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Jan 31, 2012

सूरज जी ने अपना खजाना ऐसे बांटा...

जाने माने कथाकार सूरज प्रकाश ने पिछले दिनों किताबों के अपने अमूल्य खजाने को बाँट दिया! उन्होंने अपनी इन किताबों को पाठकों तक पहुंचाने के लिए फेसबुक और ब्लाग को माध्यम बनाया था। अफसोस हम नहीं पंहुच पाए लेकिन उदंती के पाठकों के लिए उनका वह पत्र हूबहू प्रकाशित कर रहे हैं ताकि सबको पता चल सके कि उन्होंने बरसों से संजोयी 4 हजार किताबों को अपने घर से कैसे विदा किया। हममें से कई हैं जो यह सोचते ही रह जाते हैं कि अपनी असंख्य किताबों का क्या करें? सूरज जी की यह पहल हमारे लिए नए वर्ष का संकल्प हो सकता है। विश्वास है इस पहल से लोगों को एक राह मिलेगी और पढऩे वालों को किताबों का खजाना। - संपादक
सूरज जी से आप संपर्क कर सकते हैं- mail@surajprakash.com, मो.९९३०९९१४२४, तथा उनके रचना संसार को जानने के लिए देखें- www.surajprakash.com

मित्रो 
मैंने मन बना लिया है कि अपने जीवन की सबसे बड़ी, अमूल्य और प्रिय पूंजी अपनी किताबों को अपने घर से विदा कर दूं। वे जहां भी जायें, नये पाठकों के बीच प्यार, ज्ञान और अनुभव का खजाना उसी तरह से खुले हाथों बांटती चलें जिस तरह से वे मुझे और मेरे बच्चों को बरसों से समृद्ध करती रही हैं। उन किताबों ने मेरे घर पर अपना काम पूरा कर लिया है बेशक ये कचोट रहेगी कि दोबारा मन होने पर उन्हें नहीं पढ़ पाऊंगा लेकिन ये तसल्ली भी है कि उनकी जगह पर नयी किताबों का भी नम्बर आ पायेगा जो पढ़े जाने की कब से राह तक रही हैं।
लाखों रुपये की कीमत दे कर कहां- कहां से जुटायी, लायी, मंगायी और एकाध बार चुरायी गयी मेरी लगभग 4000 किताबों में से हरेक के साथ अलग कहानी जुड़ी हुई है। अब सब मेरी स्मृतियों का हिस्सा बन जायेंगी। कहानी, उपन्यास, जीवनियां, आत्मकथाएं, बच्चों की किताबें, अमूल्य शब्दकोष, एनसाइक्लोपीडिया, भेंट में मिली किताबें, यूं ही आ गयी किताबें, रेफरेंस बुक्स सब कुछ तो है इनमें।
ये किताबें पुस्तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्तक प्रेमियों तक पहुंचें, ऐसी मेरी कामना है।
24 और 25 दिसम्बर 2011 को दिन में मुंबई और आस पास के मित्र मेरे घर एच 1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्म सिटी रोड, मालाड पूर्व आ कर अपनी पसंद की किताबें चुन सकते हैं। बाहर के पुस्तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्तक प्रेमियों को किताबें मंगाने की व्यवस्था खुद करनी होगी या डाक खर्च वहन करना होगा।
मेरे प्रिय कथाकार रवीन्द्र कालिया जी ने एक बार कहा था कि अच्छी किताबें पतुरिया की तरह होती हैं जो अपने घर का रास्ता भूल जाती हैं और एक पाठक से दूसरे पाठक के घर भटकती फिरती हैं और खराब किताबें आपके घर के कोने में सजी संवरी अपने पहले पाठक के इंतजार में ही दम तोड़ देती हैं।
कामना है कि मेरी किताबें पतुरिया की तरह खूब लम्बा जीवन और खूब सारे पाठक पायें।
आमीन
- सूरज
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सोशल नेटवर्किंग का कमाल
मप्र में लंबे समय से पिछड़ेपन का शिकार बने रहे बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर जिले के बक्स्वाहा कस्बे के निवासी संतोष पाठक ने बताया कि फेसबुक पर उनकी मुलाकात सूरज प्रकाश से हुई। जिसमें उन्होंने लिखा था कि वे अपनी किताबों को साहित्य प्रेमियों के बीच मुफ्त बांटना चाहते हैं।
पाठक ने बक्सवाहा कस्बे के पिछड़ेपन का हवाला देते हुए सूरज प्रकाश से निवेदन किया कि कुछ किताबें उन्हें भी भिजवा दें क्योंकि उनके गांव में भी साहित्य में रुचि रखने वालों की कमी नहीं है, लेकिन गांव में न तो अच्छा साहित्य उपलब्ध हो पाता है न ही लोगों में उसे खरीदने की सामथ्र्य होती है। पाठक की बातों से प्रभावित होकर सूरज प्रकाश ने तकरीबन 300 किताबें डाक के जरिए बक्स्वाहा भिजवा दी।
किताबों का पार्सल मिलने से गांव के लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। ग्रामीण राजेश खरे का कहना है कि लोगों कभी सोचा भी नही था कि दुनिया में कोई शख्स मौजूद हो सकता है, जो उनके जैसे गांवों में रहने वाले साहित्य प्रेमी की कद्र करेगा। मगर स्वप्न सी लगने वाली यह सोच फेसबुक की वजह से अब हकीकत बन गई है। बक्स्वाहा में अब वाचनालय खुल गया है।

1 comment:

arbind ankur said...

पुस्‍तकें बांटने का यह प्रयोग साहित्‍य जगत में अभिन प्रयोग माना जायेगा । सही अर्थों में पुस्‍तकों का प्रचार करने वाले साहित्‍य प्रेमियों के लिए अनुकरणीय है यह स्‍तुत्‍य प्रयोग । ऐसे कार्य के लिये सूरज सा दिल भी तो चाहिए ।

अरविन्‍द कुमार ठाकुर,
पटना