समोसा- चाय की चाह में मैं एक छोटे से मामूली होटल में दाखिल हुआ और सड़क की तरफ़ पीठ कर के एक टेबल पर बैठ गया। मेरी पीठ की तरफ़ जो सड़क थी उस पर लोगों का हुजूम जिनकी कोई मंज़िल नहीं थी भागा जा रहा था। टेबल पर पहले से बिखरे कप- प्लेट और ग्लास थे, टेबल साफ़ करने के लिए कहा तो एक गंदा सा लड़का आया और कप- प्लेट और ग्लास को लेकर सामने दरवाज़े की तरफ गया और दरवाज़े को एक लात मारी तो दरवाज़ा पूरा खुल गया। दरवाज़ा खुला तो मेरी नज़र दरवाज़े के पार गई, तो मेरे को वहाँ बहुत सी कब्रे नज़र आईं। मैं समझ गया यह होटल कब्रस्तान की ज़मीन पर कब्ज़ा कर बनाई गई है। तभी मेरे ऑर्डर का समोसा और चाय मेरी टेबल पर आ चुका था और मैं समोसा खाते- खाते कब्रस्तान को देख रहा था।
तभी एक मुर्दा अपनी कब्र में से निकला और सीधा होटल के
अंदर आकर मेरे सामने बैठ गया। मेरे को काँटों तो खून नहीं, मैं
उसको ताज्जुब से देखने लगा। बात उसने ही शुरू की, और मेरे से कहा– प्लीज़ एक प्लेट
समोसा मेरे लिए भी मँगवा दीजिये।
मैंने कहा– तुम तो मरे हुए हो तुम समोसा कैसे खा सकते
हो, बेकार में मेरे पैसे बर्बाद मत करवाओ।
मेरी बात सुनकर मुर्दे को हँसी आ गई बोला– अगर मै मुर्दा हूँ तो तुम भी कौन जिंदा हो?
यहाँ हर मरे हुए आदमी को यही ग़लतफ़हमी है कि वह जिंदा है।
मैंने कहा– आपका परिचय ?
मुर्दा बोला– परिचय जीवित आदमी का होता है, मरने के बाद
सब की एक ही पहचान है ‘बाडी’, शेक्सपियर ने
कहा है नाम में क्या रखा है फिर भी जब मैं जिंदा था तब मेरा एक नाम था ‘ग़मगीन अंधेरपुरी’, दोस्त मेरे को ग़मगीन ही कहा करते थे।
मैंने कहा– नाम तो तुम्हारा ग़मगीन है लेकिन बाते तो
ज़िदादिली की करते हो।
उसने कहा– असल ज़िन्दगी में वही खुश है जिसे हम ग़मगीन
समझते है।
मैंने कहा– ग़मगीन साहब आप जब जिंदा थे तब क्या किया करते
थे ?
उसने कहा– वही करता था जो अभी कर रहा हूँ यानि मुफ्त का
माल खाया करता था।
मैंने कहा– फिर तो लोग आप को सख्त नापसंद करते होगे ?
मुर्दे को बुरा लग गया कहने लगा– कैसी बात कर रहे हैं
आप, हमारी सोसायटी में तो उसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है जो दूसरे की
खून- पसीने की कमाई खाते हैं। यहाँ तो सभी दूसरे की मेहनत का ही खा रहे हैं। ये जो
बड़े- बड़े पूंजीपति हैं वो क्या मेहनत करते है ? नहीं उनके लिए मेहनत कोई और करता
है और ये उसकी मेहनत की खाते है। मेरे को इस बात का बहुत दुःख है कि आपने मेरे लिए
अच्छे शब्द इस्तेमाल नहीं किया।
मैंने कहा– अगर मेरी बात से आपका दिल दुखा है तो मैं
माफ़ी चाहता हूँ।
मुर्दे ने कहा– माफ़ी- वाफ़ी छोड़िये आप तो मेरे लिए एक
प्लेट समोसे का ऑर्डर कर दीजिये , दही में बना कर लाए, नमक मिर्ची तेज़।
मैंने मुर्दे के लिए समोसे का ऑर्डर दे दिया तो मुर्दे
ने कहा– एक बार और ऑर्डर दीजिए, ताकि वो समझ
जाये की ऑर्डर की पूर्ति भी करनी है, क्योंकि यहाँ सरकार जो आम जनता की सुविधाओं
के लिए जब सामानों का ऑर्डर देती है तो साथ में एक ऐसा इशारा भी होता है कि ऑर्डर
का माल सप्लाई नहीं करना। आम आदमी सरकार की जय- जय और सप्लायर को गाली देता रहता
है।
मैंने कहा– आप मेरे ऑर्डर पर शक क्यों कर रहे है ?
