इस्लामिक देशों के
बारे हमारे मन में एक अलग ही इमेज़ होती है। मगर सन् 2012 में उज़्बेकिस्तान पहुँचकर पाँच दिन
ताशकंद में और एक दिन समरकंद में घूमते हुए जो सामाजिक, सांस्कृतिक
और मज़हबी मंज़र नज़र आया, वह हमें हैरत में डाल देने वाला
था। उज़्बेकिस्तान एक जनतांत्रिक इस्लामिक देश है। मगर यहाँ का जीवन अफ़गानिस्तान,
पाकिस्तान और सऊदी अरब के इस्लामपरस्त लोगों से बिल्कुल अलग है।
हमें यहाँ सड़क, मैदान या किसी मुहल्ले में कहीं भी कोई
मस्जिद, मक़तब या मदरसा नज़र नहीं आया। कहीं कोई अज़ान नहीं
सुनाई दी। यहाँ तक कि कोई चर्च या मंदिर भी दिखाई नहीं पड़ा। कोई महिला मज़हबी
लिबास (बुर्क़ा) नहीं पहनती।
हमारे गाइड रुस्तम
ने बताया कि समरकंद में अमीर तिमूर (तैमूर लंग) के मक़बरे के अंदर एक मस्ज़िद है और ताशकंद में हज़रत इमाम के मकबरे
के अंदर एक मस्ज़िद है। मगर ये इबादत के बजाय पर्यटन के
प्रमुख केन्द्र हैं। कुछ लोग अपने घरों के
अंदर नमाज़ अदा करते हैं मगर उसके लिए कोई वक़्त मुक़र्रर नहीं है। यहाँ मुस्लिम,
ईसाई और ईश्वर को न मानने वाले वामपंथियों के बीच ज़ब़ान और मज़हब
को लेकर कोई संघर्ष भी नहीं है। उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद की जनसंख्या 30
लाख है। इनमें 90% मुसलमान हैं और 8% क्रिचियन हैं और 2% में बाकी दुनिया शामिल है। सन् 1991
में सोवियत यूनियन से अलग होकर एक आज़ाद देश बनने के बावजूद
उज़्बेकिस्तान ने मज़हबी मरकज़ बनाने के बजाय मूलभूत सुविधाओं- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के विकास पर ज़ोर दिया। यहाँ बी.ए. तक सभी के लिए
शिक्षा मुफ्त़ है।
आज़ादी का स्मारक इंडिपेंडेंस स्क्वायर
उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद का सबसे प्रमुख स्थल माना जाता है - इंडिपेंडेंस स्क्वायर। पहले इसका नाम था लेनिन स्क्वायर। सन् 1955 में जब यह बना था तो एक ऊँचे स्तम्भ पर लेनिन की आदमकद विशाल प्रतिमा स्थापित की गई थी। सन् 1991 में सोवियत यूनियन से आज़ाद होकर उज़्बेकिस्तान एक जनतांत्रिक इस्लामिक देश बन गया। लेनिन की प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई और उसकी जगह एक ग्लोब स्थापित किया गया। इस ग्लोब पर उज़्बेकिस्तान का मानचित्र अंकित किया गया है। ग्लोब के नीचे अपनी गोद में शिशु लिए एक जवान माँ बैठी है। उसके चेहरे पर आत्मीय मुस्कान है। माँ बच्चे से कह रही है- 'बेटा तू बहुत ख़ुशक़िस्मत है जो आज़ाद मुल्क में पैदा हुआ'।
इंडिपेंडेंस
स्क्वायर के दूसरे कोने पर एक बूढ़ी माँ की उदासी में डूबी हुई प्रतिमा है। यह
शोकमग्न माँ अपने उन बेटों का इंतज़ार कर रही है जो कभी नहीं लौटेंगे। द्वितीय
विश्वयुद्ध में उज़्बेकिस्तान के छह लाख लोग मारे गए थे। उनकी याद में यहाँ एक अमर ज्योति अनवरत जल रही है।
नज़दीक के बरामदे में ताम्रपत्रों पर इन शहीदों के नाम अंकित हैं। नाम के साथ उनके
जन्म और मृत्यु का साल भी दर्ज किया गया है।
चौदह
हज़ार शहीदों का स्मारक शहीद पार्क
