्षा के समुचित साधन उपलब्ध करा पाएंगे। किसी भी देश व समाज की सुख, समृद्धि और सफलता बेहतर शिक्षा से ही लाई जा सकती है। भारत में शिक्षा के गिरते स्तर के गवाह हैं हमारे वे अध्ययन जो समय- समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा किए जाते हैं।
सफलता और विकास के लिए दूसरी जरूरी बात लोगों का बेहतर स्वास्थ्य है और यह बगैर स्वच्छ पर्यावरण के संभव नहीं है। पिछले कुछ दशकों से मानव ने अपनी धरती माता का जिस बेदर्दी से दोहन किया है उसके दुष्परिणाम दुनिया भर में नजर आ रहे हैं। प्रकृति अपने साथ लगातार किए जा रहे बलात्कार का बदला कहीं सूनामी, कहीं भूंकप कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा और अब भारत सहित एशिया में पड़ रही भयानक ठंड के रूप में साल दर साल लेती चली आ रही है। यदि धरती के प्रति अपने मानव जीवन के होने का कर्ज उतारना है तो प्रत्येक मानव को प्रकृति के प्रति वफादारी निभाना होगा इसके लिए क्यों न देश के हर बच्चे के नाम आज से ही एक- एक वृक्ष लगाते चलें जाएं।
कहा जा रहा है कि आने वाली सदी में न तेल न पेट्रोल बल्कि पानी के लिए लड़ाईयां लड़ीं जाएंगी। जब मालूम है तो क्यों न अभी से पानी बचाने की दिशा में वर्षा जल के साथ नदी, तालाब और पोखरों की स्वच्छता का काम शुरू कर दें। जीवनदायी नदी गंगा मैया आखिर कब तक अपने बच्चों की प्यास बुझा पायेगी जबकि हम लगातार उसकी कल- कल बहती जल धारा में रूकावट तो डाल ही रहे हैं साथ ही त्वरित फायदे के लिए प्रदूषण रूपी विष से उसकी पवित्रता को नष्ट करते चले जा रहे हैं।
इन सबके साथ उम्मीद की एक सुनहरी किरण के रूप में हमें अन्ना हजारे जरूर नजर आते हैं। उनके कारण 2011 के साल को जन- अंदोलन वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। अन्ना हजारे ने देश की बदहाली से हताश जनता के दिलों को जयप्रकाश नारायण के बाद आंदोलित और उद्वेलित किया है। उन्होंने जन लोकपाल बिल पास करवाने के लिए पूरे देश को झंझकोर दिया है, लेकिन राजनीतिक उठापटक के चलते जनता की आवाज बने अन्ना की जीत अभी कोसो दूर ही नजर आ रही है। आज देश में जो कुछ हो रहा हैं वहां उनकी यह कोशिश उम्मीद की एक किरण मात्र है, इससे एकदम से जादू की तरह किसी क्रांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। अत: जरूरी है कि सबके दिलों में जलती अन्ना की इस जागरूकता ज्योति को निरंतर जला कर रखा जाए।
सभी सुधी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ।
-डॉ. रत्ना वर्मा

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