- स्वराज्य कुमार
प्रदेश में लगभग 32 लाख कार्ड धारक गरीबी रेखा श्रेणी के हैं, जिन्हें केवल 1 और 2 रूपए किलो में हर महीने 35 किलो चावल और नि:शुल्क 2 किलो नमक नियमित रूप से मिल रहा है। स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल छत्तीसगढ़ निर्माण के चौतरफा प्रयासों की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में राज्य के गांवों में भारत माता वाहिनियों का गठन भी किया जा रहा है।
भारत के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ इस वर्ष एक नवम्बर को अपनी स्थापना के ग्यारह साल पूर्ण कर बारहवें साल में प्रवेश कर रहा है। नदियों, पहाड़ों, हरे- भरे जंगलों से परिपूर्ण अपने नैसर्गिक सौन्दर्य और अन्य अनेक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह इलाका भारत की आजादी के पहले और आजादी के बाद भी कई दशकों तक अपनी मेहनतकश जनता के साथ विकास के नये युग में प्रवेश करने का सपना देख रहा था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने यहां की जनभावनाओं के अनुरूप इसे अलग राज्य का दर्जा देने का वायदा निभाकर छत्तीसगढ़ के करोड़ों लोगों के पूर्वजों के सपनों को साकार कर दिया। शांति और सौहार्द्र के वातावरण में आम सहमति से छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण भारत के महान लोकतंत्र की एक महान उपलब्धि है। विकास की राह पर अपने सफर की शुरूआत करते हुए ग्यारहवां पड़ाव पार करने की इस अल्प अवधि में छत्तीसगढ़ की जनता ने प्रदेश की तरक्की के हर मोर्चे पर कामयाबी के कई परचम लहराए हैं। इनमें सबसे बड़ा परचम देश के नये राज्य के निवासी के रूप में आत्मविश्वास की भावना का है। यही कारण है कि विरासत में मिली नक्सल हिंसा और आतंक की गंभीर चुनौती के बावजूद इक्कीसवीं सदी का यह नया राज्य कदम- दर- कदम कामयाबी की नयी मंजिलों की ओर बढ़ता जा रहा है।
भरपूर पैदावार की वजह से धान के कटोरे के रूप में देश और दुनिया में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ अब स्कूल शिक्षा, कॉलेज शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के विस्तृत होते महासागर के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है। गांवों से लेकर शहरों तक नये युग के इन ज्ञान केन्द्रों में प्रतिदिन हजारों की संख्या में बालक- बालिकाओं और युवाओं का स्कूली बस्तों और किताबों के साथ आना- जाना सचमुच काफी लुभावना लगता है। नई पीढ़ी की आंखों में तैरते सपनों के साथ एक उज्जवल भविष्य की चहल- पहल शिक्षा के इन नये मंदिरों में देखी जा रही है। राज्य में सरकारी क्षेत्र में विश्वविद्यालयों की संख्या सिर्फ एक दशक में चार से बढ़कर ग्यारह तक पहुंच गयी है। इनमें से छह विश्वविद्यालय तो अकेले डॉ. रमन सिंह की सरकार की देन हैं। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और सुन्दर लाल शर्मा (ओपन) विश्वविद्यालय सहित आयुष एवं स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय तथा बस्तर और सरगुजा विश्वविद्यालयों की स्थापना के जरिए राज्य में उच्च शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा के लिए एक नया वातावरण बनाया है। गो- वंश और पशुधन के समग्र विकास और इसके लिए अध्ययन- अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राज्य में बहुत जल्द कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना भी होने जा रही र्है। इसके लिए राज्य शासन की ओर से विधानसभा में प्रस्तुत विधेयक विचार- विमर्श के बाद पारित हो चुका है। राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या 12 से बढ़कर 50, आई.टी.