-धर्मपाल महेंद्र जैन
इस व्यंग्य निबंध का मकसद किसी को उकसाना नहीं
है। इसलिए आप वादा करें कि इस व्यंग्य को पढ़ने के दो दिन बाद तक आप आत्महत्या
नहीं करेंगे। न जाने क्यों, वैधानिक चेतावनी देने के बाद भी मुझे आप पाठकों पर
भरोसा नहीं है। लोग कहीं की खुंदक कहीं और निकालते हैं। जिस तरह के व्यंग्य इन
दिनों छप रहे हैं, उनको पढ़ने के पहले आप एक सुसाइड नोट लिख डालें कि ‘मेरी
आत्महत्या का कारण यह व्यंग्य पढ़ना न कभी था और न रहेगा। इसलिए मेरी आत्महत्या के
बाद पुलिस व्यंग्यकार को परेशान नहीं करे।’ अब आप पढ़ने का आनंद ले सकते हैं और
मैं लिखने का। आजकल वैसे भी सुरक्षित व्यंग्य लिखने का प्रचलन बढ़ गया है।
दरअसल आत्महत्या करने में कोई लाभ है नहीं। अब
तो किसान भी आत्महत्या नहीं करते, सीधे राजधानी घेर लेते हैं। आत्महत्या जीवन बीमा
पॉलिसी जैसी मृग-मरीचिका है। जीते जी आपको कुछ नहीं मिलता और मरने के बाद किसी को
करोड़ों मिल भी जाएँ तो आप मृतक के किस काम के। संपादकगण किसी की मरणोपरांत दो-चार
लाइन में यशोगाथा लिख भी दें तो बंदा उसे लाइक करने से रहा। इसलिए किसी अदृश्य सुख
के लालच में आत्महत्या करने का विचार नासमझ व्यक्ति को भी नहीं करना चाहिए। अपनी
रचनाओं के साथ मैं संपादकों को जो विनय पत्र भेजता हूँ उसमें खुलासा कर देता हूँ
कि हे संपादक, अस्वीकृति की सूचना देने से डरे
नहीं। मैं परहत्या या आत्महत्या करने वाला नहीं हूँ। आपको नई रचना भेज दूँगा।
रचनाओं की कोई कमी थोड़े ही है। ड्रावर में हाथ डालता हूँ तो बीस पन्ने फड़फड़ाने
लगते हैं। बस आत्मा एक ही है इसे दाँव पर नहीं लगा सकता। यह विनय पत्र बड़ा काम
करता है। संपादक अस्वीकृति की सूचना नहीं भेजते और स्वीकृति की सूचना देना उन्हें
किसी ने सिखाया नहीं। वे लटकाए रखने की लंबी परंपरा के उस्ताद हैं, पर कोई लटक कर
आत्महत्या कर ले ऐसा ज्ञान वे कभी नहीं देते।
मेरे तीन-चार आलोचक मित्र हैं जो आत्महत्या की
योजना बनाने में विशेषज्ञ हैं। वे अपनी फीस पहले रखवा लेते हैं, फिर शादी करने का
सुझाव देते हैं। थोक में आत्महत्या करनी हो तो लव जिहाद कामयाब उपाय है। इन विशेषज्ञों
के अनुसार पंखे से लटकना आतंकी और पुरातन पद्धति है। इस तरह फाँसी की सजा दी जाती
है। मरना ही है तो शान से मरें, खुद को फाँसी न दें। अपने हाथ या गले की नस काटकर खून बहाने से वीभत्स
दृश्य बन जाता है। ऐसे में सात्विक टीवी चैनल वाले आत्महत्या को उचित कवरेज नहीं
देते। कुछ मामलों में शरीर से सारा खून निकल जाता है, आत्मा फँसी रह जाती है। जिसे
मुक्ति दिलाना हो वही फँस जाए तो बड़ी दुर्गति होती है। हालाँकि फँसी हुई आत्मा को
पुलिस निकाल सकती है पर अंतिम समय में भगवान की जगह पुलिस खड़ी मिले तो अगला जन्म
भी अकारथ चला जाता है। चूहे मारने की दवाई खाकर आत्महत्या करने से मूषक गति मिलती
है। चीनवंशियों के लिए यह विधि शास्त्र सम्मत हो सकती है पर हमारे लिए नहीं।
भारतवंशियों के लिए शास्त्र सम्मत औषधि पंचगव्य है। पहला गव्य है, गाय का गोबर
जिसे सरकार दो रुपये किलो खरीदती है। फिर यह सौ रुपये किलो के भाव ऑन-लाइन बिकता
है। दूसरा है गोमूत्र, जो पैकबंद शीशियों में एक्सपोर्ट क्वालिटी में प्राप्त है।
विशेषज्ञ ने आधार-गव्य बता दिये, शेष आप स्वादानुसार मिलाकर खा लें और अशुभ घड़ी