उन्होंने कहा– शक करना निहायत ही ज़रूरी है, क्योंकि इस
मुल्क की सरकार पिछले सत्तर सालों से लोगों को इसी तरह बेवकूफ़ बना रही है। माइक पर
चिल्ला- चिल्ला कर घोषणा की जाती है पब्लिक के लिए रोटी और कपड़े का ऑर्डर दिया जा
चुका है। मैं ज़मीन के ऊपर रोटी का इंतज़ार करते- करते ज़मीन के नीचे आ गया पर आज तक
वो आर्डर वाले समान की सप्लाई नहीं हुई है।
तभी टेबल पर ऑर्डर किया गया दही में बना समोसा आ गया तो
मैंने राहत की साँस ली, क्योंकि अपने शक से पूरी तरह मर चुके ग़मगीन ने मेरे को भी
अधमरा कर दिया था।
मैंने बात आगे बढ़ाते हुए पूछा– यह बताइये इन दिनों आप
लोगों यानि मुर्दों की दुनिया में क्या हो रहा है ?
मुर्दे ने कहा– इन दिनों हम हड़ताल पर हैं।
मैं चौका– कब्र के अंदर आन्दोलन ? इसकी वजह क्या है ?
मुर्द्र ने कहा– आज कल मुर्दे को बिना कफ़न के ही दफ्न कर
दिया जा रहा है।
मैंने ताज्जुब से कहा– तुम्हारी बात समझा नहीं।
मुर्दे ने कहा– मैंने कौन सा ग़ालिब की तरह फ़ारसी में शेर
कह दिया जो आप समझे नहीं। बात ये है कि इन दिनों पाकिस्तान में इलेक्शन के दिन
हैं। बाज़ार में जितना भी सफ़ेद कपड़ा था सब सियासी पार्टियों ने खरीद लिया है। अब
बाज़ार में कफ़न तक के लिए सफ़ेद कपड़ा नहीं है। अगर कहो कि हमारे अब्बा का इन्तेकाल
हो गया है हमको कफ़न के लिए कपड़ा दे दो तो हमें डाँटते हैं और कहते हैं– ये कोई
मरने का वक्त है, तुम्हारे अब्बा को इतना भी नहीं मालूम की डेमोक्रेसी में एक- एक
वोट की कीमत होती है, वोट देने के बाद नहीं मर सकते थे ? जाहिल- गँवार, मरने के
लिए मरे जा रहे है, मानो आज नहीं मरेंगे तो फिर कभी मरेंगे ही नहीं, जानते हैं कि
यहाँ कदम- कदम पर मरने के सामान मुहय्या हैं लेकिन क्या करें अवाम को सरकार पर
भरोसा ही नहीं है। सफ़ेद कपड़े की किल्लत के कारण मुर्दे बिना कफ़न के दफ्न कर दिए जा
रहे हैं।
मैंने कहा– यह वाकई परेशानी की बात है ?
