इधर हमारे एक लेखक मित्र इसलिए परेशान थे कि उन्हें अपनी लघुकथाओं के लिये कच्चा माल नहीं मिल रहा था, अपने आपको वरिष्ठ और लघुकथा के क्षेत्र मे स्थापित कथाकार मानने वाले मित्र ने हमसे कहा-भाई राजा, तुम अपनी लघुकथाओं के लिये कच्चा माल कहाँ से भिड़ाते हो? कोई ईमानदार कच्चे माल का सप्लायर हो तो हमें भी उसका पता बताओ....पत्र पत्रिकाओं के ढेर सारे पते हमारे पास है, लेकिन किसी कच्चे माल वाले का पता मिल जाए, तो हम पचीस- पचास लघुकथाएँ रगड़ कर भेज दे... कुछ पैसे तो बन ही जाएँगे।
मैंने कहा- लघुकथा के क्षेत्र मे आप इतने
कच्चे तो नहीं है कि आपको कच्चे माल का शार्टेज पड़ जाये...जिधर हाथ मारेंगे वहीं
से दो तीन लघुकथाओं के लायक मिट्टी निकाल लेंगे।
वह बोले,याने कि तुम हम पर
तंज कस रहे हो....कच्चे माल का मतलब तो हम भी समझते है...ये कोई मिट्टी या कोयला
नहीं है....नहीं बताना है तो मत बताओ यार, लेकिन टॉण्ट तो मत
मारो।
मैंने कहा- इसे आप टांट समझ रहे हैं,
तो इसे ही कच्चा माल समझ कर दो चार लघुकथाएँ
बना डालिये... मैं तो आपके वरिष्ठ होने के सम्मान में ही ऐसी बात कर रहा
हूँ कि जब आप जैसे वरिष्ठ लघुकथाकार को कच्चे माल कीशॉर्टेज पड़ जाएगी, तो हम जैसे छोटे लघुकथाकार कहाँ जाएँगे।
जब मैंने उनके सामने स्वयं को छोटा कहा ,तो
उनके चेहरे पर प्रसन्नता झलकने लगी। उनकी यह आदत है कि वह अपने सामने हर कथाकार को
छोटा ही समझते हैं।
उन्होंने बहुत जिद की तो मैने उन्हें टालने
के लिये अपने एक मित्र का पता दे दिया। दूसरे दिन वह उसके पास पहुँच गए कच्चा माल
लेने।
मित्र मुँहफट थे,
बोले,-आजादी के बाद भी आपको
लघुकथा लेखन के लिये कच्चा माल तलाशना पड़ रहा है....यह तो लघुकथा साहित्य
का दुर्भाग्य है..। आजाद देश की इस उर्वरा भूमि आपके भार से नतमस्तक है। इतनी विसंगतियों
के बावजूद भी आपको कच्चा माल नहीं मिल रहा हो तो आप मेहरबानी कर लघुकथाएँ लिखना
बंद कर मोमबत्ती बनाना शुरु कर दीजिए,फिर आपको कच्चे माल की
चिंता नहीं रहेगी।..
सम्पर्कः वसंत 51, कालेज रोड, महासमुंद छत्तीसगढ़
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