का इंतजार करें। बिना बिस्तर वाले अस्पतालों के कॉरिडोर में प्राण, किडनी, हृदय
आदि समर्पित करने की बजाय घर पर अंतहीन वेब-सीरिज देखते-देखते प्राणोत्सर्ग करने
से मोक्ष मिलने की गारंटी है।
एक बार फिर से चेक कर लें कि आपने सुसाइड नोट लिखकर अपनी ऊपरी जेब में विधिवत रख दिया है। पुलिस की नजर का कोई भरोसा नहीं है। विटामिन एम खाया हो तो वे सुसाइड नोट पाताल में भी खोज सकते हैं। यदि उन्हें विटामिन का पर्याप्त डोज़ न मिले तो वे आँखों के सामने पड़ा सुसाइड नोट भी नहीं देख पाते। मुझे सुसाइड नोट की चिंता ज्यादा है। इसे नजर में आ सकने लायक दो हजार के कड़क नोट के साथ रखेंगे तो पुलिस आसानी से उठा लेगी। व्यंग्यकार को निर्दोष बताते हुए आप उन तमाम लोगों के नाम इसमें लिख सकते हैं जिन्हें आप अपनी औकात समझाना चाहते हैं। हाथी मर जाए तो भी कम से कम सवा लाख का हुआ, फिर आप तो आदमी हैं। आपका नाम ले लेकर पुलिस वाले आपके द्वारा सूचीबद्ध लोगों को आपका भाव बता सकते हैं।
हाँ, उन चार-पाँच लोगों के नाम सुसाइड नोट में नहीं डालें जो आपको अंतिम क्रिया के लिए ले जा सकते हैं। जिन्हें आप जानी दुश्मन समझते हैं, वे ही लोग मन कड़ा करके आपको विधिवत उठा पाएँगे। उनके बाहुबल पर विश्वास करें। जिन पर आपको भरोसा है, वे आँसू बहा सकते हैं, दो-चार बार दहाड़े मारकर रो सकते हैं, पर आपको उठा नहीं सकते। पोस्टमार्टम के बाद मुर्दाघर में पड़े रहने की बजाय जल्दी से ठिकाने लग जाना ही बेहतर है। सुसाइड नोट में अपने बॉस और बड़े बाबू का नाम नहीं डालें। वे कितने ही खड़ूस रहे हों, उनके नाम प्रशंसा की प्रशस्ति लिख जाएँगे तो वे आपका पेमेंट जल्दी करवा देंगे। उनके प्रति सहिष्णु बने रहें और आचार संहिता का पालन करें। जिन-जिन प्रेमिकाओं ने आपके प्रणय निवेदनों को ठुकरा दिया उनके नाम भी नहीं डालें। हमेशा याद रखें कि आपने उन्हें सच्चे मन से प्यार किया था। आप उनके नाम नोट में जोड़ जाएँगे तो आपके एकतरफा प्यार की हकीकत सब दोस्तों को पता चल जाएगी।मुझे विश्वास है यह आलेख पढ़ने के बाद आपने आत्महत्या का दृढ़ विचार त्याग दिया होगा। यदि यह विचार अब भी शेष हो तो जान लें कि जिन्होंने भी आत्महत्या की, दरअसल वे अंतिम क्षण में बहुत पछताए। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। आप चाहें तो अपना सुसाइड नोट हमें भेज दें। हम ‘सौ सर्वश्रेष्ठ सुसाइड नोट्स’ नामक संकलन शीघ्र ही छापने वाले हैं, जो हिंदी साहित्य में मील का पत्थर साबित होगा।
लेखक के बारे में- प्रकाशित पुस्तकें:
व्यंग्य संकलन - “इमोजी की मौज मे,
दिमाग़ वालो सावधान और “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है? एवं
कविता संकलन - “कुछ सम कुछ विषम और “इस समय तक प्रकाशित। बीस साझा संकलनों में। चाणक्य वार्ता एवं सेतु
में स्तंभ लेखन। नवनीत, कादम्बिनी, आजकल, लहक, अक्षरा, कथा क्रम, पहल, व्यंग्य यात्रा, अट्टहास, पक्षधर, साक्षात्कार, यथावत, समावर्तन, कला समय, जनसंदेश, ट्रिब्यून,
दुनिया इन दिनों, सृजन सरोकार,
साहित्य अमृत, विश्व गाथा, विभोम स्वर आदि में रचनाएँ
प्रकाशित।
ईमेल : dharmtoronto@gmail.com , फ़ोन : + 416 225 2415
सम्पर्क : 1512-17 Anndale Drive, Toronto M2N2W7,
Canada
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