मुर्दे ने कहा– परेशानी यहीं खत्म नहीं हो जाती है, असल
परेशानी तो वे मुर्दे हैं जिन्हें चुनावी बैनर में लपेट कर दफना दिया गया है, अब
वो पूरे कब्रस्तान में अपनी- अपनी पार्टी के झंडे और बैनर लिए घूम रहे हैं और इसके
चलते पूरे कब्रिस्तान का मौहोल ख़राब हो रहा है।
मेरे को उस मुर्दे से हमदर्दी होने लगी और मैंने कहा– यह
तो आप लोगों के साथ बहुत ज्यादती हो रही है। मैं आप लोगों की हड़ताल का समर्थन करता
हूँ।
मुर्दे ने धन्यवाद देते हुए कहा– पहले हमारी पूरी
समस्याएँ तो सुन लीजिए। बात यहीं खत्म नहीं हो गई। कब्रों के अंदर उन मुर्दों ने
अपनी अलग पार्टी बना ली है जिन्हें उन्हीं कपड़ों में दफ्न कर दिया गया था जो
उन्होंने मरते वक्त पहने थे, इनके फैशन शो ने अलग नाक में दम कर रखा है। कोई खान
ड्रेस में है तो कोई कोर्ट पेंट में है, कोई कुरता पाजामा में है तो कोई लुंगी
बनियान में है। एक साहब तो फटी चड्डी में धूम मचा रहे हैं, सोचिए ये कितने शर्म की
बात है, आखिर इन कब्रों के अंदर निहायत ही शरीफ़ और पर्दानशी औरतें भी दफ्न हैं
उनका तो ख्याल रखना चाहिए।
मैंने कहा– यह तो सच में बहुत ही खराब बात है, ऐसे
लुच्चों को तो कब्र के बाहर कर देना चाहिए।
मुर्दे ने मेरी बात का समर्थन करते हुए कहा– बिलकुल ठीक
कह रहे हैं आप, लेकिन इसके लिए वे मुर्दे तो ज़िम्मेदार नहीं हैं। असली ज़िम्मेदार
तो वे जिंदा लोग हैं जिन्होंने उन्हें उन्ही कपड़ों में दफना दिया जो वे उस वक्त
पहने थे।
मैंने कहा– ये बात भी दुरुस्त है, लेकिन उन ज़िन्दा लोगों
के सामने ऐसी क्या मज़बूरी थी जो उन्हें उसी कपड़ों में दफन कर दिया, जो उन्होंने
मरते वक्त पहने थे ?
मुर्दे ने रहस्य की बात बताई– ये सब दंगे में मारे गए
लोग हैं। आप तो जानते हैं अपने यहाँ के दंगे कितने हाई टेक होते हैं। मिनटों में
सैकड़ों लाशें बिछ जाती हैं, अब इतने मरे लोगों का हिसाब कौन रखे सो उन्हें फटाफट
जो जिस हाल में है उसे वैसे के वैसे दफना कर मामला रफ़ा दफ़ा कर दिया जाता है।
मुर्दे के मुँह से यह रहस्य सुन कर मैं तो हक्का- बक्का
रह गया। मैंने जानना चाहा ये जिस दंगे में मारे गए हैं उन दंगों की वजह क्या थी ?
मेरे सामान्य ज्ञान पर मुर्दे को हँसी आ गई, कहने लगा–
पिछले दस सालों में हमने दंगों में कई रिकार्ड कायम किये है, दंगों के मामले में
हम अब इतने सक्षम हो चुके हैं कि अब हम दंगे के लिए किसी वजह के मोहताज नहीं है,
हम दंगे रच देते हैं अब यह आपका काम है कि आप उसमें क्या वजह जोड़ते हैं। यहाँ
अक्सर दंगे इस वजह से भी हो जाते हैं कि बहुत दिनों से हुए नहीं हैं। दंगा हमारा
अघोषित राष्ट्रीय खेल है, हमारे यहाँ दंगो के एक से बढ़कर एक कलात्मक किस्में हैं।
दंगा प्रशिक्षण केन्द्र
, दंगों के
आधुनिक तरीके, दंगों के बाद स्थति पर नियंत्रण, ये सब हमारी वे किताबें हैं जिसे
बेस्ट सेलर कहा गया है।
उस मर चुके आदमी ने मेरे जनरल नॉलेज को काफी बढ़ा दिया
था। मैंने उसका सफ़ेद झक कफ़न देख कर कहा– आपको तो कफ़न नसीब हुआ है।
उस मुर्दे ने मेरी बात सुनी तो उसकी आँख में आँसू आ गए, उसने कहा – आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। मेरी दर्द भरी कहानी सुनोगे तो आप रो पड़ेंगे, इतना कह कर वह सिसक -सिसक कर रोने लगा।
मैंने उसको हिम्मत देते हुए कहा– मेरे को बताओ तुम्हारे
साथ क्या अत्याचार हुआ है ? बताने से दुःख कम होता है।
उसने कहा– मेरे को अच्छे से याद है मेरे घर वालों ने
मेरे को गुस्लो- कफन के साथ रोते- रोते दफ़न किया था, लेकिन उनके पलटते ही
कफ़न-चोरों ने मेरी कब्र खोद मेरा नया कफ़न चोरी कर लिया।
मैं चौका– क्या इस मुल्क में कफ़न भी चोरी हो जाते हैं ?
