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Jan 31, 2012

अपनी शरण दिलाओ, भ्रष्टाचार जी!



- प्रेम जनमेजय
मुझ निष्काम को मेरी पत्नी कामी बनने को प्रेरित कर भ्रष्टाचार की राह पर स्वयं धकेल रह थी। मुझे धिक्कार है कि मैं जीवनभर, चार क्या एक भी फल देने वाला भ्रष्टाचार न कर सका।
पत्नी ने मुझसे कहा- 'सुनो अब और नहीं सहा जाता। या तो आप मुझे तलाक दे दो या फिर अपने को सुधार लो।'
सफेद बाल प्राप्त अवस्था पति से कोई पत्नी ऐसा कहती है तो लगता है कि पति ने चाहे सफेद बालों को काला नहीं किया पर उसके श्याम मुख पर कालिख लगने वाली है। उसकी प्रतिष्ठा का सिंहासन डोलने लगता है। नारी- विमर्श, यौन-उत्पीडऩ आदि के चारो ओर नारे लग रहे हों और कानून आंखों पर पट्टी बांध न्याय कर रहा हो तो पति के सामने स्वयं को सुधारने का ही विकल्प बचता है।
मैंनें भी इसी विकल्प को स्वीकार करते हुए कहा- 'हे देवी मैं स्वयं को ही सुधारूंगा , पर ये तो कहें कि आपने काली का उग्र रूप धारण कर मेरे मुख पर तलाक रूपी कालिमा लगाने का क्यों सोचा है? मैंनें तो कुछ भी ऐसा करना छोड़ दिया है जो आपसे सहा नहीं जाता। मैं तो निरीह, नपुंसक जीव-सा अपना समय काट रहा हूं...'
'यही तो सहा नहीं जाता है। मोहल्ले के अन्य पुरुष जब निरंतर अपने पराक्रम से अपनी पत्नियों को प्रसन्न रख रहे हों, उनपर नित्य प्रति काले धन की वर्षा कर उसका मोहल्ले में सम्मान बढ़ा रहें हों, उसकी क्रय- शक्ति की जी डी पी में वृद्धि कर रहे हों तो आप ही कहें आप जैसे निरीह भ्रष्टाचारविहीन मास्टर के संग रहते -रहते कभी तो विद्रोह का स्वर उभरेगा। यह जीवन तो अकारथ गया, अगला जीवन तो सुधर जाए। इसके लिए मैं किसी सुयोग्य का दामन थाम कुछ भ्रष्टाचार का सुकर्म कर अपने अगले जन्म के लिए कुछ संचित करना चाहती हूं। ऐसे में या तो आप कुछ कर लें पतिदेव अन्यथा... '
'मुझे 3 माह का समय दें देवी, मैं योग्य पति बनकर दिखाता हूं।'
मुझ निष्काम को मेरी पत्नी कामी बनने को प्रेरित कर भ्रष्टाचार की राह पर स्वयं धकेल रह थी। मुझे धिक्कार है कि मैं जीवनभर, चार क्या एक भी फल देने वाला भ्रष्टाचार न कर सका। मैंने कॉलेज में मास्टर की नौकरी करते हुए फ्रेंच लीव मारने जैसा जो तनिक- सा भ्रष्टाचार किया है उसने पत्नी की श्रीवृद्धि में कोई वृद्धि नहीं की है। हिंदी जैसे विषय में कोई ट्यूशन नहीं रखता और न ही कोई कोचिंग सेंटर वाला घास डालता है अत: मैंने अपने काम से ही काम रखा है। मास्टर की नौकरी किसी गरीब के झोपड़े-सा ऐसा स्थल है जहां भ्रष्टाचार का वसंत कभी भी झांकता तक नहीं है।
पर मित्रों चुनौती एक बड़ी चीज होती है और पुरुष के पौरुष को जब चुनौती मिलती है तो पत्थर में कमल खिल जाते हैं । ये दीगर बात है कि कमल दूसरे को मिलते हैं और पत्थर दीवाने के हिस्से में आते हैं। पर यहां तो चुनौती कम धमकी अधिक थी और जस की तस धरी हुई चदरिया में तलाक का दाग लगने का खतरा था।
मैंने भ्रष्टाचार की राह पर चलने की ठान ली। अगले दिन मैंने अपने एक विद्यार्थी को ब्लैकमेल करने के इरादे से कहा- 'देखो तुम्हारी एटेंडेंस कम हैं, इस बार परीक्षा में नहीं बैठ पाओगे, मुझसे अकेले में मिलना।'
'अरे सर जी मैं आपको तकलीफ न दूंगा, यूनियन का प्रेजीडेंट सब करवा देगा उसी से मिल लूंगा।'
मैंने दूसरे को पकड़ा और कुछ बेशर्मी से कहा - 'तुम कुछ पढ़ लिख नहीं रहे हो। इस बार फेल हो जाओगे। पास होना चाहते हो तो मुझसे अकेले में मिल लो।'
स्टुडेंट जी अधिक बेशर्मी से बोले- 'सर जी आप तो केवल हिंदी में पास करवाओगे, इक्जामिनेशन वाले शर्मा जी तो सबमें पास करवा देंगे। मैं उनसे ही मिल लूंगा।'
मित्रों जैसे- जैसे 3 माह की अवधि समाप्त हो रही है देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के संग मेरी आंखों का अंधेरा भी बढ़ रहा है।
अब मेरे सामने एक ही विकल्प बचा है कि भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों के दल में शामिल हो जाऊं नारे लगाऊं और हो सकता है वहां मुझे भ्रष्ट करने वाले कोई संकटमोचक भ्रष्टाचार शिरोमणी मिल जाए जो अपनी शरण में ले ले और बुढ़ापे में मुझे तलाक से बचा ले।
संपर्क: संपादक: 'व्यंग्य यात्रा' , 73- साक्षर अपार्टमेंट, ए-3 पश्चिम विहार, नई दिल्ली-110 063
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