आई की संख्या 61 से बढ़कर 101, शासकीय कॉलेजों की संख्या 116 से बढ़कर 172, प्राथमिक शालाओं की संख्या 32 हजार से बढ़कर 37 हजार, मिडिल स्कूलों की संख्या सात हजार से बढ़कर 16 हजार, हाईस्कूलों की संख्या एक हजार 176 से बढ़कर दो हजार 208 और हायरसेकेण्ड्री स्कूलों की संख्या एक हजार 386 से बढ़कर दो हजार 635 हो गयी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वर्ष 2007 में दो नये जिलों- बीजापुर और नारायणपुर का गठन किया था, जबकि इस वर्ष 2011 में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नौ नये जिलों के निर्माण की घोषणा की है जिनमें बेमेतरा, बलौदाबाजार, बालोद, बलरामपुर, गरियाबंद, मुंगेली, सूरजपुर, कोण्डागांव और सुकमा शामिल हैं, जो उनकी घोषणा के अनुरूप जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ जाएंगे और प्रदेश में जिलों की संख्या 18 से बढ़कर 27 हो जाएगी। आम जनता को विभिन्न प्रकार की सरकारी सेवाएं समय- सीमा में मिल सके, इसके लिए विधानसभा के मानसून सत्र 2011 में राज्य सरकार ने लोक सेवा गारंटी विधेयक प्रस्तुत किया, जो सर्वानुमति से पारित होने के बाद अब कानून बन चुका है। इन ग्यारह वर्षों में व्यापारिक और औद्योगिक विकास की गति भी छत्तीसगढ़ में लगातार तेज होती गयी है। इसके फलस्वरूप यह नया राज्य देश के प्रमुख व्यावसायिक और औद्योगिक केन्द्र के रूप में भी चिन्हांकित होने लगा है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना सहित विभिन्न योजनाओं में सड़कों, पुल- पुलियों के निर्माण में तेजी आई है। इसके फलस्वरूप राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में से अधिकांश में बारहमासी सड़क नेटवर्क विकसित हो चुका है। इससे यातायात और परिवहन सेवाओं में भी इजाफा हुआ है।
संचार क्रांति के इस नये दौर में छत्तीसगढ़ ने एक ऐसी छलांग लगाई है कि राजधानी रायपुर से प्रदेश के सभी 18 जिला मुख्यालयों और 146 विकासखण्ड मुख्यालयों के बीच शासन- प्रशासन के लिए अब वीडियो कॉन्फें्रसिंग के जरिए अधिकारियों से आमने- सामने बातचीत करना आसान हो गया है। सार्वजनिक कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड सहित निजी क्षेत्र की अनेक नई कम्पनियों द्वारा राज्य की जनता को मोबाईल फोन की सुविधा दी जा रही है। इसके फलस्वरूप सरगुजा और बस्तर जैसे अनेक सुदूर इलाकों के अनेक गांवों तक, जहां पहले टेलीफोन एक सपना हुआ करता था, अब मोबाईल फोन के जरिए संचार सम्पर्क आसान हो गया है। राज्य सरकार के कुशल प्रबंधन के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ बिजली कटौती की समस्या से मुक्त होकर जनवरी 2008 से लगातार देश का पहला विद्युत कटौती मुक्त राज्य बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि अभी अक्टूबर 2011 में देश में कोयला उत्पादन वाले कुछ इलाकों में भारी बरसात और सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी कोल इंडिया के कर्मचारियों की दो दिवसीय हड़ताल तथा आंध्रप्रदेश में तेलांगना राज्य आन्दोलन के चलते कोयला खनन और आपूर्ति में रूकावट आई जिसके फलस्वरूप देश भर में एक ऐसा भी समय आया, जब बिजली संकट एकदम से गहरा गया था, लेकिन ऐसे नाजुक दौर में भी छत्तीसगढ़ ने अपनी घरेलू विद्युत आपूर्ति की स्थिति को संभाल लिया। हालांकि प्रदेश में इस दौरान राज्य सरकार के बिजली संयंत्रों में कुछ उपकरणों में तकनीकी खराबी के कारण थोड़े समय के लिए बिजली संकट उत्पन्न हो गया था, लेकिन विद्युत कम्पनी के कुशल इंजीनियरों और कामगारों की मेहनत के फलस्वरूप 13 अक्टूबर को यह संकट टल गया और 13-14 अक्टूबर की स्थिति में राज्य में मांग के अनुरूप 2400 से 2700 मेगावाट तक उत्पादन हो रहा था। आधुनिक युग में बिजली की खपत का बढऩा किसी भी देश या राज्य की प्रगति का सूचक होता है। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में बिजली की खपत में पांच सौ गुना वृद्धि वर्ष 2009-10 में दर्ज की गई। इसके मुताबिक यहां बिजली की औसत वार्षिक खपत प्रति व्यक्ति 1547 यूनिट तक पहुंच गयी है। राज्य में 97 प्रतिशत गांवों का विद्युतीकरण हो चुका है। किसानों के पांच हार्स पावर तक सिंचाई पंपों को सालाना छह हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क दी जा रही है। विद्युत कनेक्शन वाले सिंचाई पंपों की संख्या राज्य में अब 72 हजार से बढ़कर दो लाख 90 हजार तक पहुंच गयी है। अनेक लघु और मध्यम सिंचाई योजनाओं के तेजी से पूर्ण करने पर अब राज्य की सिंचाई क्षमता 23 प्रतिशत से बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है। किसानों को खेती के लिए मात्र तीन प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर सहकारी समितियों से गण सुविधा मिल रही है। बिजली, सिंचाई और किफायती गण सुविधा के फलस्वरूप किसानों में खेती के लिए नये उत्साह का संचार हुआ हैं। पिछले खरीफ विपणन वर्ष 2010-11 में सहकारी समितियों में 51 लाख मीटरिक टन धान की खरीदी हुई और किसानों को पांच हजार करोड़ रूपए से अधिक राशि का भुगतान किया गया। वर्तमान खरीफ विपणन वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार ने किसानों से 55 लाख मीटरिक टन धान खरीदने का अनुमानित लक्ष्य निर्धारित किया है। किसी भी देश या राज्य के निर्माण और विकास में श्रमिकों की मेहनत का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वतंत्र भारत के अब तक के इतिहास में भवन निर्माण गतिविधियों से जुड़े असंगठित श्रमिकों के कल्याण के लिए पहली ऐतिहासिक और संगठित पहल वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ में की गयी है, जहां मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ऐसे लाखों श्रमिकों के लिए अनेक नवीन योजनाओं की शुरूआत की है, जिनमें नि:शुल्क औजार और महिला श्रमिकों के लिए नि:शुल्क सिलाई मशीन और नि:शुल्क सायकल वितरण की योजना के साथ-साथ ऐसे श्रमिकों के लिए दुर्घटना बीमा योजना और उनके बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना भी शामिल हैं। इन योजनाओं के संचालन के लिए छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सनिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल का गठन किया गया है। श्रमिकों को इन योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सभी जिलों में श्रम विभाग द्वारा उनके पंजीयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज छत्तीसगढ़ के गरीबों और सामान्य उपभोक्ताओं के लिए रमन सरकार की मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण सामाजिक प्रतिबद्धता का पर्याय बन गयी है। राज्य में इस प्रणाली पर दो सबसे बड़ी जिम्मेदारियां हैं। एक तरफ तो उस पर दस हजार से अधिक राशन दुकानों के जरिए सस्ता अनाज, शक्कर और मिट्टी तेल जैसी आवश्यक वस्तुएं हर महीने उचित मूल्य पर 52 लाख से अधिक राशन कार्ड धारक परिवारों तक नियमित रूप से पहुंचाने का दायित्व है, तो दूसरी तरफ एक हजार 333 प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से लाखों किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए समर्थन मूल्य नीति के तहत धान और मक्का खरीदी की जिम्मेदारी। इन दोनों जिम्मेदारियों को निभाना इतना सरल नहीं है। देखा जाए तो किसी भी सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी है, लेकिन रमन सरकार के कुशल प्रबंधन से ये दोनों ही कार्य बड़ी कुशलता से संचालित हो रहे हैं। राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरे देश में एक आदर्श प्रणाली के रूप में मान्यता मिलने लगी है। प्रदेश के 52 लाख से अधिक राशन कार्ड धारकों में लगभग 32 लाख कार्ड धारक गरीबी रेखा श्रेणी के हैं, जिन्हें केवल एक रूपए और दो रूपए किलो में हर महीने 35 किलो चावल और नि:शुल्क दो किलो नमक नियमित रूप से मिल रहा है। स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल छत्तीसगढ़ निर्माण के चौतरफा प्रयासों की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में राज्य के गांवों में भारत माता वाहिनियों का गठन भी किया जा रहा है। इनमें शामिल महिलाएं गांवों में अवैध शराब के कारोबार को रोकने के लिए संगठित पहल कर रही हैं। प्रदेश सरकार ने सामाजिक स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर इस वित्तीय वर्ष के प्रारंभ होते ही विगत 01 अप्रैल 2011 से 2000 तक आबादी वाले गांवों में देशी- विदेशी शराब की लगभग ढाई सौ लाईसेंसी दुकानों को हमेशा के लिए बंद करवा दिया है। यह रमन सरकार की आंशिक शराबबंदी के जरिए धीरे- धीरे पूर्ण शराबबंदी की दिशा में आगे बढऩे का एक महत्वपूर्ण कदम है।
छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर चमकते विकास के मुकुट का आभामण्डल हर साल नये- नये पुरस्कारों के मोर पंख से सजता जा रहा है। विभिन्न योजनाओं में उल्लेेखनीय सफलताओं के लिए हाल के वर्षो में राज्य को समय- समय पर अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। देश में सर्वाधिक चावल उत्पादन के लिए विगत 16 जुलाई 2011 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ को केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के प्रतिष्ठित 'कृषि कर्मण' पुरस्कार से सम्मानित किया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस समारोह में प्रधानमंत्री के हाथों इस पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रूपए की धनराशि के साथ प्रशस्ति पत्र भी ग्रहण किया। उन्होंने बड़ी विनम्रता से यह पुरस्कार छत्तीसगढ़ के मेहनतकश किसानों को समर्पित कर दिया। गरीबों के लिए संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ को देश में प्रथम आने का गौरव मिला है। विगत दो जुलाई 2010 को चंडीगढ़ में केन्द्रीय श्रम तथा रोजगार मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यशाला में छत्तीसगढ़ सरकार को इस योजना में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल के लिए ई-इंडिया एवार्ड तथा धान खरीदी व्यवस्था के तहत सहकारी समितियों के कम्प्यूटरीकरण पर भी राज्य को केन्द्र सरकार से ई-गवर्नेन्स का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। प्रदेश सरकार के उपक्रम छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी के कोरबा स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह को केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा वर्ष 2010 के राष्ट्रीय ऊर्जा सरंक्षण पुरस्कार से नवाजा गया है।
इसी तरह वर्ष 2009 में प्रदेश सरकार के ही उपक्रम छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (क्रेडा) को भी राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। प्रदेश सरकार के कुशल प्रबंधन का एक और उत्साहजनक नतीजा अक्टूबर 2011 में उस वक्त सामने आया, जब राष्ट्रीय स्तर पर संकलित वर्ष 2010-11 के आंकड़ों के आधार पर छत्तीसगढ़ देश के प्रथम तीन ऐसे राज्यों में शामिल हो गया, जहाँ सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। ये आंकड़े केन्द्र सरकार के अखिल भारतीय सांख्यिकी कार्यालय और राज्यों के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालयों के आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर जारी हुए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद के मामले में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्रप्रदेश जैसे पुराने और तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित राज्यों को पीछे छोड़ते हुए जी.एस.डी.पी. में 11.57 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है। नये राज्य की ये उपलब्धियां वाकई इसलिए भी चौकाती हैं, क्योंकि विकास की दिशा में आगे बढ़ते छत्तीसगढ़ को नक्सल हिंसा की गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है, लेकिन वह इस समस्या से बड़ी सूझबूझ के साथ जूझते हुए प्रदेशवासियों की तरक्की और खुशहाली के लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर है।
(डीपीआर से)