मुर्दे ने कहा– ये शराब की लत जो कराए कम है। बस तब से
कब्र में नंगा पड़ा हुआ हूँ। ये जो आप मेरे बदन पर देख रहे हैं ये मेरा कफ़न नहीं
है, मैं पड़ोस वाले मुर्दे से थोड़ी देर के लिए उधार माँग कर लाया हूँ। वहाँ सबको
अपना कफ़न प्यारा है, जल्दी से कोई किसी को अपना कफ़न देता नहीं है। इसने भी रात को
बढ़िया चम्पी मालिश के वादे पर अपना कफ़न दिया है और कहा है कि जल्दी आ जाना क्योंकि
अगर इस दरम्यान फ़रिश्ते हिसाब करने आ गए तो बहुत शर्मिंदगी हो जाएगी।
अब तक ग़मगीन अन्धेरपुरी ने समोसा- चाट चट कर लिया था,
मैंने भी चाय- समोसा खत्म कर अब उनसे इजाज़त लेना चाहा तो उसने कहा–आप से कुछ कहना
था।
मैंने कहा– हाँ कहिये।
मुर्दे ने झिझकते हुए कहा– मेरे को एक हज़ार रुपये उधार
चाहिए थे।
मैंने कहा– कब्र के अंदर एक हज़ार रुपये का करोगे क्या ?
मुर्दे ने सीना तान कर कहा– अपने लिए नया कफ़न खरीदूँगा।
दो दिन पहले ही मोहम्मद हुसैन कपड़े वाला मर कर इसी कब्रस्तान में शिफ्ट किये गए
हैं, वो अपने साथ सफ़ेद कपड़े के तीन चार थान भी लेते आए हैं अब कब्र में कफ़न की
ब्लेक मार्केटिंग कर रहे हैं।
मैं तो उसकी बात सुन कर सन्न रह गया– कब्र में भी ब्लेक
मार्केटिंग ?
मुर्दे ने कहा– इस ब्लेक मार्केटिंग में है ही इतना मज़ा
की इसके लिए इंसान मरने के लिए भी तैयार है।
मैंने उस मुर्दे को एक हज़ार रूपये देते हुए कहा– इसे
वापस कैसे करोगे ?
उसने कहा– एक न एक दिन तो आपको भी ये जहाँ छोड़ कर हमारी
दुनिया में आना ही है, जिस दिन आएँगे हिसाब कर लेंगे।
मैं और कुछ कहता तभी ग़मगीन अन्धेरपुरी वहाँ से गायब हो चुके थे। कब्रिस्तान का दरवाज़ा उसी तरह खुला हुआ था। अब मैंने अपनी पीठ घुमाकर अपना मुँह सड़क की तरफ कर लिया था जहाँ सैकड़ों लोग तेज़ी सी अनजानी मंज़िल की तरफ भागे जा रहे थे।
सम्पर्कः निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल, आमानाका, रायपुर, मो.न. 9826126781, Email – akhterspritwala@gmail.com
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