-रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
स्वतंत्रता
जन्म से ही
ईश्वर ने उपहार स्वरूप
सभी स्त्री-पुरुष में
बराबर बाँटी,
यहाँ सबको समानता से
जीने का हक है
संविधान ने भी यही
दृढ़तापूर्वक कहा,
मगर मुट्ठी भर
स्वतंत्रता लेकर पैदा हुई
स्त्री के जीवन में
आजादी के मायने
अजब ढंग से पलते हैं,
बचपन से ही
अलग परवरिश में जीती,
बड़े सीमित
दायरे में कैद,
बन्दिशों में बंधी हुई
उसकी ज़िंदगी
आजाद कब हो सकी ?
सदियों से अब तलक वह
मुक्त नहीं हो पायी
खोखली रूढ़ियों की
जंजीरों से,
क्या मना पाएगी
कभी एक दिन
आजादी का जश्न स्त्री ?
उन्मुक्त जी पाएगी
किसी दिन ?
जो आजादी का ख्वाब
बरसों
से देखती आयी
क्या हो सकेगा
किसी रोज़ साकार ?
जा पाएँगी क्या
डरी सहमी औरतें
परम्परा की दहलीज के
उस पार ?
खुलकर खुली हवा में
साँस ले सकेंगी ?
उड़ सकेंगी
खुले आसमान में ?
बेहिचक़ बाहर जा सकेंगी
काम पर अकेली,
डर की गठरी को घर के
कोने में पड़ी छोड़ कर ?
राह चलते कानों पे
तानों का बोझ कम हो सकेगा ?
सड़कों पे दिन-दहाड़े
भूखी शिकारी
आँखों के जाल से
बच निकलेंगी सुरक्षित ?
बगैर नौंचे छोड़ेगा ?
हाँ शायद...
शायद ये हो सकेगा...
यदि हो समाज की सोच का विस्तार,
कि स्त्री को भी आजादी से जीने का हक है!
सम्पर्कः 363 द, अशोक नगर, तहसील- बाह, जिला-
आगरा, उत्तर प्रदेश, पिन कोड- 283104
ईमेल - rashmivibhat@gmail.com
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