-डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
जिन दिनों मैं
स्कूल में पढ़ा करता था उन दिनों कम्प्यूटर एक गैराज के बराबर जगह घेरने वाली मशीन
थे,
जिनका उपयोग सिर्फ इंजीनियर करते थे। और अब 50 वर्षों बाद, मैं और 50 करोड़ अन्य भारतीय मोबाइल स्मार्ट फोन के रूप में इसे अपनी जेब
में रख सकते हैं! यह क्रांति कैसे हुई?
क्या आप जानते
हैं कि सूचना एवं संचार टेक्नॉलॉजी (या आईसीटी) के ये महत्त्वपूर्ण आविष्कार किसने
किए?
हाल ही में वी. राजारामन द्वारा लिखी गई एक उल्लेखनीय सूचनाप्रद और
शिक्षाप्रद पुस्तक का विषय यही है। राजारामन बैंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान
संस्थान के सुपरकम्प्यूटर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में पढ़ाते थे। उनकी यह किताब
पीएचआई लर्निंग, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है।
इस किताब में
प्रो. राजारामन ने 15 उन महत्त्वपूर्ण आविष्कारों और आविष्कारकों का इतिहास बताया
है,
जिनसे छोटे, द्रुत, बहु-उपयोगी
कंप्यूटर बनाना संभव हुआ। मुझे लगता है कि अब जब कम्प्यूटर आधारित शिक्षा नई
शिक्षा नीति (एनईपी) का हिस्सा बन गई है, तो यह महत्त्वपूर्ण
है कि छात्र और शिक्षक इन 15 आविष्कारों और आविष्कारकों की कहानी ना केवल इन
आविष्कारों के इतिहास और विकास के रूप में पढ़ें बल्कि इन्हें प्रेरणा के रूप में
भी देखें।
प्रो. राजारमन के अनुसार किसी भी आविष्कार में कुछ ज़रूरी गुण होने चाहिए: 1. आइडिया नया होना चाहिए;
2. वह किसी
ज़रूरत को पूरा करे;
3. उत्पादकता
में सुधार हो;
4. कम्प्यूटिंग
के तरीके और कंप्यूटर के उपयोग में बदलाव आए;
5. इससे नवाचार
हो;
6. आविष्कार
लंबे समय के लिए हो,
निरंतर उपयोग किया जाए और क्षणिक न हो;
7. इसे ऐसे नए
उद्योगों को जन्म देना चाहिए जो आगे चलकर नवाचार करें और इस प्रक्रिया में कुछ
पुराने उद्योग में शायद ठप हों;
8. इनसे हमारी
जीवन शैली में बदलाव होना चाहिए, परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन होना
चाहिए।
यह ज़रूरी नहीं
है कि एक बेहतरीन आविष्कार इन सभी बिंदुओं को पूरा करे, इनमें से अधिकांश बिंदुओं को पूरा करना पर्याप्त होगा।
इनमें पहला
नवाचार है कंप्यूटर भाषा FORTRAN या फॉर्मूला ट्रांसलेशन, जो वर्ष 1957 में जॉन बैकस
और उनकी टीम द्वारा विकसित की गई थी। यह डिजिटल कंप्यूटरों की बाइनरी भाषा (दो
अंकों - 0 और 1 - पर आधारित भाषा) को हमारे द्वारा समझी और उपयोग की जाने वाली
भाषा में बदलती है। शुरुआत में इसका उपयोग आईबीएम कम्प्यूटर और बाद में अन्य
कम्प्यूटर में भी किया गया। मुझे याद है, आईआईटी कानपुर में
प्रो. राजारामन ने किस तरह हम सभी छात्रों और शिक्षकों (और अन्य कई लाख लोगों को
अपने व्याख्यानों और पुस्तकों के माध्यम से)
FORTRAN सिखाई थी। FORTRAN ने
गैर-पेशेवर लोगों के लिए भी कम्प्यूटर का उपयोग संभव बनाया - प्रोग्रामिंग करने और
समस्या-समाधान करने में। अन्य लोगों ने विशेष उपयोग के लिए इसी तरह की अन्य
प्रोग्रामिंग भाषाएँ बनार्इं लेकिन वैज्ञानिक आज भी FORTRAN
उपयोग करते हैं।
इस कार्य ने
सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति ला दी। इनकी मदद से जैक किल्बी (और कुछ महीनों बाद
रॉबर्ट नॉयस) ने एक सिलिकॉन चिप पर पूर्णत: एकीकृत जटिल इलेक्ट्रॉनिक परिपथ बनाकर
दिखा दिया।
किताब में उल्लिखित तीसरा
नवाचार है,
डैटाबेस और उसका व्यवस्थित रूप में प्रबंधन। उदाहरण के लिए, हमारे आधार कार्ड में कई तरह का डैटा (उम्र, लिंग,
पता, फिंगरप्रिंट वगैरह) होता है, जिसे एक साथ संक्षिप्त रूप में रखा जाता है। इस तरह की डैटाबेस प्रणाली को
रिलेशनल डैटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम या RDBMS कहते हैं। पहले
इन फाइलों को मैग्नेटिक टेप में संग्रहित किया जाता था, फिर
फ्लॉपी डिस्क आर्इं, और अब सीडी और पेन ड्राइव हैं।
पाँचवाँ नवाचार
है,
निजी या पर्सनल कम्प्यूटर (पीसी) का विकास। इसने घर से काम करना और
पढ़ना संभव बनाया है। पीसी डिज़ाइन करने वाले पहले व्यक्ति थे स्टीव वोज़नियाक
जिन्होंने 1970 के दशक में इसे बनाया था, और स्टीव जॉब्स ने
इसका शानदार बाज़ारीकरण किया था। 1981 तक पीसी समोसे-कचोड़ियों की तरह बज़ार में
बिकने लगे और 1980 के दशक के अंत तक, ऐपल, आईबीएम और अन्य कंपनियाँ माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ बाज़ार पर छा
गर्इं।
हमारे कम्प्यूटर
में अब एक बिल्ट-इन प्रोग्राम है जिससे आप तस्वीरें, वीडियो ले सकते
हैं और व्हाट्सएप, फेसटाइम या इसी तरह की अन्य ऐप्लिकेशन के
ज़रिए इन्हें भेज सकते हैं। यह कम्प्यूटर ग्राफिक्स नामक सातवें नवाचार से संभव हो
सका है। प्रो. राजारामन ने इसके बारे में विस्तार से बताया है। इसके अलावा,
उन्होंने मल्टीमीडिया डैटा के संक्षेपण के बारे में भी बताया है
जिसने इंटरनेट पर ऑडियो-वीडियो का आदान-प्रदान संभव किया। (स्रोत फीचर्स)
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