प्रदेश में लगभग 32 लाख कार्ड धारक गरीबी रेखा श्रेणी के हैं, जिन्हें केवल 1 और 2 रूपए किलो में हर महीने 35 किलो चावल और नि:शुल्क 2 किलो नमक नियमित रूप से मिल रहा है। स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल छत्तीसगढ़ निर्माण के चौतरफा प्रयासों की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में राज्य के गांवों में भारत माता वाहिनियों का गठन भी किया जा रहा है।
भारत के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ इस वर्ष एक नवम्बर को अपनी स्थापना के ग्यारह साल पूर्ण कर बारहवें साल में प्रवेश कर रहा है। नदियों, पहाड़ों, हरे- भरे जंगलों से परिपूर्ण अपने नैसर्गिक सौन्दर्य और अन्य अनेक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह इलाका भारत की आजादी के पहले और आजादी के बाद भी कई दशकों तक अपनी मेहनतकश जनता के साथ विकास के नये युग में प्रवेश करने का सपना देख रहा था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने यहां की जनभावनाओं के अनुरूप इसे अलग राज्य का दर्जा देने का वायदा निभाकर छत्तीसगढ़ के करोड़ों लोगों के पूर्वजों के सपनों को साकार कर दिया। शांति और सौहार्द्र के वातावरण में आम सहमति से छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण भारत के महान लोकतंत्र की एक महान उपलब्धि है। विकास की राह पर अपने सफर की शुरूआत करते हुए ग्यारहवां पड़ाव पार करने की इस अल्प अवधि में छत्तीसगढ़ की जनता ने प्रदेश की तरक्की के हर मोर्चे पर कामयाबी के कई परचम लहराए हैं। इनमें सबसे बड़ा परचम देश के नये राज्य के निवासी के रूप में आत्मविश्वास की भावना का है। यही कारण है कि विरासत में मिली नक्सल हिंसा और आतंक की गंभीर चुनौती के बावजूद इक्कीसवीं सदी का यह नया राज्य कदम- दर- कदम कामयाबी की नयी मंजिलों की ओर बढ़ता जा रहा है।
भरपूर पैदावार की वजह से धान के कटोरे के रूप में देश और दुनिया में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ अब स्कूल शिक्षा, कॉलेज शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के विस्तृत होते महासागर के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है। गांवों से लेकर शहरों तक नये युग के इन ज्ञान केन्द्रों में प्रतिदिन हजारों की संख्या में बालक- बालिकाओं और युवाओं का स्कूली बस्तों और किताबों के साथ आना- जाना सचमुच काफी लुभावना लगता है। नई पीढ़ी की आंखों में तैरते सपनों के साथ एक उज्जवल भविष्य की चहल- पहल शिक्षा के इन नये मंदिरों में देखी जा रही है। राज्य में सरकारी क्षेत्र में विश्वविद्यालयों की संख्या सिर्फ एक दशक में चार से बढ़कर ग्यारह तक पहुंच गयी है। इनमें से छह विश्वविद्यालय तो अकेले डॉ. रमन सिंह की सरकार की देन हैं। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और सुन्दर लाल शर्मा (ओपन) विश्वविद्यालय सहित आयुष एवं स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय तथा बस्तर और सरगुजा विश्वविद्यालयों की स्थापना के जरिए राज्य में उच्च शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा के लिए एक नया वातावरण बनाया है। गो- वंश और पशुधन के समग्र विकास और इसके लिए अध्ययन- अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राज्य में बहुत जल्द कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना भी होने जा रही र्है। इसके लिए राज्य शासन की ओर से विधानसभा में प्रस्तुत विधेयक विचार- विमर्श के बाद पारित हो चुका है। राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या 12 से बढ़कर 50, आई.टी.