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Nov 10, 2011

नमन... जो हमसे बिछड़ गए

लगता है कला और साहित्य की इस दुनिया को किसी की नजर लग गई। पिछले दिनों हमारे देश को अपनी कला और रचनात्मकता से समृद्ध करने वाले तीन महान हस्तियाँ हमसे बिछड़ गईं। साहित्य की दुनिया में अपने शब्दों से समूचे तंत्र पर तीखी वार करने वाले श्रीलाल शुक्ल का लंबी बीमारी के बाद 28 अक्टूबर को निधन हो गया, वे 86 वर्ष के थे।
कुछ दिन पूर्व ही ब्रेन हेमरेज के इलाज के दौरान ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह का निधन भी 10 अक्टूबर को हो गया था, वे 70 वर्ष के थे।
इसके बाद इसी माह 5 नवंबर को असमियालोकसंगीत के माध्यम से संगीत की दुनिया में जादुई असर करने वाले ब्रह्मपुत्र के महान कलाकार भूपेन हजारिका भी चले गए। वे 85 वर्ष के थे। तीनों अपने- अपने क्षेत्र के विलक्षण प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी कलाकार थे। तीनों को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

श्रीलाल शुक्ल
हिंदी साहित्य में 'राग दरबारी' जैसी अनेक कालजयी रचनाएं लिखकर मशहूर होने वाले साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल व्यक्ति, समाज और तंत्र की विकृतियों को व्यंग्य के मुहावरे के माध्यम से उद्घाटित करने में माहिर थे। राजनीतिक तंत्र की विकृति और भ्रष्टाचार के साथ आजाद भारत का निम्न मध्य वर्ग उनके लेखन का प्रमुख विषय रहा है, जिनकी जड़ें होती तो गांवों में हैं लेकिन जो परिस्थितियों की मार से पीडि़त हो खाने- कमाने के लिए छोटे- बड़े कस्बों अथवा शहरों में चला आता है। श्रीलाल जी ने अपनी रचनाओं में गाँवों की स्थिति का इतना यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है कि पाठक पढ़ते हुए स्वयं को उस कथा का एक पात्र मानने लगता है।
आज जबकि भ्रष्टाचार को लेकर समूचे देश में आंदोलन और बहस का दौर जारी है, तो ऐसे में उनके उपन्यास 'राग दरबारीÓ का याद आना स्वाभाविक ही है। अन्ना हजारे जैसे समाज सेवी अपने भ्रष्टाचार विरोधी अंदोलन के जरिए जनजागरण का जैसा काम वर्तमान में कर रहे हैं, वैसा ही कुछ श्रीलाल शुक्ल ने 30- 40 साल पहले 'राग दरबारी' जैसी रचना के माध्यम से कर दिया था। श्रीलाल शुक्ल अपनी बात बिना लाग- लपेट के सीधी सच्ची भाषा में कहते थे। इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली 'राग दरबारी' जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी। यही कारण है कि गंभीर साहित्यिक कृतियों में श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' को साठ के दशक से लेकर अब तक का एक रचनात्मक विस्फोट माना जाता है। इस उपन्यास ने पठनीयता के सभी कीर्तिमान तोड़ दिए हैं। तभी तो विलंब से ज्ञानपीठ का पुरस्कार दिए जाने पर साहित्य जगत में नाराजगी भी व्यक्त की गई, लेकिन यह भी सत्य है कि राग दरबारी भले ही कालजयी बन गया हो पर श्रीलाल जी ने विश्रामपुर का संत से लेकर मकान और राग विराग तक ऐसी अनेक रचनाएं समाज को दी हैं जो हिन्दी साहित्य की बहुमूल्य निधि हैं जिन्हें किसी भी तरह कमतर करके नहीं आंका जा सकता।
समाज के तिकड़म, संघर्ष और द्वंद्व का जीवंत चित्रण करने वाले श्रीलाल शुक्ल यदि बीमार न होते तो और भी बहुत कुछ लिखते ऐसे में उनका चले जाना साहित्य जगत में एक ऐसी क्षति है जिसे कभी नहीं भरा जा सकता।
जगजीत सिंह
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे आप ता जिंदगी नहीं मिलते हैं लेकिन तब भी वे लोग आपकी रोजाना की जिंदगी का हिस्सा होते हैं। जगजीत सिंह भी ऐसे ही शख्सियत थे जिन्होंने ग़ज़ल को खास लोगों से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया। किसी नाजुक सी शायरी को जब वे अपने सुरीले गले से गाते थे तो लफ्क़ा मानों जिंदा हो उठते थे। उन्होंने गाया था- इश्क कीजिए फिर समझिये...। इन लाइनों को समझने के लिए आपके दिल में इश्क होना चाहिए। जगजीत सिंह को इश्क था ग़ज़लों से। उनकी ग़ज़लों में सुकून भरी रवानगी थी। जगजीत सिंह ने जिंदगी के गमों को झेला था। उन्होंने अपने इकलौते बेटे की मौत अपनी आंखों से देखा था, वह दर्द उनकी ग़ज़लों में झलकता था। भारत में ग़ज़ल की दुनिया में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनका निधन गीत- संगीत की दुनिया के लिए बड़ी क्षति है।

भूपेन हजारिका
एक कवि, संगीतकार, गायक, अभिनेता, पत्रकार, लेखक, निर्माता और यायावर भूपेन हजारिका ने असम की समृद्ध लोक संस्कृति को गीतों के माध्यम से पूरी दुनिया में पहुंचाया। उनके निधन के साथ ही देश ने कला और संस्कृति के क्षेत्र की एक ऐसी शख्सियत खो दी है, जो ढाका से लेकर गुवाहाटी तक में एक समान लोकप्रिय थी।
भूपेन हजारिका ऐसी विलक्षण बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्हें पुनर्जागरण का दूत कहा जा सकता है। ऐसे लोगों ने भारत में खासकर 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत की राजनीति, दर्शन और संस्कृति को पुनर्परिभाषित करने और समृद्ध करने में बड़ा योगदान दिया। भारत में उत्तर- पूर्व के प्रति गहरी उपेक्षा और अज्ञान ने अलगाव को जन्म दिया है और इसकी वजह से भारत के लोग वहां की सांस्कृतिक समृद्धि के ज्ञान से वंचित रह गए हैं, ऐसे में भूपेन हजारिका ने जहां असमिया संस्कृति के संवर्धन में अमूल्य योगदान दिया, वहीं असमिया फिल्म उद्योग के आधारस्तंभ भी बनें। यह भी उल्लेखनीय है कि इतने गहरे रूप से असम से जुड़े होने के बावजूद हजारिका की अपनी पहचान एक महत्वपूर्ण अखिल भारतीय प्रतिभा की तरह थी, उन्हें सारे भारतवासी अपना मानते थे। इस मायने में उन्होंने उत्तर- पूर्व और शेष भारत के बीच अपरिचय की खाई को पाटने के काम में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उनके निधन से हमने एक विचारवान और जनता से जुड़े कलाकार को खो दिया है।

उदंती का यह अंक देश के इन तीन महान रचनाकारों श्रीलाल शुक्ल, जगजीत सिंह तथा भूपेन हजारिका को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है। इन कालजयी रचनाकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रबुद्ध लेखकों के सहयोग से कुछ विशेष सामग्री एकत्रित करने का प्रयास उदंती के सुधी पाठकों के लिए किया गया है।


-डॉ. रत्ना वर्मा

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