ताशकन्द शहर के मध्य में टीवी टावर के पास हरियाली और फूलों से समृद्ध एक पार्क में शहीदों का भव्य स्मारक आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यह किसी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों का स्मारक नहीं है। हमारे गाइड ने बताया कि यह उन 14000 बुद्धिजीवियों, विचारकों, लेखकों और कलाकारों की यादों का मरक़ज़ है, जिन्हें किसी समय उज़्बेकिस्तान को सोवियत रिपब्लिक का हिस्सा बनाने के लिए एक साथ,
एक जगह इकट्ठा करके क़त्ल करने के बाद यहीं दफ़ना दिया गया था। उस वक़्त यह एक निर्जन स्थान था। आज़ाद देश बनने पर इसे शहीद पार्क बनाया गया। पास से गुज़रती एक नदी की धारा को मोड़ कर इसके बीचों-बीच से गुज़ारा गया । पक्के किनारों वाली इस नदी, हरियाली और फूलों ने शहीद पार्क को बेहद ख़ूबसूरत बना दिया है। आज यह पार्क कला और साहित्य का पावन तीर्थ बना हुआ है और दूर-दूर से लोग शहीदों की स्मृति को सलाम करने के लिए आते हैं।ताशकन्द
समरकन्द और बुखारा
समर कहते हैं फल को। फलों ने समरकन्द को इतनी दौलत दी है कि इसे अमीर लोगों का शहर कहा जाता है। जगह-जगह अंगूर, सेब, चेरी, खुबानी, खरबूज़ और तरबूज़ दिखाई पड़ते हैं। यहाँ तक कि इस शहर की गलियों में भी लोहे के पाइप पर अंगूर की बेलें झूलती रहती हैं और राहगीरों को धूप से बचाती हैं। ड्राई फ्रूट का विशाल मार्केट भी यहीं है। सन् 1398
में जब अमीर तिमूर (तैमूर लंग) दिल्ली आया था तो वह समरकंद का बादशाह था। यहाँ तैमूर लंग का बनवाया हुआ एक शानदार मक़बरा है। इसके गुम्बद की नक़्क़ाशी में सोने का भरपूर उपयोग किया गया है। कहा जाता है कि उसने यह मक़बरा अपने बेटे के लिए बनवाया था। एक दुर्घटना में अपनी जान गँवाने पर ख़ुद तैमूर लंग को इसी में दफ़न होना पड़ा। चंगेज़ ख़ाँ, नादिर शाह और बाबर का भी समरक़ंद और बुखारा से ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। वैसे बुखारा को सूफ़ियों का शहर माना जाता है। हमें बताया गया कि यह निज़ामुद्दीन औलिया की मुहब्बत तथा मुइनुद्दीन चिश्ती की इबादत का शहर है।परदे से मुक्त महिलाओं का समाज
ताशकंद के प्रमुख
बाज़ारों, चिमगान हिल, चारवाक
लेन और समरकंद के विशाल ड्राई फ्रूट मार्केट में घूमते हुए हमने देखा कि यहाँ की
महिलाएं परदा नहीं करतीं। बाज़ार में, रेस्तराँ में, शापिंग माल में वे मर्दों से अधिक संख्या में चुस्ती-फुर्ती से काम करती
हुई नज़र आती हैं। वे देर रात तक आज़ादी से घूमती- फिरती हैं। हमारे गाइड ने बताया
कि यहाँ लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या दो गुनी है। काफ़ी महिलाएं ऊपरी
दाँतों में सोना मढ़वाती हैं। वे जब हँसती या बोलती हैं, तो
यह स्वर्णिम दंतपंक्ति बड़ी सुंदर लगती है। यहाँ की अधिकतर
लड़कियाँ हाई हील पहनती हैं। होटल और रेस्तराँ में हाई हील पहनकर लड़कियाँ
बैली डांस करती हैं। जब वे बिजली की गति से नाचती हैं तो हाई हील पर
उनका बैलेंस देखने लायक होता है।
आर्थिक
आत्मनिर्भरता
उज़्बेकिस्तान में
खेती-बाड़ी ज़बरदस्त है। गेहूँ, सब्ज़ियां, फल बहुतायत से पैदा होते हैं। कपास
निर्यात करने में उज़्बेकिस्तान दुनिया में तीसरे नम्बर पर है। तेल और गैस भी
भरपूर है। भारतीय मुद्रा में पेट्रोल 25 रुपये लीटर है। सात रुपये का टिकट लेकर मेट्रो ट्रेन या लो फ्लोर वातानुकूलित बस में पूरे दिन कहीं
भी आ-जा सकते हैं। यहाँ मोटर सायकिल, बाइक या स्कूटर नहीं
हैं। महज कारें, बसें और टैक्सियाँ ही नज़र आती हैं।