आई की संख्या 61 से बढ़कर 101, शासकीय कॉलेजों की संख्या 116 से बढ़कर 172, प्राथमिक शालाओं की संख्या 32 हजार से बढ़कर 37 हजार, मिडिल स्कूलों की संख्या सात हजार से बढ़कर 16 हजार, हाईस्कूलों की संख्या एक हजार 176 से बढ़कर दो हजार 208 और हायरसेकेण्ड्री स्कूलों की संख्या एक हजार 386 से बढ़कर दो हजार 635 हो गयी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वर्ष 2007 में दो नये जिलों- बीजापुर और नारायणपुर का गठन किया था, जबकि इस वर्ष 2011 में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नौ नये जिलों के निर्माण की घोषणा की है जिनमें बेमेतरा, बलौदाबाजार, बालोद, बलरामपुर, गरियाबंद, मुंगेली, सूरजपुर, कोण्डागांव और सुकमा शामिल हैं, जो उनकी घोषणा के अनुरूप जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ जाएंगे और प्रदेश में जिलों की संख्या 18 से बढ़कर 27 हो जाएगी। आम जनता को विभिन्न प्रकार की सरकारी सेवाएं समय- सीमा में मिल सके, इसके लिए विधानसभा के मानसून सत्र 2011 में राज्य सरकार ने लोक सेवा गारंटी विधेयक प्रस्तुत किया, जो सर्वानुमति से पारित होने के बाद अब कानून बन चुका है। इन ग्यारह वर्षों में व्यापारिक और औद्योगिक विकास की गति भी छत्तीसगढ़ में लगातार तेज होती गयी है। इसके फलस्वरूप यह नया राज्य देश के प्रमुख व्यावसायिक और औद्योगिक केन्द्र के रूप में भी चिन्हांकित होने लगा है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना सहित विभिन्न योजनाओं में सड़कों, पुल- पुलियों के निर्माण में तेजी आई है। इसके फलस्वरूप राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में से अधिकांश में बारहमासी सड़क नेटवर्क विकसित हो चुका है। इससे यातायात और परिवहन सेवाओं में भी इजाफा हुआ है।
संचार क्रांति के इस नये दौर में छत्तीसगढ़ ने एक ऐसी छलांग लगाई है कि राजधानी रायपुर से प्रदेश के सभी 18 जिला मुख्यालयों और 146 विकासखण्ड मुख्यालयों के बीच शासन- प्रशासन के लिए अब वीडियो कॉन्फें्रसिंग के जरिए अधिकारियों से आमने- सामने बातचीत करना आसान हो गया है। सार्वजनिक कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड सहित निजी क्षेत्र की अनेक नई कम्पनियों द्वारा राज्य की जनता को मोबाईल फोन की सुविधा दी जा रही है। इसके फलस्वरूप सरगुजा और बस्तर जैसे अनेक सुदूर इलाकों के अनेक गांवों तक, जहां पहले टेलीफोन एक सपना हुआ करता था, अब मोबाईल फोन के जरिए संचार सम्पर्क आसान हो गया है। राज्य सरकार के कुशल प्रबंधन के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ बिजली कटौती की समस्या से मुक्त होकर जनवरी 2008 से लगातार देश का पहला विद्युत कटौती मुक्त राज्य बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि अभी अक्टूबर 2011 में देश में कोयला उत्पादन वाले कुछ इलाकों में भारी बरसात और सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी कोल इंडिया के कर्मचारियों की दो दिवसीय हड़ताल तथा आंध्रप्रदेश में तेलांगना राज्य आन्दोलन के चलते कोयला खनन और आपूर्ति में रूकावट आई जिसके फलस्वरूप देश भर में एक ऐसा भी समय आया, जब बिजली संकट एकदम से गहरा गया था, लेकिन ऐसे नाजुक दौर में भी छत्तीसगढ़ ने अपनी घरेलू विद्युत आपूर्ति की स्थिति को संभाल लिया। हालांकि प्रदेश में इस दौरान राज्य सरकार के बिजली संयंत्रों में कुछ उपकरणों में तकनीकी खराबी के कारण थोड़े समय के लिए बिजली संकट उत्पन्न हो गया था, लेकिन विद्युत कम्पनी के कुशल इंजीनियरों और कामगारों की मेहनत के फलस्वरूप 13 अक्टूबर को यह संकट टल गया और 13-14 अक्टूबर की स्थिति में राज्य में मांग के अनुरूप 2400 से 2700 मेगावाट तक उत्पादन हो रहा था। आधुनिक युग में बिजली की खपत का बढऩा किसी भी देश या राज्य की प्रगति का सूचक होता है। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में बिजली की खपत में पांच सौ गुना वृद्धि वर्ष 2009-10 में दर्ज की गई। इसके मुताबिक यहां बिजली की औसत वार्षिक खपत प्रति व्यक्ति 1547 यूनिट तक पहुंच गयी है। राज्य में 97 प्रतिशत गांवों का विद्युतीकरण हो चुका है। किसानों के पांच हार्स पावर तक सिंचाई पंपों को सालाना छह हजार यूनिट बिजली नि:शुल्क दी जा रही है। विद्युत कनेक्शन वाले सिंचाई पंपों की संख्या राज्य में अब 72 हजार से बढ़कर दो लाख 90 हजार तक पहुंच गयी है। अनेक लघु और मध्यम सिंचाई योजनाओं के तेजी से पूर्ण करने पर अब राज्य की सिंचाई क्षमता 23 प्रतिशत से बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है। किसानों को खेती के लिए मात्र तीन प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर सहकारी समितियों से गण सुविधा मिल रही है। बिजली, सिंचाई और किफायती गण सुविधा के फलस्वरूप किसानों में खेती के लिए नये उत्साह का संचार हुआ हैं। पिछले खरीफ विपणन वर्ष 2010-11 में सहकारी समितियों में 51 लाख मीटरिक टन धान की खरीदी हुई और किसानों को पांच हजार करोड़ रूपए से अधिक राशि का भुगतान किया गया। वर्तमान खरीफ विपणन वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार ने किसानों से 55 लाख मीटरिक टन धान खरीदने का अनुमानित लक्ष्य निर्धारित किया है। किसी भी देश या राज्य के निर्माण और विकास में श्रमिकों की मेहनत का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वतंत्र भारत के अब तक के इतिहास में भवन निर्माण गतिविधियों से जुड़े असंगठित श्रमिकों के कल्याण के लिए पहली ऐतिहासिक और संगठित पहल वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ में की गयी है, जहां मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ऐसे लाखों श्रमिकों के लिए अनेक नवीन योजनाओं की शुरूआत की है, जिनमें नि:शुल्क औजार और महिला श्रमिकों के लिए नि:शुल्क सिलाई मशीन और नि:शुल्क सायकल वितरण की योजना के साथ-साथ ऐसे श्रमिकों के लिए दुर्घटना बीमा योजना और उनके बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना भी शामिल हैं। इन योजनाओं के संचालन के लिए छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सनिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल का गठन किया गया है। श्रमिकों को इन योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सभी जिलों में श्रम विभाग द्वारा उनके पंजीयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज छत्तीसगढ़ के गरीबों और सामान्य उपभोक्ताओं के लिए रमन सरकार की मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण सामाजिक प्रतिबद्धता का पर्याय बन गयी है। राज्य में इस प्रणाली पर दो सबसे बड़ी जिम्मेदारियां हैं। एक तरफ तो उस पर दस हजार से अधिक राशन दुकानों के जरिए सस्ता अनाज, शक्कर और मिट्टी तेल जैसी आवश्यक वस्तुएं हर महीने उचित मूल्य पर 52 लाख से अधिक राशन कार्ड धारक परिवारों तक नियमित रूप से पहुंचाने का दायित्व है, तो दूसरी तरफ एक हजार 333 प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से लाखों किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए समर्थन मूल्य नीति के तहत धान और मक्का खरीदी की जिम्मेदारी। इन दोनों जिम्मेदारियों को निभाना इतना सरल नहीं है। देखा जाए तो किसी भी सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी है, लेकिन रमन सरकार के कुशल प्रबंधन से ये दोनों ही कार्य बड़ी कुशलता से संचालित हो रहे हैं। राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरे देश में एक आदर्श प्रणाली के रूप में मान्यता मिलने लगी है। प्रदेश के 52 लाख से अधिक राशन कार्ड धारकों में लगभग 32 लाख कार्ड धारक गरीबी रेखा श्रेणी के हैं, जिन्हें केवल एक रूपए और दो रूपए किलो में हर महीने 35 किलो चावल और नि:शुल्क दो किलो नमक नियमित रूप से मिल रहा है। स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल छत्तीसगढ़ निर्माण के चौतरफा प्रयासों की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में राज्य के गांवों में भारत माता वाहिनियों का गठन भी किया जा रहा है। इनमें शामिल महिलाएं गांवों में अवैध शराब के कारोबार को रोकने के लिए संगठित पहल कर रही हैं। प्रदेश सरकार ने सामाजिक स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर इस वित्तीय वर्ष के प्रारंभ होते ही विगत 01 अप्रैल 2011 से 2000 तक आबादी वाले गांवों में देशी- विदेशी शराब की लगभग ढाई सौ लाईसेंसी दुकानों को हमेशा के लिए बंद करवा दिया है। यह रमन सरकार की आंशिक शराबबंदी के जरिए धीरे- धीरे पूर्ण शराबबंदी की दिशा में आगे बढऩे का एक महत्वपूर्ण कदम है।
छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर चमकते विकास के मुकुट का आभामण्डल हर साल नये- नये पुरस्कारों के मोर पंख से सजता जा रहा है। विभिन्न योजनाओं में उल्लेेखनीय सफलताओं के लिए हाल के वर्षो में राज्य को समय- समय पर अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। देश में सर्वाधिक चावल उत्पादन के लिए विगत 16 जुलाई 2011 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने छत्तीसगढ़ को केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के प्रतिष्ठित 'कृषि कर्मण' पुरस्कार से सम्मानित किया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस समारोह में प्रधानमंत्री के हाथों इस पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रूपए की धनराशि के साथ प्रशस्ति पत्र भी ग्रहण किया। उन्होंने बड़ी विनम्रता से यह पुरस्कार छत्तीसगढ़ के मेहनतकश किसानों को समर्पित कर दिया। गरीबों के लिए संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ को देश में प्रथम आने का गौरव मिला है। विगत दो जुलाई 2010 को चंडीगढ़ में केन्द्रीय श्रम तथा रोजगार मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यशाला में छत्तीसगढ़ सरकार को इस योजना में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल के लिए ई-इंडिया एवार्ड तथा धान खरीदी व्यवस्था के तहत सहकारी समितियों के कम्प्यूटरीकरण पर भी राज्य को केन्द्र सरकार से ई-गवर्नेन्स का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। प्रदेश सरकार के उपक्रम छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी के कोरबा स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह को केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा वर्ष 2010 के राष्ट्रीय ऊर्जा सरंक्षण पुरस्कार से नवाजा गया है।
इसी तरह वर्ष 2009 में प्रदेश सरकार के ही उपक्रम छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (क्रेडा) को भी राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। प्रदेश सरकार के कुशल प्रबंधन का एक और उत्साहजनक नतीजा अक्टूबर 2011 में उस वक्त सामने आया, जब राष्ट्रीय स्तर पर संकलित वर्ष 2010-11 के आंकड़ों के आधार पर छत्तीसगढ़ देश के प्रथम तीन ऐसे राज्यों में शामिल हो गया, जहाँ सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। ये आंकड़े केन्द्र सरकार के अखिल भारतीय सांख्यिकी कार्यालय और राज्यों के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालयों के आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर जारी हुए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद के मामले में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्रप्रदेश जैसे पुराने और तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित राज्यों को पीछे छोड़ते हुए जी.एस.डी.पी. में 11.57 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है। नये राज्य की ये उपलब्धियां वाकई इसलिए भी चौकाती हैं, क्योंकि विकास की दिशा में आगे बढ़ते छत्तीसगढ़ को नक्सल हिंसा की गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है, लेकिन वह इस समस्या से बड़ी सूझबूझ के साथ जूझते हुए प्रदेशवासियों की तरक्की और खुशहाली के लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर है।
(डीपीआर से)
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