दो
खुराक क्यों ज़रूरी?
42 दिन
के अंतर अनुमति क्यों?
की अनुमति का निर्णय इस फीडबैक के आधार पर लिया गया है कि तारीखों का लचीलापन लोगों के लिए मददगार है। जहाँ यूके में दो खुराकों के बीच की अवधि को बढ़ाने का उद्देश्य अधिक लोगों का टीकाकरण करना है, वहीं सीडीसी का मानना है कि इससे दूसरी खुराक की जटिलता कम होगी। गौरतलब है कि अमेरिका में टीकाकरण देर से शुरू हुआ है और पहली खुराक मिलने के दो महीने बाद मात्र 3 प्रतिशत लोगों को ही दूसरी खुराक मिल पाई है। टीका निर्माता माँग को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में पूरा टीकाकरण करने में कुछ समझौते तो करने ही होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार पर्याप्त मात्रा में टीके उपलब्ध होने पर अलग रणनीति अपनाई जा सकती है; लेकिन फिलहाल उपलब्ध संसाधनों से ही काम चलाना होगा।
42
दिनों तक आप कितने सुरक्षित हैं?
फाइज़र
और मॉडर्ना के परीक्षण के आकड़ों के अनुसार लोगों में पहली खुराक के लगभग 14 दिनों
बाद सुरक्षा देखी गई है। इस दौरान टीकाकृत लोगों में मरीज़ों की संख्या में कमी और
गैर-टीकाकृत लोगों में मरीज़ों की संख्या में वृद्धि देखी जा सकती है। देखा जाए तो
दोनों ही टीकों की पहली खुराक कोविड के मामलों को रोकने में 50 प्रतिशत (फाइज़र) और
80 प्रतिशत (मॉडर्ना) प्रभावी थे। परीक्षण किए गए अधिकतर लोगों को दूसरी खुराक 21 या 28 दिन में मिली थी। बहुत थोड़े से लोगों (0.5
प्रतिशत) को 42 दिन इंतज़ार करना पड़ा। इतनी छोटी संख्या के आधार पर कोई निष्कर्ष
निकालना कठिन है।
चूंकि
महामारी की शुरुआत में इस वायरस के विरुद्ध किसी तरह की प्रतिरक्षा नहीं थी;
इसलिए नए कोरोनावायरस के विकसित होने की संभावना बहुत कम थी। लेकिन वर्तमान में
लाखों लोगों के संक्रमित होने और एंटीबॉडी विकसित होने से उत्परिवर्तित वायरसों के
विकास की संभावना काफी बढ़ गई है। रॉकफेलर युनिवर्सिटी के रेट्रोवायरोलॉजिस्ट पॉल
बीनियाज़ के अनुसार टीके किसी भी तरह लगाए जाएँ, एंटीबॉडी के
जवाब में वायरस विकसित होता ही है।
जिस तरह
से एंटीबायोटिक दवाओं का पूरा कोर्स न करने पर एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया
विकसित होने लगते हैं,
उसी तरह ठीक से टीकाकरण न होने पर आपका शरीर एंटीबॉडी-प्रतिरोधी
वायरस के लिए स्वर्ग बन जाता है। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार नए-नए वायरसों
के पैदा होने की गति सिर्फ प्रतिरक्षा प्रणाली के मज़बूत या कमज़ोर होने पर नहीं,
बल्कि जनसंख्या में उपस्थित वायरस की कुल संख्या पर भी निर्भर करती
है। बड़े स्तर पर टीकाकरण के बिना नए संस्करणों की संख्या बढ़ने का खतरा है।
क्या
पहली और दूसरी खुराक के बीच लंबा अंतराल टीके को अधिक प्रभावी बना सकता है?
ऐसी
संभावना से इन्कार तो नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो सभी कोविड टीके एक समान नहीं
हैं और खुराक देने का तरीका भी विशिष्ट डिज़ाइन पर निर्भर करता है। कुछ टीके mRNA टीके अस्थिर आनुवंशिक सामग्री पर आधारित होते हैं, कुछ
स्थिर डीएनए पर तो कुछ अन्य प्रोटीन अंशों पर निर्भर होते हैं। इनको छोटी वसा की बूँदों या फिर निष्क्रिय चिम्पैंज़ी वायरस के साथ दिया जाता है।
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