इक्का-दुक्का अपवाद छोड़ दें तो अधिकतर कारें और टैक्सियाँ
सफ़ेद रंग की ही हैं। यहाँ के लोगों में ख़ुद इतना अनुशासन है कि छह दिन में हमें कहीं हार्न की आवाज़ नहीं सुनाई पड़ी। हमारी बस के
ड्राइवरों ने भी कभी हार्न नहीं बजाया।
अपराध
मुक्त देश उज़्बेकिस्तान
उज़्बेकिस्तान एक
अपराध मुक्त देश है। हमको यहाँ कहीं भी पुलिस के दर्शन नहीं हुए। गीतकार डॉ
बुद्धिनाथ मिश्र के साथ सुबह 6 बजे मार्निंग वाक करते हुए हम संसद भवन के गेट पर चले गए। संसद भवन पर भी
पुलिस का पहरा नहीं है। गाइड ने बताया कि यहाँ अपराध ज़ीरो है। न चोरी, न डकैती, न मारपीट, न
भ्रष्टाचार। आम जनता को अंग्रेजी बिल्कुल नहीं आती। बस चंद लोगों को काम चलाऊ
अंग्रेज़ी ही आती है। किसी दुकानदार से कुछ ख़रीदिए और अंग्रेज़ी में दाम पूछिए तो
वह कुछ बोलता नहीं, झट से कलकुलेटर या मोबाइल स्क्रीन पर
टाइप करके दाम दिखा देता है। कहीं अंग्रेज़ी का अख़बार भी नज़र नहीं आता। यहाँ तक
कि हमारे चार सितारा होटल पार्क ट्यूरान की लॉबी में भी कोई अख़बार नहीं दिखाई
पड़ा- चैन हो जाए अगर मुल्क में अख़बार न हो। उज़्बेकी ज़बान में कुछ अख़बार निकलते
ज़रूर हैं मगर प्रसार बहुत कम है।
ताशकंद
में सुख सुविधा और शांति
उज़्बेकिस्तान की
राजधानी ताशकंद में हर तरफ़ हरियाली है,
रंग-बिरंगे फूल हैं। न तो कोई घास पर बैठता है और न ही कोई घास पर
चलता है । कोई फूल भी नहीं तोड़ता। ऐसे अलिखित नियमों का पालन हर इंसान करता है
क्यों कि वे स्व-अनुशासित हैं। यूएस डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा सोम की क़ीमत
बहुत कम है। सौ डॉलर में अढ़ाई लाख सोम मिलते हैं। चाय एक हज़ार, कॉफ़ी दो हज़ार और टैक्सी का
न्यूनतम किराया तीन हज़ार सोम है। ताशकंद में कई भारतीय होटल-रेस्तराँ हैं जहाँ
भारतीय वेज़ और नानवेज़ भोजन मिल जाता है। पिछले 21 साल से
राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव अपने पद पर बने हुए हैं। पाँच राजनीतिक पार्टियाँ हैं
मगर राजनीतिक उठापटक नहीं है। इस लिए यहाँ सुख, सुविधा और
शांति है।
हमारे देश भारत के लिए उज़्बेकिस्तान के लोगों में बहुत प्यार है। शास्त्री स्ट्रीट में हमारे स्व. प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री की प्रतिमा को उन्होंने बहुत आदर से साफ़-सुथरा और सँभालकर रखा है। बच्चों से लेकर लड़कियाँ, मर्द और औरतें जब हमें देखते हैं तो बड़े प्यार से सिर झुकाकर या अदब से हाथ जोड़कर कहते हैं- नमस्ते। वे नमस्ते इतनी विनम्रता और म्यूज़िकल ढंग से बोलते हैं कि तबियत ख़ुश हो जाती है।
(सृजन सम्मान
(छत्तीसगढ़) की ओर से पाँचवा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, ताशकंद, उज्बेकिस्तान
में आयोजित किया गया था। उन्हीं के सौजन्य से 24 से 30
जून 2012 तक उज़्बेकिस्तान की यह साहित्यिक
यात्रा सम्पन्न हुई थी। इसमें देश-विदेश से 135 हिन्दी
रचनाकारों को आंत्रित किया गया था।)
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्यापाड़ा,गोकुलधाम, फ़िलमसिटी रोड,गोरेगांव
पूर्व, मुम्बई - 400 063,
फोन : 98210-82126, devmanipandey.blogspot.com
2 comments:
रोचकता लिए ज्ञानवर्धक संस्मरण
आपका शुक्रिया
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